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दमोह

एमपी का ऐसा जलाशय जो बलिदान का है प्रतीक, जानें इसकी पूरी कहानी

History of Mala Reservoir: दमोह जिले का सबसे बड़ा जल स्रोत माला जलाशय सिर्फ पानी का भंडार नहीं है, बल्कि यह वीरता और बलिदान की अमर गाथा को समेटे हुए है।

दमोहMar 20, 2025 / 01:07 pm

Akash Dewani

History of Mala Reservoir of damoh contains the history of immortal saga of sacrifice in british era
History of Mala Reservoir: मध्य प्रदेश के दमोह जिले में स्थित माला जलाशय वीरता और बलिदान की अमर गाथा का प्रतीक है। इतिहास में झांकें तो मानगढ़ रियासत के शक्तिशाली शासक राजा गंगाधर ने अंग्रेजों के खिलाफ विद्रोह किया था। राजा के इस विद्रोह के चलते संघर्ष तेज हो गया। ब्रिटिश हुकूमत ने न केवल राजा को सजा दिलवाई, बल्कि पूरी रियासत को मिटाने की ठान ली। इसके बाद अंग्रेजों ने पूरे गांव को उजाड़कर वहां के निवासियों को बलपूर्वक विस्थापित कर दिया और उसी स्थान पर माला जलाशय का निर्माण कराया।
हालांकि, यह जलाशय केवल जल स्रोत नहीं है, बल्कि उस संघर्ष और बलिदान की अमिट निशानी भी है, जिसे अंग्रेजों ने इतिहास से मिटाने की कोशिश की थी। आज भी माला जलाशय राजा गंगाधर की वीरता और ब्रिटिश हुकूमत के अत्याचारों की कहानी बयां करता है।
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1929 में हुआ था जलाशय का निर्माण

ब्रिटिश सरकार ने 1929 में मानगढ़ रियासत को पूरी तरह उजाड़ने के लिए माला जलाशय का निर्माण कराया। इसके बाद रियासत वीरान हो गई और वहां जलाशय अस्तित्व में आया। जलाशय बनने के बाद वहां नई बसाहट शुरू हुई, जिसे आगे चलकर माला गांव के नाम से जाना गया।
अंग्रेजों के खिलाफ संघर्ष करने के कारण ब्रिटिश सरकार ने राजा गंगाधर को डकैत घोषित कर दिया और उन्हें काले पानी की सजा सुनाई गई। राजा गंगाधर के साथ चिलोद गांव के पंडा परिवार के एक सदस्य और ग्राम कोटवार को भी इसी कठोर सजा का भागी बनाया गया।

वीरता की गवाही देता है ये जलाशय

आज भी माला जलाशय राजा गंगाधर और उनके अनुयायियों के बलिदान की गवाही देता है। यह जलाशय सिर्फ पानी का स्रोत नहीं, बल्कि वीरता और संघर्ष का प्रतीक भी है। यह स्थल ब्रिटिश अत्याचारों और स्वतंत्रता संग्राम की याद दिलाता है। अंग्रेजों ने इस संघर्ष को भुलाने की भरसक कोशिश की, लेकिन माला जलाशय इतिहास की अमिट धरोहर बनकर खड़ा है।

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