शहर में जगह-जगह सजे मटकों के स्टॉल
गर्मी बढ़ते ही छतरपुर के बाजारों, चौराहों और गली-नुक्कड़ों पर मटकों की दुकानें सज गई हैं। दुकानदारों के अनुसार, जैसे ही तापमान 40 डिग्री के पार पहुंचा, वैसे ही मटकों की बिक्री में जबरदस्त तेजी आ गई। मिट्टी के साधारण मटकों के साथ-साथ अब आधुनिक डिजाइनों वाले मटके भी बाजार में उपलब्ध हैं, जिनमें नल लगे होते हैं और जो सुंदर रंग-बिरंगे कवर के साथ आते हैं। ये न सिर्फ देखने में आकर्षक हैं, बल्कि उपयोग में भी सुविधाजनक हैं।
कीमत 50 से 300 रुपए तक, ग्राहकों की लंबी कतारें
बाजार में मटकों की कीमतें 50 रुपए से शुरू होकर 300 रुपए तक पहुंच रही हैं, जो उनके आकार, डिजाइन और फीचर्स (जैसे नल, ढक्कन, रंगीन कवर आदि) पर निर्भर करती हैं। दुकानदारों का कहना है कि लोग अब पहले की तुलना में अधिक समझदारी से खरीदारी कर रहे हैं और स्वास्थ्य को प्राथमिकता दे रहे हैं। स्थानीय व्यापारी रामेश्वर प्रजापति बताते हैं पिछले कुछ सालों से मटकों की बिक्री में गिरावट आ रही थी, लेकिन अब लोग फिर से देसी चीजों की ओर लौट रहे हैं। इस बार तो हम जितने मटके ला रहे हैं, उतने बिक भी जा रहे हैं।
स्वास्थ्य के लिहाज से फायदेमंद
मिट्टी के मटके से पानी पीना आयुर्वेदिक दृष्टि से भी लाभकारी माना गया है। डॉक्टरों के अनुसार मटके का पानी प्राकृतिक रूप से ठंडा होता है और यह शरीर के लिए कूलिंग एजेंट की तरह काम करता है। इसके अलावा मटके का पानी पाचन में सहायक होता है। यह शरीर की गर्मी को संतुलित करता है। फ्रिज के पानी की तरह गला खराब नहीं करता। इसमें किसी प्रकार का रसायन नहीं होता, जिससे यह पूरी तरह प्राकृतिक रहता है।
गांव से आ रहे कारीगर, बढ़ा रोजगार
छतरपुर में मटकों की डिमांड ने ग्रामीण कुम्हारों को भी रोजगार का नया अवसर दिया है। पड़ोसी जिलों और गांवों से कारीगर शहर पहुंचकर मटके बेच रहे हैं। इससे पारंपरिक कुम्हारी कला को भी नया जीवन मिला है। साथ ही, पर्यावरण के अनुकूल विकल्प अपनाने के लिए लोगों में जागरूकता भी बढ़ी है।
फ्रिज नहीं, मटका ही सही
जहां एक ओर बिजली कटौती और बढ़ते बिलों से लोग परेशान हैं, वहीं मटका एक ऐसा विकल्प बनकर उभरा है जो न बिजली खपत करता है, न जगह ज्यादा घेरता है और न ही महंगा है। यही वजह है कि इस देसी फ्रिज को लेकर हर उम्र के लोग उत्साहित हैं। नगरपालिका और पर्यावरण प्रेमी समूह भी अब मिट्टी के बर्तनों को प्रमोट करने की बात कर रहे हैं। आने वाले समय में यदि यह ट्रेंड ऐसे ही बना रहा तो मटका सिर्फ घरों में नहीं, दफ्तरों, स्कूलों और दुकानों में भी आम हो जाएगा। छतरपुर में देसी फ्रिज की वापसी यह संदेश दे रही है कि कभी-कभी परंपरा ही सबसे आधुनिक समाधान होती है। जब सेहत और प्रकृति दोनों को साथ रखना हो, तो मटका वाकई सबसे ठंडा और सबसे सस्ता विकल्प है।