हालांकि, यह जलाशय केवल जल स्रोत नहीं है, बल्कि उस संघर्ष और बलिदान की अमिट निशानी भी है, जिसे अंग्रेजों ने इतिहास से मिटाने की कोशिश की थी। आज भी माला जलाशय राजा गंगाधर की वीरता और ब्रिटिश हुकूमत के अत्याचारों की कहानी बयां करता है।
1929 में हुआ था जलाशय का निर्माण
ब्रिटिश सरकार ने 1929 में मानगढ़ रियासत को पूरी तरह उजाड़ने के लिए माला जलाशय का निर्माण कराया। इसके बाद रियासत वीरान हो गई और वहां जलाशय अस्तित्व में आया। जलाशय बनने के बाद वहां नई बसाहट शुरू हुई, जिसे आगे चलकर माला गांव के नाम से जाना गया।
अंग्रेजों के खिलाफ संघर्ष करने के कारण ब्रिटिश सरकार ने राजा गंगाधर को डकैत घोषित कर दिया और उन्हें काले पानी की सजा सुनाई गई। राजा गंगाधर के साथ चिलोद गांव के पंडा परिवार के एक सदस्य और ग्राम कोटवार को भी इसी कठोर सजा का भागी बनाया गया।
वीरता की गवाही देता है ये जलाशय
आज भी माला जलाशय राजा गंगाधर और उनके अनुयायियों के बलिदान की गवाही देता है। यह जलाशय सिर्फ पानी का स्रोत नहीं, बल्कि वीरता और संघर्ष का प्रतीक भी है। यह स्थल ब्रिटिश अत्याचारों और स्वतंत्रता संग्राम की याद दिलाता है। अंग्रेजों ने इस संघर्ष को भुलाने की भरसक कोशिश की, लेकिन माला जलाशय इतिहास की अमिट धरोहर बनकर खड़ा है।