Holi 2025: बेहद चमत्कारी है राजस्थान का यह मंदिर, धुलंडी के दिन यहां खुद आते हैं भगवान द्वारकाधीश
पाली के झीतड़ा में द्वारकाधीश का प्राचीन मंदिर है। मान्यता है कि कुबाजी महाराज की तपस्या से प्रसन्न होकर भगवान द्वारकाधीश होली के दूसरे दिन धुलंडी के दिन कुबाजी महाराज के साथ झीतड़ा गांव में आए थे।
राजस्थान के रोहट के झीतड़ा गांव में करीबन एक सौ वर्ष से अधिक पुराना राधाकृष्ण का जानराय भगवान द्वारकाधीश का मंदिर है। इसको लेकर मान्यता है कि होली के दूसरे दिन भगवान द्वारकाधीश स्वयं द्वारका छोड़कर झीतड़ा आते हैं। द्वारका में पट बंद का बोर्ड लगाया जाता है कि आज भगवान झीतड़ा पधारे हैं।
होली के दूसरे दिन धुलण्डी पर भगवान द्वारिकाधीश की पालकी जानकीराय मंदिर से रवाना होकर तालाब किनारे पहुंचती है। जहां मान्यता है कि तालाब का पानी सवा हाथ बढ़ जाता है, तब भगवान द्वारिकाधीश के झीतड़ा आने का संकेत मिलता है। दिन भर मेला रहता है। शाम को वापस द्वारिकाधीश की सवारी जानकीराय मंदिर पहुंचती है।
द्वारकाधीश आते हैं झीतड़ा
झीतड़ा में द्वारकाधीश का प्राचीन मंदिर है। मान्यता है कि कुबाजी महाराज की तपस्या से प्रसन्न होकर भगवान द्वारकाधीश होली के दूसरे दिन धुलंडी के दिन कुबाजी महाराज के साथ झीतड़ा गांव में आए थे। उस दिन से होली के दूसरे दिन गुजरात के द्वारकाधीश के पट बंद रहते हैं। इस मौके झीतड़ा में मेला भरता है तथा रेवाड़ी निकाली जाती है। दूर-दराज से श्रद्धालु ठाकुरजी के दर्शन करने पहुंचते हैं। मान्यता के अनुसार इस दिन द्वारिकाधीश के झीतड़ा में होने से द्वारका जाने की बजाय झीतड़ा में ही वो पुण्य मिलता है।
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कुबाजी को दिए थे दर्शन
कुमावत समाज में जन्मे तथा समाज के संत केवलप्रसाद महाराज (कुबाजी) को झीतड़ा में स्वयं जानराय भगवान ने दर्शन दिए थे। कुबाजी महाराज भगवान के भक्त थे। मिट्टी में दबने के बाद जीवित निकल जाना, द्वारका नहीं जाने के बावजूद उनके हाथ पर द्वारका का चिह्न अंकित हुआ था। झीतड़ा में द्वारिकाधीश के दर्शन के लिए विभिन्न जगहों से भक्त पहुंचकर दर्शन करेंगे। इसके बाद मेला भरा जाएगा। शाम को द्वारिकाधीश की रेवाड़ी पुन: भगवान जानकीराय मंदिर में गाजे बाजे से पहुंचेगी।