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छतरपुर

बिना पंजीयन के चल रहे नगरपालिका- नगरपरिषद के वाहन, जिम्मेदारों को नियमों के पालन की परवाह नहीं

जहां एक ओर यातायात नियमों के पालन को लेकर आम नागरिकों पर कड़ी कार्रवाई की जा रही है, वहीं नगर पालिका और नगर परिषदों के करीब चार दर्जन वाहनों के खिलाफ कोई कदम नहीं उठाए जा रहे हैं।

छतरपुरApr 07, 2025 / 10:42 am

Dharmendra Singh

जिले में परिवहन विभाग की लापरवाही और प्रशासनिक भर्राशाही की एक हैरान करने वाली तस्वीर सामने आई है। जहां एक ओर यातायात नियमों के पालन को लेकर आम नागरिकों पर कड़ी कार्रवाई की जा रही है, वहीं नगर पालिका और नगर परिषदों के करीब चार दर्जन वाहनों के खिलाफ कोई कदम नहीं उठाए जा रहे हैं। इन वाहनों में से अधिकांश बिना पंजीयन के दौड़ रहे हैं, और न ही इनका ट्रैफिक रूल्स पालन किया जा रहा है। यह सवाल उठता है कि क्या परिवहन विभाग के नियम सरकार के लिए अलग और आम जनता के लिए अलग हैं?

नगर परिषद के वाहन बिना पंजीयन के दौड़ रहे हैं


छतरपुर जिले के विभिन्न नगर परिषदों और नगर पालिकाओं के पास ऐसे दर्जनों वाहन हैं, जिनका पंजीयन आज तक परिवहन विभाग में नहीं कराया गया है। ये वाहन सफाई व्यवस्था, कचरा निपटान और अन्य नगर निगम कार्यों के लिए इस्तेमाल होते हैं। इनमें ट्रैक्टर्स, जेसीबी, डंपर, कचरा वाहन, शव वाहन और कई अन्य प्रकार के वाहन शामिल हैं। इन वाहनों में से एक भी वाहन का पंजीयन परिवहन विभाग में नहीं किया गया, जिससे यह वाहन बिना नंबर प्लेट के ही सडक़ों पर दौड़ रहे हैं।

नगर पालिका छतरपुर और अन्य परिषदों में हालात बेहद चिंताजनक


नगर पालिका छतरपुर में 2005 में दो ट्रैक्टर खरीदे गए थे, जिनका पंजीयन आज तक नहीं हुआ है। इसके बाद परिषद को जेसीबी, डंपर, फायर मशीन, जीप जैसे भारी वाहन भी मिले, लेकिन इनका पंजीयन भी परिवहन विभाग में नहीं कराया गया। इस स्थिति का हाल सिर्फ छतरपुर नगर पालिका का नहीं, बल्कि जिले की अन्य नगर परिषदों खजुराहो, घुवारा और सटई नगर परिषदों का भी यही है। इन नगर परिषदों के पास भी कई वाहन हैं, लेकिन इनका पंजीयन परिवहन विभाग में नहीं हुआ है।

परिवहन व यातायात पुलिस की निष्क्रियता पर सवाल उठ रहे


जहां एक ओर आम नागरिकों को छोटे-छोटे नियमों का उल्लंघन करने पर भारी जुर्माना भरना पड़ता है, वहीं विभागीय अधिकारी और कर्मचारियों द्वारा बिना नंबर प्लेट के दौड़ते इन वाहनों के खिलाफ कोई कार्रवाई नहीं की जा रही है। यह प्रशासन की लापरवाही और नियमों के प्रति उपेक्षा को दर्शाता है। नागरिकों के लिए जो नियम हैं, वही सरकार के विभागीय वाहनों पर क्यों लागू नहीं होते, यह सवाल उठता है।

अधिकारी होंगे जिम्मेदार


हाल ही में मध्य प्रदेश विधानसभा में इस मुद्दे पर पूछे गए सवाल का जवाब देते हुए राज्य सरकार ने साफ तौर पर कहा कि यदि परिषद के इन वाहनों से कोई दुर्घटना होती है, तो इसके लिए संबंधित निकायों के अधिकारी और कर्मचारी जिम्मेदार होंगे। सरकार ने यह भी स्वीकार किया कि परिवहन विभाग ऐसे वाहनों के खिलाफ कार्रवाई करने के लिए सक्षम है, लेकिन इस दिशा में कोई ठोस कदम नहीं उठाया गया। सरकार का यह बयान सरकारी तंत्र की लापरवाही को उजागर करता है, क्योंकि यह वाहनों के पंजीयन में सरकार की भूमिका और जिम्मेदारी को नकारता है। जबकि एक ओर विभाग सडक़ पर बिना पंजीयन और नियमों के उल्लंघन करने वाले वाहनों को लेकर आम जनता पर जुर्माना लगा रहा है, वहीं दूसरी ओर खुद उसके विभागीय वाहन बिना किसी दंड के सडक़ों पर दौड़ रहे हैं।

विधानसभा में मुद्दे का उठना, फिर भी प्रशासनिक निष्क्रियता


यह मामला विधानसभा में भी उठ चुका है, लेकिन नगरीय प्रशासन विभाग की ओर से अब तक कोई गंभीर प्रयास नहीं किए गए हैं। वाहनों का पंजीयन न करना, प्रशासन की ढिलाई और जिम्मेदारी से बचने का एक बड़ा उदाहरण है। ऐसे वाहनों से होने वाली दुर्घटनाओं के लिए जिम्मेदारी संबंधित अफसरों और कर्मचारियों पर डालकर सरकार ने अपनी जिम्मेदारी से पल्ला झाड़ लिया है, जो कि एक बेहद चिंता का विषय है।

पत्रिका व्यू


खजुराहो, छतरपुर और जिले के अन्य नगर परिषदों में परिवहन विभाग की लापरवाही, नियमों की उपेक्षा और सरकारी तंत्र की ढिलाई स्पष्ट रूप से उजागर हो रही है। जहां आम नागरिकों को ट्रैफिक नियमों का पालन न करने पर जुर्माना भरना पड़ता है, वहीं सरकारी वाहनों के लिए नियमों का कोई पालन नहीं किया जा रहा है। यह न केवल नियमों का उल्लंघन है, बल्कि प्रशासन की निष्क्रियता और भ्रष्टाचार को भी दर्शाता है। अब सवाल यह उठता है कि क्या नागरिकों के लिए कानून और सरकार के विभागों के लिए अलग-अलग कानून हैं? क्या सरकारी वाहनों के लिए नियमों का पालन करना अनिवार्य नहीं है?

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