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शिवपुरी

एमपी के इस इलाके में बच्चों को जकड़ रही गंभीर बीमारी, चलना-फिरना तो दूर खिसकना भी असंभव, जानें लक्षण

MP News : बदरवास में मस्कुलर डिस्ट्राफी बीमारी से जूझ रहे दो किशोर और दो युवक। जिनसे थी सेवा की आस, अब उन्हीं बच्चों की माता-पिता को करनी पड़ रही है सेवा।

शिवपुरीFeb 27, 2025 / 03:27 pm

Faiz

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संजीव जाट की रिपोर्ट

MP News : जिन बच्चों से माता-पिता और परिवार के वरिष्ठ जनों को सेवा की आस थी, उन्हीं बच्चों की अब बुजुर्ग माता-पिता व परिजन को सेवा करना पड़ रही है। ये सब हुआ मस्कुलर डिस्ट्रॉफी बीमारी के कारण। इस बीमारी के कारण बदरवार नगर के चार परिवारों के वे बच्चे जूझ रहे हैं, जो 12 साल की उम्र तक तो ठीक तो इसके बाद उन्हें एकाएक बीमारी ने घेर लिया और अब ये एक ही स्थान पर बैठकर या लेटकर जीवन गुजार रहे हैं। ऐसे नहीं है कि परिजन ने इनका इलाज न कराया हो, इलाज के लिए परिजन जमीन तक बेच चुके हैं, बावजूद उनके स्वास्थ्य में कोई सुधार नहीं हुआ और अब वे परिजन के सहारे जिंदगी जी रहे हैं।
जिस मां ने अपनी कोख में कष्ट और परेशानी सहकर 9 माह जिस बच्चे को रखा हो और जन्म के बाद उसी बच्चे को लाइलाज गंभीर बीमारी हो जाए तो उस मां और परिवार पर क्या बीतेगी। यह सिर्फ वही मां और उसका परिवार समझ सकता है। हम बात कर रहे हैं मध्य प्रदेश के शिवपुरी जिले के अंतर्गत आने वाले बदरवास शहर में तेजी से पांव पसार रही एक गंभीर बीमारी की, जिसनें अबतक कई लोगों को अपनी चपेट में ले लिया है। बीमारी का नाम है मस्कुलर डिस्ट्रॉफी, जिसकी चपेट में चार परिवारों के बच्चे आ चुके हैं, जिसमें जन्म के 10 से 12 साल बाद मांसपेशियां क्षतिग्रस्त होकर बच्चों को बिस्तर पर ले आती हैं।
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10 से 15 साल तक सबकुछ ठीक था

बदरवास नगर में इस लाइलाज गंभीर मस्कुलर डिस्ट्रॉफी बीमारी से 4 बच्चे पीड़ित हैं। ये बच्चे जन्म से 10 से 15 साल की उम्र तक तो सामान्य बच्चों की तरह रहे। पढ़ाई की और खूब खेले, लेकिन जब इस मस्कुलर डिस्ट्रॉफी बीमारी ने इन्हें घेर लिया तो हंसते खेलते अच्छे भले बच्चे अब पूर्ण रुप से शारीरिक अक्षमता के कारण एक जगह ही स्थिर होकर अपना जीवन गुजार रहे हैं। इन चारों बच्चों की दैनिक दिनचर्या शौच समेत स्नान आदि भी इनके माता पिता एक ही स्थान पर करवा रहे हैं।
-उदाहरण 1

दोनों बच्चे हुए दिव्यांग, इलाज में बेचनी पड़ी 15 बीघा जमीन

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नगर के वार्ड 11 में रहने वाले धनपाल उर्फ धन्नू परिहार के दो बेटे रितिक(14) व नैतिक (12) जन्म के 8 साल की उम्र तक तो चलते-फिरते रहे। उसके बाद एकाएक उनके पैरों की मांसपेशियों में कुछ ऐसी गड़बड़ हुई कि दोनों बेटे चलने-फिरने में असमर्थ होकर दिव्यांग हो गए। अब वे अपने तीसरे बेटे को लेकर चिंतित हैं कि कहीं वो भी दो बेटों की तरह दिव्यांग न हो जाए। महत्वपूर्ण बात यह है कि दो बेटों के इलाज में यह परिवार 15 बीघा जमीन बेचने के बाद अब मजदूरी करने को मजबूर है। दिव्यांग होने से परेशान माता-पिता ने उनका इलाज इंदौर व भोपाल में डॉक्टरों से कराया। बावजूद इसके दोनों बच्चों को कोई लाभ नहीं मिला और वह दिव्यांग बनकर रह गए है।
-उदाहरण 2

माता-पिता के निधन के बाद भाई कर रहा देखरेख

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बदरवास के वार्ड 6 की पटवारी कॉलोनी में रहने वाले 29 वर्षीय अंकित पुत्र स्वर्गीय महेश सोनी भी इस गंभीर बीमारी मस्कुलर डिस्ट्रॉफी से पीड़ित हैं। अंकित के माता पिता का निधन हो चुका है। इसके उपचार में भी परिजन जमीन जायदाद बेच चुके हैं। कक्षा 10 तक पढ़ाई करने के बाद एकदम से अंकित को कोई बीमारी हुई और मांसपेशियों में जकड़न के बाद ऐसी स्थिति बनी कि चलना फिरना तो दूर की बात, स्थान से सरक तक नहीं पा रहे। एक ही स्थान पर पड़े-पड़े दिनचर्या बिस्तर पर ही बीत रही है। अंकित की देखरेख उसका बड़ा भाई योगेश करता है। पूरा परिवार इस बीमारी को लेकर काफी हताश और दुखी है।
-उदाहरण 3

10 साल बाद शौर्य को बीमारी ने जकड़ा

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बदरवास के वार्ड 5 में रहने वाले धर्मेंद्र वर्मा के पुत्र शौर्य वर्मा का है, जिसकी उम्र 18 साल है। 10 साल की उम्र से ही शौर्य मस्कुलर डिस्ट्रॉफी बीमारी से ग्रस्त हो गया। अच्छा भला हंसता खेलता बचपन बीमारी की चपेट में आ गया और अब शौर्य भी एक ही स्थान पर केंद्रित होकर रह गया है। माता पिता की आंखों में बच्चे के भविष्य के सुंदर सपनों को ग्रहण लग चुका है और बच्चे को चौबीसों घंटे देखभाल के लिए देने पड़ रहे हैं। शौर्य अपने माता पिता का इकलौता बेटा है।
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क्या है मस्कुलर डिस्ट्रॉफी बीमारी?

मस्कुलर डिस्ट्रॉफी न्यूरोमस्कुलर रोग हैं, जो आमतौर पर वंशानुगत होते हैं। वे प्रगतिशील मांसपेशियों की कमजोरी और अधरूपतन का कारण बनते हैं। मांसपेशीय दुर्विकास असामान्य जीन के कारण होता है जो स्वस्थ मांसपेशियों के निर्माण के लिए आवश्यक प्रोटीन के उत्पादन में बाधा उत्पन्न करता है। मांसपेशियों की कमजोरी के कारण इस बीमारी से पीड़ित न तो चल पाता है और न ही खड़ा हो पाता है। शरीर भी सुन्न जैसा होने लगता है। मस्कुलर डिस्ट्रॉफी बीमारी जन्म से लगभग 10 से 15 साल की उम्र में हो जाती है और इतना ही नहीं इस बीमारी से ग्रसित व्यक्ति की 20 से 30 साल तक मौत भी हो जाती है।

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