न लक्ष्य पूरे किए, न कोर्ट में केस दाखिल
समीक्षा में यह बात सामने आई कि एफएसओ और ड्रग इंस्पेक्टर खाद्य और औषधियों के पर्याप्त नमूने लेने में नाकाम रहे। तय मानकों और विभागीय लक्ष्यों के अनुसार नमूने नहीं लिए गए, जिससे मिलावटखोरों और नकली दवाओं के कारोबार पर अंकुश नहीं लग पाया। इतना ही नहीं फेल पाए गए नमूनों पर भी कोई ठोस कार्रवाई नहीं की गई। लैब में परीक्षण के दौरान जिन खाद्य पदार्थों और दवाओं के नमूने अमानक पाए गए, उन पर न्यायालय में प्रकरण तक दायर नहीं किया गया। इससे साफ होता है कि अधिकारी जानबूझकर मामले को टालते रहे, जिससे मिलावट माफिया बेखौफ होकर सक्रिय रहे।
ड्रग इंस्पेक्टर पर पहले भी लगे हैं गंभीर आरोप
ड्रग इंस्पेक्टर रामलखन पटेल की विवादास्पद कार्यशैली कोई नई बात नहीं है। जानकारी के अनुसार जबलपुर में भी इनके खिलाफ निलंबन की कार्रवाई हो चुकी है और छतरपुर में भी पूर्व में इन्हें निलंबित किया जा चुका है।बावजूद इसके, कार्यशैली में कोई सुधार नहीं आया। एक बार फिर इनकी लापरवाही से साफ हो गया है कि दवा माफियाओं पर कार्रवाई करने की बजाय, ये अधिकारी केवल कागजी खानापूर्ति तक सीमित हैं।
स्वास्थ्य सुरक्षा से हो रहा खिलवाड़
शहर में मिलावटी खाद्य पदार्थों और नकली दवाओं का व्यापार तेजी से बढ़ रहा है, जिससे लोगों की सेहत खतरे में है। बच्चों से लेकर बुजुर्ग तक, सभी वर्ग गंभीर बीमारियों का शिकार हो रहे हैं, लेकिन जिम्मेदार अधिकारी कार्रवाई की बजाय मौन साधे बैठे हैं। ऐसे में कलेक्टर की यह सख्त कार्रवाई एक मिसाल के रूप में देखी जा रही है, जिससे अन्य अधिकारियों को भी सीख मिले।
क्या बोले कलेक्टर?
कलेक्टर पार्थ जैसवाल ने साफ कहा है क खाद्य और औषधि सुरक्षा सीधे आमजन की सेहत से जुड़ा विषय है। इस लापरवाही को बर्दाश्त नहीं किया जाएगा। जिम्मेदार अधिकारियों के खिलाफ कार्रवाई जारी रहेगी।पूरे विभाग की जांच की मांग
अब आमजन की मांग है कि सिर्फ वेतन रोकने से काम नहीं चलेगा, बल्कि पूरे खाद्य एवं औषधि विभाग की कार्यप्रणाली की गहन जांच होनी चाहिए। साथ ही समय-समय पर स्वतंत्र ऑडिट और सैंपलिंग रिपोर्ट सार्वजनिक की जाए, ताकि लोग जागरूक हों और मिलावटखोरों की पहचान की जा सके। यह मामला केवल अधिकारियों की लापरवाही का नहीं, बल्कि लाखों लोगों की सेहत से जुड़े विश्वास का संकट है।