13वीं सदी में बुंदेला राजवंश ने गढ़कुंडार के किले पर झंडे लहराए। फिर राजा रुद्रप्रताप सिंह ने बेतवा नदी के किनारे 1501 में ओरछा की नींव रखी – एक ऐसी राजधानी, जो रणनीति में मजबूत और सौंदर्य में अद्वितीय थी।
ओरछा की गलियों में हर कोना कुछ कहता है। जहांगीर महल, राजा महल और रामराजा मंदिर यहां की अनूठी वास्तुकला और संस्कृति के प्रतीक हैं। यहां राम सिर्फ भगवान नहीं, शासक हैं। उनके लिए गार्ड ऑफ ऑनर लगता है, और लोग “राजा राम सरकार” कहते हैं।
यूनेस्को ने ओरछा को टेंटेटिव वर्ल्ड हेरिटेज लिस्ट में शामिल किया है। यहां सिर्फ किले नहीं, कहानियां हैं, सिर्फ मंदिर नहीं, लोकविश्वास हैं। लेकिन बढ़ता पर्यटन, अतिक्रमण और आधुनिक निर्माण ओरछा की आत्मा को धीरे-धीरे नष्ट कर रहे हैं।
ओरछा को बचाना, सिर्फ प्रशासन की जिम्मेदारी नहीं, हम सबकी साझी विरासत है। इस विश्व धरोहर दिवस पर आइए, हम सब मिलकर ओरछा की सांस्कृतिक धरोहर को संरक्षित करने का संकल्प लें।