कब है फाल्गुन पूर्णिमा और कब है होलिका दहन (Holika Dahan Kab Hai)
ज्योतिषाचार्य डॉ. अनीष व्यास के अनुसार साल 2025 में फाल्गुन पूर्णिमा 13 मार्च को सुबह 10:36 बजे शुरू होगी, जो अगले दिन दोपहर 12:15 बजे तक रहेगी। ऐसे में उदया तिथि की मान्यता से पूर्णिमा दूसरे दिन 14 मार्च को है, लेकिन इस दिन पूर्णिमा का मान तीन प्रहर से कम होगा। इसलिए होलिका दहन 13 मार्च को ही करना बेहतर है।शास्त्रीय मत भी है कि पूर्णिमा तिथि का मान तीन प्रहर से कम होने पर पहले दिन का मान निकालकर होलिका दहन करना चाहिए। इसलिए इस वर्ष होली का त्योहार 14 मार्च को मनाया जाएगा, जबकि इसके एक दिन पहले 13 मार्च को होलिका दहन है। होली उत्सव से आठ दिन पहले होलाष्टक लगेगा। होलाष्टक 6 मार्च से लग जाएगा।
होलिका दहन तिथि (Holika Dahan Tithi)
पूर्णिमा तिथि आरंभ: 13 मार्च , गुरुवार, प्रातः 10:36 से
पूर्णिमा तिथि समाप्त : 14 मार्च, शुक्रवार, दोपहर 12:15 तक
होलिका दहन पर भद्रा का साया, जानें होलिका दहन का मुहूर्त (Holika Dahan Muhurat Bhadra On Purnima Holika Dahan)
इस साल होलिका दहन के लिए 47 मिनट का ही समय रहेगा। इसकी वजह होलिका दहन के दिन 13 मार्च को भद्रा प्रातः 10:36 से आरंभ होकर मध्य रात्रि 11:27 तक भूमि लोक पर रहेगी, जो की सर्वथा त्याज्य है। अतः होलिका दहन भद्रा के बाद मध्य रात्रि 11:28 से मध्य रात्रि 12:15 बजे के बीच होगा।तर्क ये भी है कि 13 मार्च को प्रदोषकाल में भद्रा होने से होलिका दहन नहीं होगा। होलाष्टक होलिका दहन के बाद खत्म माना जाता है, लेकिन इस बार यह दूसरे दिन 12:24 बजे के बाद खत्म होगा। पूर्णिमा व्रत 14 मार्च को होगा। इसी दिन धुलंडी मनाई जाएगी। इस संबंध में मुहूर्त चिंतामणि में ये कहा गया है-
यथा भद्रायां हे न कर्तव्ये श्रावणी (रक्षाबंधन) फाल्गुनी (होलिकादहन) तथा।
श्रावणी नृपतिं हन्ति ग्राम दहति फाल्गुनी ॥ ये भी पढ़ेंः Chandra Grahan 2025: धुलंडी पर कन्या राशि में ग्रहण योग, जानें चंद्र ग्रहण का क्या होगा असर, उन्नति की राह खोलेगा या लाएगा आपदा
भद्रा में नहीं होते शुभ कार्य (Bhadra Ka Mahatv)
भविष्यवक्ता डॉ. अनीष व्यास के अनुसार पुराणों में कहा गया है कि, भद्रा सूर्य की पुत्री और शनिदेव की बहन हैं। भद्रा क्रोधी स्वभाव की मानी गई हैं, उनके स्वभाव को नियंत्रित करने के लिए भगवान ब्रह्मा ने उन्हें कालगणना या पंचांग के एक प्रमुख अंग विष्टिकरण में स्थान दिया है।पंचांग के 5 प्रमुख अंग तिथि, वार, योग, नक्षत्र और करण होते हैं। करण की संख्या 11 होती है। ये चर-अचर में बांटे गए हैं। इन 11 करणों में 7वें करण विष्टि का नाम ही भद्रा है।
मान्यता है कि ये तीनों लोक में भ्रमण करती हैं, जब मृत्यु लोक में होती हैं, तो अनिष्ट करती हैं। भद्रा योग कर्क, सिंह, कुंभ व मीन राशि में चंद्रमा के विचरण पर भद्रा विष्टिकरण का योग होता है, तब भद्रा पृथ्वीलोक में रहती है। इस समय शुभ काम से बचना चाहिए।