हादसे से टूटे सपने, सेवा से फिर जगी उम्मीद
करीब सात वर्ष पूर्व, दीपावली की रात एक दर्दनाक हादसे में दीपक से लगी आग ने लक्ष्मी, सरस्वती और कशिश के माता-पिता की जान ले ली। छोटी उम्र में ही अनाथ हुई इन बच्चियों का जीवन अंधेरे में डूब गया था। तभी शोभा देवी सामाजिक सेवा समिति की अध्यक्ष तृप्ति कठेल को इन बेटियों की खबर मिली। वह खुद छतरपुर पहुंचीं और उन्हें अपनी संस्था के साये में ले आईं। उन्होंने इन बच्चियों को केवल शरण ही नहीं दी, बल्कि उनके पूरे पालन-पोषण, शिक्षा और भविष्य को संवारने का वचन निभाया।
छोटी बचत से बड़े सपने
समिति हर गोद ली गई बेटी के नाम पर 500 प्रतिमाह की आरडी शुरू करती है, जिसे तीन साल बाद फिक्स्ड डिपॉजिट में बदला जाता है। अब तक समिति ने 107 बेटियों को गोद लिया है और करीब 10 लाख की एफडी राशि उनके नाम की जा चुकी है। 36 बेटियों की शादियां समिति ने समाज के सहयोग से कराई हैं, जिससे इन बच्चियों को नया जीवन मिला है।अपना घर – हर बेटी का सुरक्षित ठिकानासमिति अब एक नया सपना साकार करने जा रही है, अपना घर, जो एक आधुनिक अनाथ आश्रम होगा। यहां बेटियां न केवल एक छत के नीचे रहेंगी, बल्कि उन्हें शिक्षा के साथ-साथ कौशल विकास (सिलाई, कंप्यूटर, कढ़ाई, कला आदि) का प्रशिक्षण भी मिलेगा। यह आश्रम हर बेटी को आत्मनिर्भर बनाने के लिए तैयार किया जा रहा है।समाज से अपीलसमिति अध्यक्ष तृप्ति कठेल ने इस अवसर पर कहा, हमारी बेटियां केवल सहानुभूति नहीं, सहयोग और सशक्तिकरण की हकदार हैं। यह अपना घर सिर्फ ईंट-पत्थर की इमारत नहीं, बल्कि आत्मनिर्भरता और आत्मसम्मान की नींव होगी। उन्होंने समाज से इस सेवा कार्य में आगे आने और आर्थिक सहयोग देने की विनम्र अपील भी की। डीआईजी ललित शाक्यवार ने समिति के इस कार्य को सराहते हुए कहा, समाज में ऐसे प्रयास न केवल बेटियों को सम्मान देते हैं, बल्कि पूरे समाज को एक नई दिशा दिखाते हैं। उन्होंने समिति को हर संभव सहयोग देने का भरोसा भी दिलाया।
बेटियां नहीं रुकेंगी अब
शोभा देवी सामाजिक सेवा समिति की यह 12 वर्षों की यात्रा समाज के सामने एक प्रेरणा है कि यदि इच्छा और समर्पण हो, तो किसी की टूटी जिंदगी को भी फिर से संवारा जा सकता है। लक्ष्मी, सरस्वती और कशिश जैसी कई बेटियां आज इसी उम्मीद के सहारे अपने सपनों की उड़ान भर रही हैं, क्योंकि उन्हें मिला है ऐसा साथ, जो फरिश्तों जैसा है।