श्रीहनुमान: सिर्फ शक्ति के प्रतीक नहीं, संतुलन के स्तंभ
बल केवल मांसपेशियों की ताकत नहीं, बल्कि मानसिक दृढ़ता और आत्मविश्वास भी है। आज का युवा अगर इस बल को केवल बॉडी बिल्डिंग तक सीमित न रखे और जीवन की चुनौतियों से लड़ने की मानसिक तैयारी करे, तो वह भी अपने भीतर एक श्रीहनुमान खोज सकता है। हनुमान जी ने समुद्र पार करते समय आने वाली हर बाधा—मैनाक पर्वत का विश्राम प्रस्ताव, सुरसा की परीक्षा या सिंहिका की चाल को विवेक और आत्मसंयम से पार किया। महर्षि अगस्त्य से वार्ता करते हुए प्रभु श्रीराम कहते हैं कि महर्षे ! यदि मुझे हनुमान जी का सहयोग नहीं मिलता तो जानकी का पता लगाने और उन्हें वापस पाने जैसे मेरे प्रयोजनों की सिद्धि कैसे हो सकती थी।बल: मानसिक दृढ़ता ही असली ताकत है
बुद्धि की बात करें तो श्रीहनुमान जी की सबसे बड़ी खासियत यही थी कि वे सही समय पर सही निर्णय लेना जानते थे। जब लंका पहुंचकर उन्होंने पहली बार रावण के महल में स्त्रियों को देखा, तो पहले मन्दोदरी को सीता समझ बैठे। लेकिन अगले ही क्षण उन्होंने अपने विवेक से सोचा—जो स्त्री श्रीराम के वियोग में हो, वह अलंकरणों से सजी नहीं हो सकती। यही विश्लेषणात्मक सोच आज के युवाओं को भी चाहिए, जहां हर चीज दिखावे में लिपटी हो, वहां निर्णय चरित्र और सच्चाई के आधार पर लेने चाहिए। आज जब सोशल मीडिया पर हर क्षण ट्रैक होता है, कॅरियर और छवि के दबाव में लोग नैतिकता से समझौता कर लेते हैं, तब वे युवाओं को सिखाते हैं कि सच्ची शक्ति चरित्र में है-ताकतवर होकर भी नम्र बने रहना। विफलता के क्षणों में हार मानने के बजाय आत्ममूल्यांकन कर प्रयास करें।प्रमुख महंत
सिद्धपीठ श्रीहनुमन्निवास (अयोध्या)