खेती में कम हो रहा बैलों का महत्व समय के साथ तकनीक बदलती गई। खेती का पूरा काम ट्रैक्टर और आधुनिक यंत्रों से शुरू कर दिया गया। इसमें बैलों का महत्व कम होता गया। खेत और तेल की घाणियों में अहम भूमिका निभाने वाले बैल अब सडक़ों पर लावारिस विचरण करने लगे। इस बार के ग्रीन बजट में राज्य सरकार ने प्रदेश के लघु व सीमांत किसानों को बैलों से परंपरागत खेती करने पर सालाना तीस हजार रुपए प्रोत्साहन राशि देने की घोषणा की है। सरकार का यह प्रयोग सफल होता है तो शहर और गांवों चौराहों ओर गली मोहल्लों में बैल लावारिस विचरण करते हुए नहीं नजर आएंगे।
योजना से दिन बहुरेंगे प्रोत्साहन राशि पाने के लिए किसान खेत की जुताई बैलों से करते हैं तो एक बार फिर बरसों बाद बैलों के गले पर बंधे घुंघरू के स्वर भोर ओर सांझ ढलने पर फिर सुनाई देने लगेंगे। राज्य सरकार की ओर से पहली बार ग्रीन बजट का अलग से प्रावधान किया गया है। सस्टेनेबल ग्रीन प्रणाली को प्रोत्साहित करने, जलवायु परिवर्तन की चुनौतियों से निपटने, बायोडायवर्सिटी, वाटर हार्वेङ्क्षस्टग, ग्रीन एनर्जी, रिसाइकङ्क्षलग आदि को प्रोत्साहित करने के लिए बजट की 11.34 प्रतिशत की राशि का प्रावधान ग्रीन बजट के लिए किया गया है। इसी के अंतर्गत वानिकी नीति में सतत कृषि, जल संचयन, पुनर्भरण में प्रदेश के लघु व सीमांत किसानों को बैलों से खेती करने पर प्रोत्साहन के लिए 30 हजार रुपए प्रति वर्ष देने की घोषणा की गई है। साथ ही ऐसे किसानों को गोबर गैस प्लांट लगाने के लिए अनुदान देना भी प्रस्तावित है।
गोपालन और जैविक खेती को मिलेगा बल इस घोषणा से खेती के पुराने युग की वापसी तो होगी ही। गोपालन को बढ़ावा मिलने से गोवंश के दिन भी फिरेंगे। चारे के कारण बोझ समझकर लावारिस छोड़ दिए जाने वाले बछड़े बैल बनकर खेती में सहयोगी बनेंगे। यह राशि छोटी जोत वाले किसानों के लिए सहारा बनेगी।
कृषि और पर्यावरण के लिए होगा फायदेमंद बैलों से खेती करने से किसानों को केवल आर्थिक लाभ ही नहीं मिलेगा, बल्कि इससे पर्यावरण को भी फायदा होगा। बैलों द्वारा की जाने वाली जुताई भूमि की उर्वरता को बनाए रखने में सहायक होती हैं। साथ ही यह जैविक खेती को बढ़ावा देने में मदद करेगी। जिससे खाद्य पदार्थों की गुणवत्ता भी बेहतर होगी।
गांवों में लगातार घट रही है बैलों की संख्या किसानों और बुजुर्गों की माने तो पहले गांव में बैलों की दर्जनों जोडिय़ां होती थी। एक किसान के बैल पूरे गांव की खेती में सहायक होते थे। समय बदल चुका है, अधिकतर किसानों ने बैलों को त्याग दिया है। ङ्क्षसचाई के साधनों से वंचित किसानों ने भी आधुनिक उपकरणों का सहारा लेकर बैलों की उपयोगिता को भुला दिया है। यही कारण है कि पशुधन की संख्या में तेजी से गिरावट आई है। यह योजना इस समस्या का समाधान कर सकती है। ओर बैलों के महत्व को फिर से स्थापित कर सकती है।
थोड़ा मुश्किल तो है, पर सरकार के आदेश की पालना होगी तो संभव भी होगा। इससे जैविक खेती को भी बढ़ावा मिलेगा। खाद्य पदार्थों की गुणवत्ता भी अच्छी होगी। धनराज मीणा, संयुक्त निदेशक, कृषि विभाग, बारां