CG News: प्रशासन 3 साल से सो रहा है?
खैर, शिकायत भी हुई। कलेक्टर दीपक अग्रवाल ने डीईओ एके सारस्वत से रिपोर्ट मांगी। उन्हें रिपोर्ट मिल भी गई है। अब वे सुशासन तिहार मनाने की बात कहते हुए टाल रहे हैं। सतही तौर पर कुछ बातें सामने आने का जिक्र जरूर किया। इसके मुताबिक इग्नाइट स्कूलों को आत्मानंद स्कूलों में मर्ज कर दिया गया है। हालांकि, सरकार की ओर से मर्जर का कोई आदेश मिलने के सवाल पर उनका कहना है कि यह विस्तृत जांच का विषय है। अभी मेरी प्रायरिटी सुशासन तिहार है। अब सवाल ये कि गरियाबंद में ऐसा कैसा ‘सुशासन’ जिसमें सीबीएसई पैटर्न पर खुले 10 सरकारी स्कूलों के बंद होने के बाद भी प्रशासन 3 साल से सो रहा है? ऐसा कौन सा ‘सुशासन’ जो गड़बड़ भर्तियों को छिपाकर फर्जीवाड़े को प्रोत्साहित करता है? और वो ‘सुशासन’ किस काम का, जो गरीब बच्चों का हक मारने वालों को बचाता है?
इधर, एक और जांच की मियाद खत्म होने आई
इग्नाइट स्कूलों को बंद करने की शिकायत डीपीआई तक भी पहुंची है। प्रक्रिया कहें या मजबूरी (अब तक का जो रवैया है), इनकी ओर से भी जांच के लिए 3 सदस्यीय कमेटी बनाई गई। मामले में बातचीत के लिए पत्रिका ने मंगलवार को कमेटी के एक सदस्य से फोन पर संपर्क किया। उन्होंने हैल्थ इश्यू बताकर जांच शुरू न होने की बात कही। स्कूल बंद करने और शिक्षकों की फर्जी भर्ती जिस तरह छिपाई जा रही है, उससे यह संभावना प्रबल हो जाती है कि इसके पीछे बड़ा रैकेट होगा। गड़बड़ी भी ज्यादा गंभीर हो सकती है।
गरियाबंद जिले में शिक्षा विभाग ने खेलगढ़िया, यूथ और ईको क्लब योजना के नाम पर भी बड़े भ्रष्टाचार को अंजाम दिया है। मामले में 2 साल पहले जिले के तत्कालीन कलेक्टर ने तत्कालीन डीएमसी श्याम चंद्राकर को जिमेदार बताते हुए सस्पेंड किया था। डीपीआई ने 3 महीने से भी कम समय में न केवल उन्हें बहाल किया, बल्कि नियम विरुद्ध तरीके से सहायक सांयिकी अधिकारी भी बना दिया।
12-13 खबरों ने मंत्र का किया काम
CG News: इस पद स्थापना पर तर्क मिला है कि राजपत्र के नियम तोड़कर नियुक्तियां करना आम है। इधर, घपले-घोटाले की विभागीय जांच अफसरों की मेहरबानी से डेढ़ साल तक दतर में धूल फांकती रही।
पत्रिका में खबरें छपने के बाद जांच एक बार फिर शुरू हुई, तो मामला फिर संदिग्ध होता दिख रहा है।
जो अधिकारी प्रतिवेदन न मिलने और दौरे की मजबूरी बताकर जांच शुरू नहीं कर पाने की बात कह रहे थे, रिपोर्ट मिलने के बाद उनके सुर ही बदल गए हैं। अफसरों की मंशा अगर सही है, तो संभव है कि कोई पारलौकिक शक्ति इस घोटाले को दबाती आ रही है। जैसे शिक्षा विभाग की नजरों के सामने होते हुए भी कलेक्टर की जांच फाइल डेढ़ साल तक गायब रही। यहां 12-13 खबरों ने मंत्र का काम किया, तब जाकर अफसरों को फाइल दिखी।