रामघाट पर काई के कारण तड़के ४ बजे युवक का पैर फिसला, डूबने से हुई मौत
९ दिन में दो छात्रों की मौत, जिम्मेदारों का जमीर भी डूबा!


९ दिन में दो छात्रों की मौत, जिम्मेदारों का जमीर भी डूबा!
उज्जैन. शिप्रा में नहाने के दौरान लोगों के डूबकर मरने के लगातार हादसे सामने आ रहे हैं। इन हादसों की वजह है जिम्मेदारों की घोर लापरवाही जिसकी वजह से बाहर से आने वालों की जान जा रही है। पिछले ९ दिन में ही रामघाट पर सूरत और भोपाल के दो छात्रोंं की मौत हो गई। सोमवार सुबह ४ बजे भोपाल से दोस्तों के साथ आया युवक रामघाट के पास सीढिय़ों पर काई होने से फिसल गया और गहरे पानी में जाने से उसकी मौत हो गई। उसके दोस्त बचाने के लिए आवाज लगाते रहे परंतु घाट पर कोई जान बचाने वाला नहीं था। मौत की सूचना के तीन घंटे बाद सुबह ७ बजे होमगार्ड की टीम पहुंची।
दोस्त गिड़गिड़ाते रहे तीन घंटे बाद निकाला शव
अमित (१९) पिता राजू कुण्डे निवासी पिपलानी भोपाल अपने ७ दोस्तों के साथ महाकाल दर्शन के लिए शहर आए थे। रात करीब २ बजे वे उज्जैन स्टेशन पहुंचे। यहां से सीधे रामघाट पर नहाने चले गए। सुबह ४ बजे करीब सिद्धाश्रम के पास सभी दोस्त नहा रहे थे तभी अमित भी नहाने उतरा तो घाट पर अंधेरा और सीढिय़ों पर काई होने की वजह से उसका पैर फिसल गया और वह गहरे पानी में चला गया। उसे डूबता देख दोस्तों ने आवाज लगाई, शोर मचाया पर कोई नदी में कूदने को तैयार नहीं था। बाद में उसके दोस्तों ने सभी की पेंट और शर्ट आपस में बांध कर नदी में फेंका परंतु तब तक वह नदी में डूब चुका था। इसके बाद उसका शव तीन घंटे नदी में ही पड़ा रहा करीब ७ बजे होमगार्ड की टीम घाट पर पहुंची और शव को बाहर निकाल अस्पताल भेजा। इस बीच उसके दोस्त घाट पर बैठकर गिड़गिड़ाते रहे और उन्होंने परिजनों को सूचना दी। उसके दोस्तों ने बताया कि अमित १०वीं का छात्र था और उसके पिता मजदूरी करते हैं। सोमवार सुबह पुलिस ने शव का पीएम करवा भोपाल भेजा है। इस बीच उसके परिजन भी उज्जैन पहुंच गए थे।
भूखी माता पर भी डूबने से युवक की मौत
इधर रविवार शाम को भूखीमाता घाट पर हेमंत अकोदिया निवासी जीवाजगंज की डूबने से मौत हो गई। उसके भाई नवीन ने बताया कि हेमंत अच्छा तैराक था लोगों ने बताया कि वह दो बार नदी पार चुका था और तीसरी बार में डूब गया।
सुरक्षा नहीं, क्या किसी बड़े हादसे का इंतजार?
९ दिन में सूरत और भोपाल के दो छात्रों की मौत हो गई। कारण, यहां सुरक्षा के इंतजाम नहीं है। रामघाट और सिद्धाश्रम पर पर्याप्त लाइट की सुविधा नहीं है, इसके अलावा घाट की सीढिय़ों पर काई फैली है जिसकी वजह से लोग फिसलकर नदी में गिर रहे हैं। गहराई के संकेतक नहीं है और न ही घाट पर जंजीर लगी है। जिसे पकडकर श्रद्धालु नदी में उतर सके। इस समस्या को लेकर पहली बार नहीं है जब हल सामने आए हो। कईं बार श्रद्धालुओं के डूबने के बाद हल खोजे गए पर इन पर काम नहीं हो पाया। बीते साल जो घाट पर संकेतक लगाए थे वे अस्थाई थे जो शिप्रा में आई बाढ़ में बह गए थे। इसके बाद संकेतक हीं नही लग पाए और न ही यहां सुरक्षा के कोई इंतजाम हुए हैं, क्यों कि जिम्मेदारों का जमीर ही डूब गया।
त्रिवेणी घाट पर भी सीढिय़ों पर काई जमने से लोगों के पैर फिसल रहे हैं। रविवार को अमावस्या स्नान होने के बाद भी निगम और प्रशासन की आंख नहीं खुली और सीढिय़ों पर जमी काई साफ नहीं करवाई गई। इससे साफ है कि जिम्मेदारों को लोगों की मौतों से कोई सरोकार नहीं, जबकि सालों से सीढिय़ों पर काई जमने की समस्या घाटों पर है। कई लोग तो काई की वजह से गिरकर घायल हो चुके हैं।
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