खेती में यह चिंताजनक है कि फसल उत्पादन में रासायनिक खाद का इस्तेमाल पहले की अपेक्षा तीन गुना बढ़ गया है। इस वर्ष किसानों ने करीब 1.40 लाख मीट्रिक टन से अधिक यूरिया समेत अन्य रासायनिक खाद का इस्तेमाल किया। इससे समझा जा सकता है कि रासायनिक खाद से उत्पन्न कितना जहरीला अनाज और सब्जियां हम खा रहे हैं। इसकी तुलना में प्राकृतिक खेती अभी भी दिल्ली दूर की तरह है। इसका असर स्वास्थ्य पर पड़ रहा है। सब्जियों और अनाज का स्वाद भी पहले की तरह नहीं रह गया है।
आदिवासी अंचल में सेहतमंद अनाज
जिले में 37 फीसदी आबादी आदिवासी है। छिंदवाड़ा से लेकर तामिया, जुन्नारदेव, बिछुआ, अमरवाड़ा, हर्रई, परासिया और पांढुर्ना में निवासरत ये लोग सदियों से कोदो कुटकी, जगनी समेत अन्य अनाज और सब्जियां बिना रासायनिक खाद के उत्पन्न कर रहे हैं। इससे उनकी सेहत दूसरे वर्ग की तुलना में बेहतर रही है। एक अनुमान के अनुसार में जिले में प्राकृतिक और जैविक खेती का गैर सरकारी आंकड़ा 45 हजार हेक्टेयर है।हर व्यक्ति को सुधारनी होगी भोजन शैली
इस समय हर व्यक्ति एक ही ट्रेंड का भोजन करने की शैली पर आमादा है। जैसे गेहूं की रोटी का उपयोग। किसान संघ के अनुसार यदि हर व्यक्ति इस कुपोषित भोजन शैली को सुधार ले और प्रतिदिन मक्का, ज्वार, बाजरा जैसे मोटेअनाज को अपने भोजन में शामिल करे तो पाचन शैली में काफी सुधार हो सकता है। इसी तरह जैविक सब्जियों की खोज भी करनी होगी।कैंसर जैसे रोग तक पनप रहे
खेती में रासायनिक खाद के अंधाधुंध उपयोग का दुष्परिणाम मानव स्वास्थ्य पर पड़ा है। अनाज, सब्जियों की गुणवत्ता प्रभावित होने से गैस, पाचन समस्या और कैंसर जैसे रोग पनप रहे हैं। अब किसानों को इससे सबक लेकर गोबर खाद, प्राकृतिक कीटनाशक को अपनाना होगा। तभी हम विषाक्त भोजन से मुक्ति पा सकेंगे।-मेरसिंह चौधरी, प्रांतीय मंत्री भारतीय किसान संघ