मगरमच्छों की बढ़ रही संख्या
गौरतलब है कि ब्यारमा नदी का संबंध केन घडिय़ाल सेंचुरी से है, जिसके चलते इस नदी में मगरमच्छों की संख्या लगातार बढ़ रही है। जल स्रोतों के सूखने और तापमान में वृद्धि के कारण ये मगरमच्छ अब नदी छोड़कर रिहायशी इलाकों, खेतों और सड़कों की ओर रुख कर रहे हैं। वन विभाग की टीम को जब भी मगरमच्छ की सूचना मिलती है, वह सक्रिय होकर रेस्क्यू करती है और मगरमच्छ को सुरक्षित स्थान पर पहुंचाया जाता है। वन मंडल अधिकारी ईश्वर जरांडे ने बताया कि विभाग द्वारा लोगों को जागरूक भी किया जा रहा है कि वे नदी के उन हिस्सों से दूर रहें, जहां मगरमच्छों की उपस्थिति संभावित है।
हालांकि, ग्रामीणों का कहना है कि केवल रेस्क्यू से समस्या का समाधान नहीं होगा। उन्होंने मांग की है कि मगरमच्छों को स्थायी रूप से संरक्षित क्षेत्रों में स्थानांतरित किया जाए, ताकि बार बार रहवासी इलाकों में इस तरह की स्थिति उत्पन्न न हो।
इन गांवों में लगातार देखे गए मगरमच्छ
तेंदूखेड़ा और जबेरा क्षेत्र से गुजरने वाली ब्यारमा नदी के आसपास के मुबार, झरौली, बनवार, बड़े घाट, गुढ़ा, सिंग्रामपुर, खजुरिया, हटरी और कोरता जैसे गांवों में पिछले एक साल में कई बार मगरमच्छ देखे जा चुके हैं। ग्रामीणों का कहना है कि अब बच्चों को अकेले बाहर भेजना भी जोखिम भरा हो गया है।
हाल ही के कुछ प्रमुख मामले
मार्च 2025: तेंदूखेड़ा के पटी लीलाधर गांव में आठ फीट लंबा मगरमच्छ एक खेत में पहुंच गया था। फरवरी 2025: जामुनखेड़ा मार्ग पर पठाघाट में मगरमच्छ देखा गया। नवंबर 2024: नोहटा के गुहची नाला के पास बड़ा मगरमच्छ मिला, जिसे वन विभाग ने रेस्क्यू किया। अक्टूबर 2024: जोरतला गांव से मगरमच्छ को पकड़कर सिंगौरगढ़ जलाशय में छोड़ा गया। सितंबर 2024: जबलपुर हाईवे पर सिंग्रामपुर के पास मगरमच्छ चहलकदमी करते देखा गया।
अगस्त 2024: खोजाखोड़ी गांव में कोपरा नदी किनारे मगरमच्छ मिला।