शिक्षा को व्यापार नहीं बनने देंगे: कलेक्टर
कलेक्टर पार्थ जैसवाल ने स्पष्ट शब्दों में कहा कि शिक्षा को किसी भी सूरत में व्यवसाय नहीं बनने दिया जाएगा। यह बच्चों का अधिकार है और इसकी रक्षा करना प्रशासन की प्राथमिकता है। उन्होंने बताया कि कुछ नामचीन स्कूलों द्वारा प्राथमिक कक्षाओं में भी 2000 से 5000 रुपए तक की फीस वसूली जा रही है, जो पूरी तरह से नियमों के विरुद्ध है।
विशेष जांच दल गठित, जिलेभर के स्कूलों की होगी जांच
कलेक्टर ने बताया कि जिले के 400 से अधिक निजी स्कूलों के निरीक्षण के लिए विशेष जांच टीमें गठित की गई हैं। ये टीमें स्कूलों की फीस संरचना, ट्रांसपोर्ट चार्ज, रसीदों का रिकॉर्ड, शिक्षक वेतन और बुनियादी सुविधाओं की बारीकी से जांच करेंगी। यदि कहीं भी मनमानी फीस वसूली, रसीद न देना, या अभिभावकों पर किताबों के लिए दबाव जैसी शिकायतें पाई जाती हैं, तो न केवल राशि वापस कराई जाएगी, बल्कि विधिक कार्रवाई भी की जाएगी।सिलेबस और किताबों पर भी रखी जा रही नजर
प्रशासन ने केवल फीस वसूली ही नहीं, बल्कि स्कूलों द्वारा महंगे निजी प्रकाशनों की किताबों को अनिवार्य बनाने की प्रवृत्ति को भी गंभीरता से लिया है। कलेक्टर जैसवाल ने निर्देश दिए हैं कि, एनसीईआरटी की किताबों को प्राथमिकता दी जाए। यदि निजी प्रकाशनों की पुस्तकें आवश्यक हों, तो वे अधिकतम दो विषयों तक सीमित रहें। हालांकि वर्तमान में अधिकांश निजी स्कूलों में पूरे सिलेबस के लिए प्राइवेट किताबें निर्धारित की जा रही हैं, जिससे एक सामान्य अभिभावक के लिए बच्चों की शिक्षा खर्च उठाना कठिन हो गया है।
अभिभावकों को मिल रही राहत
प्रशासन की इस कार्रवाई से अभिभावकों को काफी राहत मिली है। लंबे समय से निजी स्कूलों की मनमानी और पारदर्शिता की कमी से परेशान अभिभावक इस निर्णय का स्वागत कर रहे हैं। एक स्थानीय अभिभावक ने कहा हर साल फीस अचानक बढ़ा दी जाती है, किताबों की दुकानें तय कर दी जाती हैं, और जवाबदेही का कोई सिस्टम नहीं होता। अब पहली बार लग रहा है कि प्रशासन हमारे साथ खड़ा है।
एसडीएम से करें शिकायत
अभिभावक यदि किसी स्कूल की अनियमितता से परेशान हैं, तो वे शिक्षा विभाग की हेल्पलाइन या संबंधित एसडीएम कार्यालय में लिखित शिकायत दर्ज करा सकते हैं। प्रशासन ने भरोसा दिलाया है कि हर शिकायत पर त्वरित और निष्पक्ष कार्रवाई की जाएगी। छतरपुर जिला प्रशासन की यह सख्ती न केवल शिक्षा को पारदर्शी बनाने की दिशा में एक बड़ा कदम है, बल्कि अभिभावकों के अधिकारों की रक्षा और निजी स्कूलों की जवाबदेही तय करने का एक महत्वपूर्ण प्रयास भी है।