संदीप जालान (ज़ूम डवलपर्स) करीब 5600 करोड़ रुपए की राशि लेकर फरार है। जतिन मेहता (विन्सम डायमंड्स, लगभग 7000 करोड़ रुपए) अब सेंट किट्स का नागरिक बन चुकाहै। प्रश्न यह है कि जब सरकारी बैंक छोटे ऋण के लिए दर्जनों औपचारिकताएं पूरी कराते हैं, तब इतने बड़े ऋण इतनी आसानी से कैसे स्वीकृत हो जाते हैं? क्या यह केवल अधिकारियों की लापरवाही है या इसमें राजनीतिक संरक्षण भी शामिल होता है? भारत की लगभग पचास से अधिक देशों- जैसे ब्रिटेन, अमरीका, संयुक्त अरब अमीरात, फ्रांस, जर्मनी के साथ प्रत्यर्पण संधियां हैं, लेकिन छोटे द्वीपीय देशों या कर-मुक्त स्वर्ग माने जाने वाले देशों- जैसे डोमिनिका, एंटीगुआ, सेंट किट्स के साथ ये या तो नहीं हैं या बहुत सीमित हैं। यही कारण है कि आर्थिक अपराधी ऐसे स्थानों पर भाग जाते हैं, जिन देशों के साथ भारत की प्रत्यर्पण संधि नहीं है तथा जहां की न्यायिक प्रक्रिया लंबी और जटिल होती है।
नीरव मोदी ने पंजाब नेशनल बैंक की मुंबई शाखा के अधिकारियों की मिलीभगत से नकली लेटर ऑफ अंडरस्टैंडिंग (एलओयू) के माध्यम से लगभग 13500 करोड़ रुपए की धोखाधड़ी की। इन दस्तावेज़ों के आधार पर विदेशी बैंकों से ऋण लिए गए, जिनकी गारंटी पीएनबी ने दी। ये ऋण चुकाए नहीं गए और पीएनबी को इनका भुगतान करना पड़ा। उनकी कंपनी ने व्यापार ऋण लेकर इसे नियमों के विपरीत विदेशों में संपत्तियों, खातों और हीरों में बदल दिया। नीरव मोदी के मामा मेहुल चोकसी ने इस घोटाले में भागीदारी की। उसकी कंपनी ने दस हजार करोड़ रुपए से अधिक की धोखाधड़ी की। विजय माल्या ने अपनी विमान सेवा के लिए नौ हजार करोड़ रुपए का ऋण लिया, जिसे उसने अय्याशी भरी जीवनशैली, निजी खर्चों, महंगे विमान अनुबंधों और अन्य निवेशों में लगा दिया। विमान सेवा पहले से घाटे में थी, फिर भी बैंकों ने ऋण जारी किए। तीनों ने भारत की लंबी कानूनी प्रक्रियाओं और अंतरराष्ट्रीय अड़चनों का लाभ उठाकर देश छोड़ दिया।
मेहुल चोकसी, वर्ष 2018 से एंटीगुआ और बारबुडा में रह रहा है, जहां उसने नागरिकता ले ली। भारत ने उसका प्रत्यर्पण मांगा, लेकिन उचित संधि के अभाव तथा वहां की न्यायिक प्रक्रिया और स्वास्थ्य के आधार पर चोकसी इस प्रक्रिया को टालता रहा। 2021 में वह डोमिनिका में अवैध प्रवेश के आरोप में पकड़ा गया था, लेकिन फिर एंटीगुआ वापस चला गया। कहा जाता है कि अभी वह बेल्जियम के रास्ते स्विट्जरलैंड भागने की फिराक में था। भारत और बेल्जियम के बीच प्रत्यर्पण संधि 1901 में स्थापित हुई, जिसे 2020 में अपडेट किया गया। इसके तहत मेहुल चोकसी के भारत प्रत्यर्पण की संभावना प्रबल है, क्योंकि उसके खिलाफ घोटाले, धोखाधड़ी और जालसाजी के आरोप हैं, जो दोनों देशों के कानूनों में गंभीर अपराध हैं। चोकसी बेल्जियम का नागरिक भी नहीं है। बेल्जियम आने से पहले वह एंटीगुआ और बारबुडा का नागरिक था, जिसकी नागरिकता का दावा कर वह प्रत्यर्पण से बचता रहा, क्योंकि भारत और एंटीगुआ व बारबुडा के बीच कोई प्रत्यर्पण संधि नहीं है। हालांकि, बेल्जियम में उसकी गिरफ्तारी और भारत द्वारा पेश किए गए ठोस सबूत प्रत्यर्पण को संभव बनाते हैं, लेकिन उसकी कानूनी चालबाजियां और स्वास्थ्य संबंधी दलीलें प्रक्रिया में देरी कर सकती हैं। विजय माल्या 2016 से ब्रिटेन में है।
2019 में अदालत ने प्रत्यर्पण को अनुमति दी थी, लेकिन अपीलों और भारत-ब्रिटेन की जटिल न्यायिक प्रक्रियाओं के कारण अभी तक प्रक्रिया पूरी नहीं हो पाई है। अब उसकी अंतिम अपील खारिज हो चुकी है और प्रत्यर्पण अंतिम चरण में है। ब्रिटेन और भारत के बीच प्रत्यर्पण समझौता होते हुए भी, मानवाधिकार कानूनों, अपीलों और धीमी न्यायिक प्रक्रिया के चलते देरी होती है। एक महत्त्वपूर्ण तथ्य है कि अरबों रुपए लूट कर यदि कोई आर्थिक अपराधी किसी देश में अपने धन सहित जाता है तो उसे उस देश की सरकार भी अप्रत्यक्ष रूप से सहायता पहुंचाती है। यह अत्यंत चिंताजनक है कि जहां बैंक छोटे ऋण पर कठोर नियम लागू करते हैं, वहीं बड़े डिफॉल्टरों को आसानी से ऋण और छूट मिल जाती है। सीबीआई जांच में बैंक के कुछ अधिकारियों की मिलीभगत सामने आई, लेकिन इतने बड़े घोटाले बिना उच्च स्तर की निगरानी की कमी और प्रणाली की चूक के संभव नहीं थे।
इन बड़े आर्थिक अपराधियों से समय रहते वसूली करने के लिए त्वरित, पारदर्शी और प्रभावी न्यायिक व्यवस्था की आवश्यकता है, ताकि बैंकों की वित्तीय स्थिति सुदृढ़ हो और वे उत्पादक क्षेत्रों को सस्ते ब्याज दर पर ऋण उपलब्ध करा सकें और देश की अर्थव्यवस्था को गति मिल सके।