रायपुर जिले के देवभोग थाना क्षेत्र के उरमाल गांव निवासी चंपालाल की शादी 1998 में कुसुम उर्फ गंगा से हुई थी। शादी के दो साल बाद 29 दिसंबर 2000 को गंगा अपने ससुराल में खाने बनाते समय स्टोव फटने से बुरी तरह झुलस गई थी। पहले देवभोग अस्पताल और फिर रायपुर के अस्पताल में भर्ती कराया गया। इलाज के दौरान 30 दिसंबर की रात उसकी मौत हो गई। डाक्टरों की रिपोर्ट के मुताबिक, महिला 90 से 100 प्रतिशत झुलस गई थी।
पिता व बहन ने आरोप लगाए, कोर्ट ने पाया अविश्वसनीय, इसे भी आधार माना गया
मृतका के पिता शिवलाल ने आरोप लगाया था कि शादी के समय दहेज में 60 हजार रुपए नकद और बेटी को जेवर पहनाकर विदा किया था। चंपालाल के पिता ने दहेज में सवा लाख रुपए मांगे थे। समय-समय पर बेटी द्वारा भेजे गए पत्रों में उसने परेशान होने की बात कही थी और पिता से लेने आने की गुहार भी लगाई थी। निचली अदालत में सुनवाई के दौरान मृतका की बहन लक्ष्मी ने कोर्ट में ससुराल वालों पर गंभीर आरोप लगाते हुए कहा कि गंगा को लाल मिर्च खिलाई जाती थी, पीटा जाता था, काम के बोझ से वह बीमार रहने लगी थी और छह महीने का गर्भ भी गिर गया था। कोर्ट ने इस गवाही को अत्यधिक बढ़ा-चढ़ाकर प्रस्तुत करना माना और गवाही को निरस्त किया।
आरोप साबित करने कोई प्रत्यक्ष प्रमाण नहीं मिला
मृतका का इलाज करने वाले चिकित्सक ने कोर्ट को बताया कि गंगा जब होश में थी जब उसने बताया कि खाना बनाते समय स्टोव के फटने के कारण वह जल गई है। चिकित्सक ने कोर्ट को महत्वपूर्ण जानकारी दी कि गंगा मानसिक रूप से अस्वस्थ थी। मनोरोग चिकित्सक के यहां पहले इलाज चला था। हाईकोर्ट ने अपने फैसले में लिखा कि किसी भी गवाह ने यह स्पष्ट नहीं बताया कि गंगा को आखिरी बार उनके ससुराल वालों ने कब प्रताड़ित किया।
दहेज
हत्या (धारा 304बी) में मृत्यु से ठीक पहले प्रताड़ना साबित जरूरी है। लेकिन इस मामले में वह कड़ी नजर नहीं आई। गंगा को आत्महत्या के लिए उकसाने (धारा 306) का कोई सीधा या अप्रत्यक्ष सबूत नहीं मिला है।