संपादकीय : ई-कॉमर्स कंपनियों से खरीदारी में सतर्कता जरूरी
घर बैठे ऑनलाइन शॉपिंग का क्रेज पिछले कुछ वर्षों में तेजी से बढ़ा है। इसी क्रेज का नतीजा है कि बड़ी ई-कॉमर्स कंपनियां साल दर साल अपने कारोबार में 15 से 20 फीसदी तक बढ़ोतरी कर रही हैं। इसकी बड़ी वजह यह भी है कि सस्ते उत्पादों के आकर्षक ऑफर आमजन के माइंडसेट को बदल […]


घर बैठे ऑनलाइन शॉपिंग का क्रेज पिछले कुछ वर्षों में तेजी से बढ़ा है। इसी क्रेज का नतीजा है कि बड़ी ई-कॉमर्स कंपनियां साल दर साल अपने कारोबार में 15 से 20 फीसदी तक बढ़ोतरी कर रही हैं। इसकी बड़ी वजह यह भी है कि सस्ते उत्पादों के आकर्षक ऑफर आमजन के माइंडसेट को बदल रहे हैं। चिंता की बात यह भी है कि सस्ती और ब्रांडेड चीजों को पाने की होड़ में इन कंपनियों के प्लेटफार्म पर नकली उत्पाद भी बढ़ रहे हैं। ऐसी शिकायतें भी काफी सामने आई हैं जिनमें ये कंपनियां ब्रांडेड के नाम पर नकली या अमानक उत्पाद बेचकर मुनाफा कमाने से नहीं चूक रहीं। उपभोक्ता भी ब्रांडेड टैग या लोगो देखकर बाकी चीजों को गंभीरता से नहीं परखते हैं और ठगे जाते हैं। हाल ही भारतीय मानक ब्यूरो की टीम ने अमेजॉन और फ्लिपकार्ट कंपनियों के कई शहरों के गोदामों पर छापेमारी कर लाखों रुपए के फेक इलेक्ट्रिकल सामान जब्त किए हैं। छापेमारी के दौरान 3500 से ज्यादा ऐसे प्रोडक्ट्स मिले जो बिना आइएसआइ मार्क के बेचे जा रहे थे। यही नहीं, इन प्रोडक्ट्स पर फेक लेबल भी मिले हैं। इन प्रोडक्ट्स में तमाम रोजमर्रा के घरेलू इलेक्ट्रिक उत्पाद शामिल हैं। इन प्रोडक्ट्स में खराब क्वालिटी के चलते करंट, स्पार्क या ब्लास्ट होने का खतरा है।
मतलब साफ है कि चांदी कूटने में जुटीं इन कंपनियों को किसी की जान की परवाह नहीं है। इनको तो बस अपनी तिजोरी भरने की फिक्र है। कोई मरे इनकी बला से। यह तस्वीर तो तब है जब ये दोनों कंपनियां भारत में हर साल परिचालन राजस्व कमाई में 25-30 हजार करोड़ रुपए की वृद्धि कर रही हैं। एक बात अच्छे से समझने की जरूरत है कि अगर कोई उत्पाद 50 फीसदी से ज्यादा की छूट पर बेचा जाता है तो क्या सचमुच कंपनी या वेंडर को फायदा हो रहा है? जो जखीरा पकड़ में आया है उससे इन्हीं आशंकाओं को बल मिलता है कि कहीं ऐसा तो नहीं असली उत्पाद के नाम पर नकली सामान बेचा जा रहा है। कंपनियां कोई सामान उत्पादन से लेकर ग्राहक तक पहुंचाने में जितना मार्जिन मनी बचा पाती हैं, उससे ज्यादा की छूट ग्राहकों को किसी कीमत पर नहीं दे सकती। फिर भी कोई सामान जरूरत से ज्यादा सस्ता बेचा जा रहा है तो खरीदारों को भी सतर्क रहने की जरूरत है। इस तथ्य से इनकार नहीं किया जा सकता कि इन ई-कॉमर्स कंपनियों ने पारंपरिक घरेलू बाजार को काफी हद तक नुकसान पहुंचाया है। एक ही प्लेटफार्म पर सब कुछ और सस्ते ऑफर के चलते लोगों ने चिरपरिचित विश्वसनीय बाजारों तक से दूरी बना ली है। इसी का खामियाजा है कि आज ये अपने आप को ठगा हुआ महसूस कर रहे हैं। बेहतर यही होगा कि देश के लोग स्थानीय बाजारों को वरीयता दें। इससे घरेलू बाजार समृद्ध होंगे और लाखों लोगों को रोजगार मिलेगा। इससे देश की अर्थव्यवस्था मजबूत होगी और हर किसी का जीवन स्तर भी सुधरेगा।
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