ब्लैकलिस्टेड होने के बाद फिर ठेका कैसे मिला?
परमार कंस्ट्रक्शन (आगरा) ने वर्ष 2020 में स्मार्ट सिटी परियोजनाओं में फर्जी अनुभव प्रमाणपत्र लगाकर ठेका लिया था। शिकायत के बाद हुई जांच में प्रमाणपत्र फर्जी पाए गए, जिसके चलते तत्कालीन सीईओ अभिषेक आनंद ने 3 अक्टूबर 2020 को फर्म की धरोहर राशि जब्त कर ब्लैकलिस्ट कर दिया था। इसके बावजूद, नगर निगम के कुछ अधिकारियों की “मेहरबानी” से यही फर्म दोबारा नगर निगम को गुमराह कर ठेका हासिल करने में सफल हो गई।जब तक ब्लैक लिस्ट नहीं हटेगी तब तक नहीं मिल सकता ठेका
नगर निगम के कुछ अधिकारी नगर आयुक्त को गुमराह कर रहे हैं कि फॉर्म को 1 साल के लिए ब्लैक लिस्ट किया गया, लेकिन ऐसा कोई शासनादेश नहीं है। जिसमें यह स्पष्ट हो कि फर्म को 1 साल के लिए ब्लैक लिस्ट किया गया था। फर्म पर से ब्लैक लिस्ट का आरोप तब तक वापस नहीं हो सकता, जब तक सक्षम अधिकारी वापस नहीं करता है। तब तक उसे ब्लैक लिस्ट माना जाता है। नगर आयुक्त द्वारा ब्लैक लिस्ट की गई फर्म पर से ब्लैक लिस्ट का आरोप हटाने का अधिकार कमिश्नर व इससे ऊपर के सक्षम अधिकारियों को है। इसके बावजूद नगर निगम अधिकारियों ने परमार कंस्ट्रक्शन के ब्लैक लिस्ट होने के बाद भी ठेका दे दिया।फैक्ट्स एक नजर में,
ठेका राशि: ₹5.28 करोड़कार्यकाल: 2 वर्ष
कर्मचारी: 125 माली व सफाईकर्मी
ठेका तिथि: 5 नवंबर 2024
फर्म ब्लैकलिस्टिंग तिथि: 3 अक्टूबर 2020
टेंडर प्रक्रिया में हेराफेरी का आरोप
स्वच्छ भारत मिशन के तहत मिले केंद्र सरकार के फंड का उपयोग करने के लिए निकाले गए इस टेंडर में भारी गड़बड़ी सामने आई है। टेंडर तैयार करने में आउटसोर्स कंप्यूटर ऑपरेटर सतीश कुमार से लेकर टेंडर कमेटी तक की मिलीभगत सामने आ रही है।टेंडर से गायब कर दी ईपीएफओ के अनिवार्यता की शर्त
टेंडर नोटिस में जरूरी शर्तों जैसे ईपीएफ, ईएसआई और फंड चालान की स्कैन कॉपी की अनिवार्यता रखी गई थी।लेकिन इन शर्तों को टेक्निकल चार्ट से जानबूझकर हटा दिया गया ताकि परमार कंस्ट्रक्शन आसानी से अर्ह हो सके।
कमेटी के किसी भी सदस्य ने चार्ट में बदलाव की जांच नहीं की और दस्तावेजों पर बिना सत्यापन के साइन कर दिए।