महंगाई बढ़ी, यूनिट कोस्ट घटी
आरटीई के तहत निशुल्क प्रवेश के बदले स्कूलों को दी जाने वाली पुनर्भरण राशि की यूनिट कोस्ट पिछले 9 साल में घटी ही है। 2015-16 तक स्कूलों को प्रति विद्यार्थी 17582 रुपए दिए जा रहे थे, जो 2016-17 में 14919, 2017-18 में 13754, 2018-19 में 13536, 2019-20 में 10579, 2020-21 में 11802 व 2021-22 से अब तक 13535 रुपए हैं। बहुत सी निजी स्कूलों की तो फीस के मुकाबले ये राशि एक चौथाई से भी कम है। ऐसे में हर साल बढ़ती महंगाई के बीच भी यूनिट कोस्ट नहीं बढ़ाने को निजी स्कूल अन्याय बता रहे हैं।
कोर्स से दस गुना तक कम दाम
निशुल्क प्रवेशित बच्चों की किताबों का खर्च भी निजी स्कूलों पर भार बढ़ा रहा है। पुनर्भरण राशि के तौर पर स्कूलों को सरकार 202 रुपए प्रति विद्यार्थी दे रही है, जबकि उनका कोर्स पांच से 10 गुना तक महंगा है। उस पर वह राशि भी शिक्षा विभाग ने पूरा सत्र बीतने के बाद बच्चों के ही खातों में देना तय किया है। ऐसे में सत्र की शुरुआत में ही बच्चों को किताबें देकर पूरे सत्र की पढ़ाई करवाने वाले निजी स्कूलों के हाथ ये राशि भी नहीं लगी है। ऐसे में स्कूल संचालकों में इसे लेकर भी आक्रोश है। हालांकि बहुत सी स्कूलों में बच्चों से किताबों की राशि लिए जाने के मामले भी सामने आ चुके हैं।
उम्मीद टूटी, ज्यादा उलझे
निजी स्कूलों को इस बार पुनर्भरण राशि बढ़ने की उम्मीद थी, लेकिन शिक्षा विभाग ने उम्मीद तोड़ने के साथ उनकी उलझन ज्यादा बढ़ा दी। विभाग ने किताबों की यूनिट कोस्ट 202 रुपए भी फीस के साथ जोड़ते हुए कुल यूनिट कोस्ट 13737 बता दी। साथ ही किताबों की राशि बच्चों के खातों में डीबीटी करने के लिए उनके जन आधार पीएसपी पोर्टल पर उपलब्ध करवाने की जिम्मेदारी निजी स्कूलों को देते हुए फीस की पुनर्भरण राशि उसके बाद ही जारी करने का आदेश भी दे दिया। चूंकि बहुत से बच्चों के खाते जनाधार से लिंक नहीं होने की वजह से ये काम काम पेचीदा है। इससे स्कूलों के सामने नई परेशानी खड़ी हो गई है।
इनका कहना है:—
आरटीई की पुनर्भरण राशि खासतौर पर ग्रामीण क्षेत्र की स्कूलों के लिए प्राणवायु है। सरकार को यूनिट कोस्ट बढ़ाते हुए राशि समय पर उपलब्ध करवानी चाहिए। पाठ्य पुस्तक की राशि बच्चों के खाते में जमा करवाना अच्छा कदम है, लेकिन इस साल व्यवहारिक नहीं होने से इस व्यवस्था को अगले साल से लागू करना चाहिए।बीएल रणवां, जिलाध्यक्ष, निजी शिक्षण संस्थान संघ।