आम हो रही श्रवण हानि की समस्या जानकारों के अनुसार दुनिया भर में 150 करोड़ से ज्यादा लोगों को सुनने की क्षमता कमजोर है और करीब 43 करोड़ लोगों को सुनने में अक्षमता की समस्या है। आने वाले दशकों में मनोरंजन संबंधी शोर जैसे जोखिम कारकों के संपर्क में बढ़ौतरी और ओटिटिस मीडिया (मध्य कान का संक्रमण) जैसे अनुपचारित कान विकारों के बने रहने के कारण श्रवण हानि अधिक आम हो जाने का अनुमान है। 2030 तक 500 मिलियन से अधिक लोगों को सुनने की अक्षमता की समस्या होने की आशंका है, जिसके लिए पुनर्वास की आवश्यकता होगी। एक अरब से अधिक युवा लोग संगीत सुनने और वीडियो गेम खेलने जैसे मनोरंजक कार्यों के दौरान लंबे समय तक तेज ध्वनि के संपर्क में रहने के कारण स्थायी श्रवण हानि के जोखिम का सामना कर रहे हैं।
डीजे के शोर से दुकान छोड़, घर चला गया शहर में भी आए दिन जुलूस, शादी समारोह में देर तक तय मापदंडों से काफी तेज आवाज में डीजे साउण्ड बजते रहते है। कई बार तो इतनी तेज आवाज रहती है कि आसपास के घरों में बुजुर्ग और बीमार लोगों का दिल कांप उठता है। पिछले वर्ष शहर के धर्मादा चौराहा के समीप एक यात्रा कार्यक्रम में डीजे का शोर गूंजने से परेशान होकर हृद्य रोगी व्यापारी उसकी धर्मादा चौराहा के समीप स्थित दुकान छोडकर नाकोड़ा कॉलेनी अपने घर चला गया तथा यात्रा कार्यक्रम समाप्त होने पर शाम को वापस दुकान पर लौटा था। उसका कहना है कि आवाज इतनी तेज की कान तो दूर हार्ट पर असर पडऩे की आशंका हो गई थी।
सुरक्षित सुनने और अच्छी श्रवण देखभाल करने से सुनने की क्षमता में कमी के कई मामलों से बचा जा सकता है। सुनने की क्षमता में कमी से पीडि़त लोगों के लिए समय उसकी पहचान जरूरी है। जागरूकता की कमी से बहरापन बढ़ रहा है। विश्व स्वास्थ्य संगठन के मुताबिक भारत में करीब 63 मिलियन लोग बहरापन से ग्रसित है। सरकार ने राष्ट्रीय बहरापन कार्यक्रम भी शुरू किया हुआ है। बहरापन के प्रमुख कारण वंशानुगत भी हो सकता है। वायरस के सक्रमण, जन्म के समय ऑक्सीजन की कमी, जन्मजात पीलिया, जन्म के बाद दिमागी बुखार, ममस, मिजक के वायरस से संक्रमण, ज्यादा शोर, तेज पटाखा, डीजे साउंड, कुछ दवाइयों के दुष्प्रभाव, लम्बे समय तक कान बहने, कान की हड्डी सडऩे, काम में गांठ, कान के पीछे पानी भर जाने आदि से बहरापन हो सकता है। इसे बचने के लिए कान की सफाई रखें, समय पर जांच कराकर दवा लेवें, जो बीमारी ऑपरेशन से ठीक हो सकती है, उसका तुरंत उपचार कराएं। कान में नुकीली वस्तुु नहीं डालना चाहिए। ध्वनि प्रदूषण वाले इलाकों में जाने से बचना चाहिए। कान पर थप्पड़ नहीं मारना चाहिए। समय पर उपचार एवं परामर्श लेना चाहिए।
डॉ. पवन कुमार मीणा, कनिष्ठ विशेषज्ञ (कान, नाक गला रोग) जिला अस्पताल