scriptविश्व टीबी रोग दिवस विशेष : कुपोषण के कारण टीबी होने की आशंका 6 से 10 गुना बढ़ जाती है | World TB Day Special: Are the efforts being made to eliminate TB in the world by 2030 sufficient? | Patrika News
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विश्व टीबी रोग दिवस विशेष : कुपोषण के कारण टीबी होने की आशंका 6 से 10 गुना बढ़ जाती है

टीबी उन्‍मूलन के लिए विश्व स्वास्थ्य संगठन एवं संयुक्त राष्ट्र ने वर्ष 2025 व 2030 के लिए कुछ मुख्य लक्ष्य रखे, जिनमें से एक है 2015 की इंसिडेंट दर (अर्थात प्रति एक लाख जनसंख्या पर प्रतिवर्ष होने वाले टीबी के नए रोगी) को आधार मानते हुए वर्ष 2025 तक इसको 50% व 2030 तक 80% तक कम करना। प्रति लाख जनसंख्या पर नए टीबी रोगी वर्ष 2015 में 146 थे जो 2023 में घटकर 134 हो गए अर्थात मात्र 8.7% की कमी आई है।

जयपुरMar 23, 2025 / 09:59 pm

Sanjeev Mathur

डॉ. विनोद गर्ग, टीबी उन्मूलन कार्यक्रम के जानकार

क्या 2030 तक विश्व में क्षय (टीबी) उन्मूलन के लिए किए जा रहे प्रयास पर्याप्त हैं? यह प्रश्न प्रत्येक नागरिक के मन में उठ रहा है। विश्व स्वास्थ्य संगठन एवं संयुक्त राष्ट्र द्वारा 2018 में घोषित सतत विकास चरण के अनुसार विश्व से टीबी का उन्मूलन 2030 तक होना है। टीबी समाप्त रणनीति (एंड टीबी स्ट्रेटजी) का मुख्य उद्देश्य विश्व को टीबी मुक्त करना है अर्थात विश्व में इस रोग के कारण ना तो कोई बीमार हो और न ही किसी की मृत्यु। इसके लिए सर्वप्रथम ऐसे प्रयास करने होंगे जिससे विश्व में टीबी एक महामारी रोग के रूप में ना रहे। टीबी के संक्रमण, बीमारी एवं मृत्यु की संख्या को अन्य घटकों की रोकथाम एवं उचित इलाज की मदद से भी कम किया जा सकता है, इनमें मुख्य है कुपोषण। टीबी और कुपोषण के बीच एक कुचक्र होता है। कुपोषण के कारण टीबी रोग होने की आशंका 6 से 10 गुना बढ़ जाती है जबकि टीबी रोग होने से वजन में कमी, दुबलापन और पोषण की खराब स्थिति हो सकती है। इससे बीमारी की स्थिति गंभीर होती है। बीएमआई की एक यूनिट कम होने पर टीबी होने की संभावना 14 प्रतिशत तक बढ़ जाती है एवं रोगी के एक बार ठीक होकर टीबी पुन: होने की संभावना चार गुना तक बढ़ जाती है। बच्चों, गर्भवती व स्तनपान करने वाली महिलाओं में पोषण की स्थिति का विशेष ध्यान रखना चाहिए। कुपोषण के अलावा शराब का सेवन, धूम्रपान, मधुमेह एवं एचआईवी संक्रमण ऐसी रुग्णता है जिनकी प्रत्येक टीबी रोगी में जांच की जानी चाहिए एवं उनके पाए जाने पर उचित प्रबंध एवं उपचार करना चाहिए, अन्यथा टीबी के सफल उपचार में बाधा उत्पन्न होगी।
टीबी उन्‍मूलन के लिए विश्व स्वास्थ्य संगठन एवं संयुक्त राष्ट्र ने वर्ष 2025 व 2030 के लिए कुछ मुख्य लक्ष्य रखे, जिनमें से एक है 2015 की इंसिडेंट दर (अर्थात प्रति एक लाख जनसंख्या पर प्रतिवर्ष होने वाले टीबी के नए रोगी) को आधार मानते हुए वर्ष 2025 तक इसको 50% व 2030 तक 80% तक कम करना। प्रति लाख जनसंख्या पर नए टीबी रोगी वर्ष 2015 में 146 थे जो 2023 में घटकर 134 हो गए अर्थात मात्र 8.7% की कमी आई है। विश्व स्वास्थ्य संगठन के अफ्रीका और यूरोप रीजन ने इस दर में क्रमश: 24% व 27% की कमी प्राप्त की है। भारत ने इसमें 16% की गिरावट दर्ज की है जो विश्व के आंकड़ों से लगभग दोगुना है। तो क्या 2030 तक इसको हम 80% तक घटा पाएंगे? इस प्रश्न का उत्तर सकारात्मक नहीं दिखता, परंतु आशा की किरण यह है कि कोविड-19 के समय इंसिडेंट दर में जो वृद्धि देखी गई वह 2023 में स्थिर होने लगी है और आशा है आने वाले वर्षों में यह दर कम होने लगेगी।
