मंदिर प्रशासनिक उपेक्षा का शिकार
यह मंदिर शासन के अधीन है, और रीवा कलेक्टर इसके अध्यक्ष हैं। बावजूद इसके, प्रशासनिक लापरवाही के कारण मंदिर की स्थिति दयनीय बनी हुई है। मंदिर की कुल दो एकड़ 42 डिसमिल भूमि में से मात्र 15 डिसमिल भूमि ही सुरक्षित बची है, शेष जमीन पर स्थानीय लोगों ने अतिक्रमण कर रखा है। स्थानीय निवासियों का कहना है कि मंदिर के आसपास अतिक्रमण के चलते श्रद्धालुओं को दर्शन के लिए पहुंचने में कठिनाइयों का सामना करना पड़ता है। इस संबंध में स्थानीय निवासियों ने कलेक्टर को ज्ञापन सौंपकर मंदिर की जमीन से अतिक्रमण हटाने और मंदिर तक जाने के लिए पीसीसी सड़क निर्माण की मांग की है, जिससे श्रद्धालुओं को किसी प्रकार की असुविधा न हो।
हजार वर्ष पुराना मंदिर, ऐतिहासिक महत्व
बुजुर्गों के अनुसार,मां सीतला माई का यह मंदिर लगभग एक हजार वर्ष पुराना है। यह मंदिर टड़वार वंश के लोगों द्वारा स्थापित किया गया था, जिन्होंने माता की मूर्ति यहां स्थापित की थी। धार्मिक मान्यताओं के अनुसार, माता सीतला माई की पूजा-अर्चना करने से संतान सुख की प्राप्ति होती है। इतिहास के अनुसार, सन् 1924 में महाराजा गुलाब सिंह ने स्वयं सितलहा गांव में आकर मां सीतला माई के दर्शन किए थे**। इसके बाद, उन्होंने मंदिर में अखंड ज्योति जलाने के लिए प्रतिमाह 8 रुपए की राशि स्वीकृत की थी।
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नवरात्र के अवसर पर मां सीतला माई के भक्तों की भारी भीड़ उमड़ती है लेकिन मंदिर तक पहुंचने का मार्ग अत्यधिक संकरा और कीचड़ से भरा होने के कारण श्रद्धालुओं को परेशानियों का सामना करना पड़ता है। भक्तों का कहना है कि यदि मंदिर की जमीन को अतिक्रमण से मुक्त कराया जाए और मंदिर मार्ग का समुचित निर्माण किया जाए, तो धार्मिक यात्रियों को अधिक सुविधा मिलेगी।
श्रद्धालुओं और ग्रामीणों की मांग
स्थानीय श्रद्धालु और ग्रामीण लंबे समय से मंदिर के पुनरुद्धार और भूमि अतिक्रमण हटाने की मांग कर रहे हैं। प्रशासन को चाहिए कि वह शीघ्र हस्तक्षेप कर मंदिर की भूमि को अतिक्रमण से मुक्त कराए और श्रद्धालुओं की सुविधा के लिए मंदिर तक समुचित मार्ग का निर्माण कराए।