सोलर पैनल की खरीदारी में धांधली
वर्ष 2023-24 में नीति आयोग द्वारा स्कूल शिक्षा विभाग में सीधे आए बजट से तत्कालीन कलेक्टर के निर्देशन में एक 8 सदस्यीय कमेटी गठित की गई थी, ताकि जिले के 74 स्कूलों में सोलर पैनल लगाए जा सकें। इसके लिए सवा करोड़ रुपए की राशि स्वीकृत की गई थी। इस प्रक्रिया में तय किया गया था कि स्कूलों में हाइब्रिड सोलर पैनल लगाए जाएंगे, ताकि स्कूलों की बिजली खपत कम हो सके और साथ ही अतिरिक्त बिजली का उत्पादन भी किया जा सके। हालांकि, इस योजना के तहत लगाए गए पैनल न तो हाइब्रिड थे और न ही उनकी गुणवत्ता मानकों के अनुरूप थी। कई स्कूलों में नॉन-हाइब्रिड पैनल लगाए गए, जिनकी कार्यक्षमता भी बेहद खराब थी।
केस 01 – कुर्राहा हाईस्कूल में खराब सोलर पैनल
कुर्राहा हाईस्कूल में जबलपुर की सेफरोन सोलर सिस्टम कंपनी द्वारा सोलर पैनल लगाए गए थे। लेकिन यहां पर भी समस्याएं शुरू से ही थीं। पीवीसी पाइप फिटिंग खराब थीं, बैटरियों के तार खुले में पड़े हुए थे, और इनवर्टर और बैटरियों को लकड़ी की तख्तियों और टूटी कुर्सियों पर रखा गया था। प्राचार्य जनक सिंह यादव का कहना है कि यह सब कुछ उनके कार्यकाल से पहले की प्रक्रिया का हिस्सा है। उन्होंने बताया कि इस पूरे काम की प्रक्रिया उच्च अधिकारियों के निर्देश पर की गई थी। यहां तक कि पैनल भी नॉन-ग्रिड थे, जबकि शासन ने निर्धारित किया था कि हाइब्रिड पैनल लगाए जाएं। इसके बावजूद अधिकारियों ने सत्यापन रिपोर्ट दे दी और पूरी राशि का भुगतान कर दिया।
केस -02- घुवारा हाईस्कूल में भी सोलर पैनल बेकार
घुवारा के उच्चतर माध्यमिक विद्यालय में भी सोलर पैनल सिस्टम पिछले छह महीने से बंद पड़ा है। यहां पर पीवीसी पाइपलाइन उखड़ी पड़ी है, बैटरियां जमीन पर रखी हुई हैं और इनवर्टर भी खराब हो चुका है। स्कूल के लिपिक रामप्रसाद अहिरवार का कहना है कि इस सोलर सिस्टम को ठीक करने के लिए उन्होंने कई बार वरिष्ठ अधिकारियों को सूचित किया है, लेकिन कोई कार्रवाई नहीं की गई। अब वे घर के इनवर्टर से काम चला रहे हैं, क्योंकि स्कूल के सोलर सिस्टम में कोई सुधार नहीं किया जा रहा है।
सोलर पैनल की गुणवत्ता पर सवाल
जिले के कई अन्य स्कूलों में भी सोलर पैनल की गुणवत्ता पर सवाल उठाए जा रहे हैं। अधिकांश स्कूलों में सोलर पैनल के लिए निर्धारित उपकरण नहीं लगाए गए हैं। न ही बैटरियों के लिए उचित स्टैंड बनाए गए हैं। जहां बैटरियों के लिए वुडन रैक का प्रावधान था, वहां लकड़ी की तख्तियां और टूटे-फूटे स्टैंड पर बैटरियां रखी गई हैं। सोलर पैनल का स्ट्रक्चर भी खराब हालत में है और तडि़त चालक जैसी महत्वपूर्ण सामग्री भी गायब है।
फर्जी सत्यापन और भुगतान का आरोप
इसके बावजूद, अधिकारियों ने भौतिक सत्यापन रिपोर्ट में सब कुछ सही बताया और राशि का भुगतान कर दिया। इस फर्जी सत्यापन से यह साफ होता है कि शिक्षा विभाग में बड़े पैमाने पर भ्रष्टाचार हुआ है और राशि का बंदरबांट किया गया है। प्राचार्य और स्कूल स्टाफ का कहना है कि उन्हें केवल दस्तावेजों पर हस्ताक्षर करने के लिए कहा गया था, जबकि यह पूरी प्रक्रिया उच्च अधिकारियों के निर्देश पर की गई थी।
कोई समाधान नहीं निकाला
इस पूरे मामले में कोई ठोस समाधान नहीं निकलता दिख रहा है। जिला शिक्षा अधिकारी आरपी प्रजापति ने कहा कि भारत सरकार का पूरा प्रोजेक्ट था और उच्च स्तर से ही पूरा काम हुआ था। हालांकि, उन्होंने यह भी बताया कि पैनलों में खराबी को दूर करने के प्रयास किए जाएंगे। लेकिन जिन स्कूलों में सोलर पैनल अभी भी खराब हैं, उनके लिए कोई ठोस कार्रवाई नहीं की जा रही है।
शिक्षा विभाग और अधिकारियों पर गंभीर सवाल
यह पूरा मामला शिक्षा विभाग के अधिकारियों की लापरवाही और भ्रष्टाचार की ओर इशारा करता है। स्कूलों में सोलर पैनल की खराबी और उनकी मरम्मत न होने से बच्चों को न तो उचित बिजली मिल पा रही है और न ही बिजली बिल में कोई कमी हो रही है। इसके अलावा, सोलर पैनल की गुणवत्ताहीनता और उनके गलत सत्यापन से सरकारी खजाने को भारी नुकसान हुआ है।
पत्रिका व्यू
इस मामले में अगर जल्द कार्रवाई नहीं की गई तो यह न केवल शिक्षा विभाग के कामकाजी स्तर को प्रभावित करेगा, बल्कि सरकार की योजनाओं की विश्वसनीयता भी सवालों के घेरे में आ जाएगी। सोलर पैनल घोटाला इस बात का प्रमाण है कि जब तक जिम्मेदार अधिकारियों और कर्मचारियों के खिलाफ ठोस कार्रवाई नहीं होगी, तब तक ऐसी धोखाधड़ी और भ्रष्टाचार का सिलसिला जारी रहेगा।