दूसरा मुख्य लक्ष्य टीबी से 2015 में हुई मृत्यु संख्या को 2025 व 2030 तक क्रमश: 75% व 90% कम करना है। वर्ष 2023 तक विश्व में यह मात्र 23% कम हुई है। अफ्रीका व यूरोप ने क्रमश: 42% व 38% गिरावट प्राप्त की है, भारत में यह दर 18% रही है। कोविड-19 के दौरान प्रतिवर्ष टीबी के कारण मृत्यु संख्या में पिछले वर्षों के मुकाबले कुछ वृद्धि हुई परंतु वर्ष 2023 में मृत्यु संख्या में पुन: गिरावट आना शुरू हुआ। इसको देखते हुए आशा की जानी चाहिए कि 2030 तक हम टीबी के कारण होने वाली मृत्यु संख्या को संतोषजनक स्थिति तक कम कर पाएंगे। इसी क्रम में एक सकारात्मक बिंदु यह है कि प्रतिवर्ष टीबी के अनुमानित रोगियों एवं उन्हें पहचान कर उपचार पर आने वाले रोगियों की संख्या के अंतर में भी कमी आई है। वर्ष 2020 व 2021 में यह अंतर लगभग 40 लाख था जो 2023 में घटकर लगभग 27 लाख रह गया है। अधिक से अधिक टीबी के रोगियों की पहचान कर उनका इलाज शुरू करना, इस बात का सूचक है कि आने वाले समय में टीबी की इंसिडेंट दर व मृत्यु संख्या में कमी आएगी। विश्व में टीबी की पहचान एवं उपचार पर रोगी को काफी अधिक खर्च आता है। लगभग 50% रोगियों व उनके परिवार को जांच व इलाज के प्रत्यक्ष एवं अप्रत्यक्ष खर्चों के अलावा बीमारी के कारण उसकी आय में गिरावट के कारण वार्षिक आय का 20% से अधिक खर्च करना पड़ता है। विश्व स्वास्थ्य संगठन के अनुसार यह खर्चा शून्य होना चाहिए। संयुक्त राष्ट्र संघ ने सितंबर 2023 में एक उच्च स्तरीय मीटिंग की, जिसकी राजनीतिक घोषणा के अनुसार 2023 से लेकर 2027 तक की काल अवधि के लिए कुछ टारगेट निर्धारित किए, जिसके अनुसार वर्ष 2027 तक टीबी से ग्रसित 90% मरीजों की स्तरीय जांच एवं इलाज सुनिश्चित किया जाना एवं उन व्यक्तियों को जिनमें टीबी होने की संभावना अधिक है, उनको टीबी रोकथाम दवा दिया जाना शामिल है।
वर्ष 2027 तक सभी टीबी रोगियों को त्वरित मॉलेक्युलर जांच की सुविधा एवं स्वास्थ्य व सामाजिक सुरक्षा के पैकेज उपलब्ध करना होगा। वर्ष 2024 में 122 देशों ने यह सूचना दी है कि उनके यहां पर टीबी रोगियों एवं उनके परिजनों के लिए सामाजिक सुरक्षा के लिए राष्ट्रीय नीति उपलब्ध है, इनमें रोगियों के लिए निशुल्क जांच एवं उपचार, उनके बैंक खाते में राशि का स्थानांतरण एवं भोजन सुरक्षा शामिल है। अगले 5 वर्षों में टीबी से रोकथाम के लिए सुरक्षित एवं प्रभावकारी टीका उपलब्ध होना भी एक लक्ष्य है। अंत में यह कहना गलत नहीं होगा कि टीबी के उपचार में काम आने वाली सभी प्रकार की दवाइयों के बिना टीबी उन्मूलन की बात सोचना बेमानी होगा।

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