scriptमहाशिवरात्रि : तिरुकड़यूर का अमृतघटेश्वर मंदिर, मृत्युदेव यमराज को पांव तले दबा दिया था भगवान शिव ने | Mahashivratri: Amruthaghateshwar temple of Tirukadyur. Lord Shiva had crushed death god Yamraj under his feet. | Patrika News
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महाशिवरात्रि : तिरुकड़यूर का अमृतघटेश्वर मंदिर, मृत्युदेव यमराज को पांव तले दबा दिया था भगवान शिव ने

चेन्नई. मंदिरों की भूमि तमिलनाडु में भगवान शिव के 274 शिवालय हैं, जो धार्मिक और आध्यात्मिक दृष्टि से अत्यंत महत्वपूर्ण माने जाते हैं। इनमें मईलाडुदुरै जिले का तिरुकड़यूर का अमृतघटेश्वर मंदिर वह पवित्र स्थल है जहां भगवान भोलेनाथ ने अपने भक्त मार्कण्डेय ऋषि को अभयदान देते हुए मृत्यु के देवता यमराज का घमंड तोड़ा था। […]

चेन्नईFeb 26, 2025 / 02:37 pm

P S VIJAY RAGHAVAN

महाशिवरात्रि विशेष
चेन्नई. मंदिरों की भूमि तमिलनाडु में भगवान शिव के 274 शिवालय हैं, जो धार्मिक और आध्यात्मिक दृष्टि से अत्यंत महत्वपूर्ण माने जाते हैं। इनमें मईलाडुदुरै जिले का तिरुकड़यूर का अमृतघटेश्वर मंदिर वह पवित्र स्थल है जहां भगवान भोलेनाथ ने अपने भक्त मार्कण्डेय ऋषि को अभयदान देते हुए मृत्यु के देवता यमराज का घमंड तोड़ा था।
शैव संतों के थेवारम और पाड़ल पेट्र स्थलम में इस मंदिर की महिमा का वर्णन है जो ग्यारहवीं सदी का बताया जाता है। तिरुकड़यूर शब्द की उत्पत्ति घट शब्द यानी कलश से हुई है। कहा जाता है कि भगवान विष्णु, इंद्र और अन्य देवताओं को समुद्र मंथन के दौरान निकले अमृत पान के लिए एक उत्कृष्ट स्थान की आवश्यकता थी, इसलिए वे अमृत कलश को यहां लाए। अमृत पान से पहले देवताओं ने पूज्य गणपति को भुला दिया इस अपमान के कारण वे अमृत कलश चुरा ले गए और उसे तिरुकड़यूर में छिपा दिया। गणेश ने अपने पिता और माता को समर्पित एक शिवलिंग बनाया और उस पर थोड़ा अमृत डाला। इस मंदिर में शिव लिंगम को ‘अमृत घट ईश्वर’ के नाम से जाना जाता है, जिसका संस्कृत में शाब्दिक अर्थ है ’’अमरता की ओर ले जाने वाले भगवान’’।
मार्कण्डेय ऋषि की कथा

स्थल पुराण के अनुसार, तिरुकड़यूर मंदिर के पास मृकंदु नाम के एक ऋषि और उनकी पत्नी मरुदमती रहते थे। भगवान शिव की घोर तपस्या के बाद उनको विकल्प मिला कि क्या वे एक प्रतिभाशाली पुत्र चाहेंगे जो सोलह वर्ष की आयु में मर जाएगा अथवा दीर्घायु वाला अल्प बुद्धि वाला पुत्र? दम्पती ने प्रतिभाशाली पुत्र को चुना और उनके घर मार्कण्डेय ने जन्म लिया जो भगवान शंकर के अनन्य भक्त थे। अपने पिता के परामर्श पर मार्कण्डेय ने तिरुकड़यूर में शिवलिंग की पूजा की। जिस दिन उनकी मृत्यु तय थी, उस दिन देवता यमराज अपने हाथ में पाश लेकर प्रकट हुए, ताकि मार्कण्डेय की आत्मा को बांधकर अपने साथ ले जा सकें। मार्कण्डेय ने मंदिर में शरण ली और शिवलिंग का आलिंगन कर लिया। शिव प्रकट हुए और यम को चेतावनी दी कि वे मार्कण्डेय को स्पर्श न करें, क्योंकि वह उनके संरक्षण में थे। यम ने शिव की उपेक्षा करते हुए फंदा फेंककर मार्कण्डेय और लिंगम दोनों को एक साथ बांध दिया। यम के असाधारण अहंकार से क्रोधित होकर शिव ने उन्हें लात मारकर अपने पैरों के नीचे दबा लिया, जिससे वे निष्क्रिय हो गए। मार्कण्डेय को शिव से वरदान मिला कि वे आजीवन सोलह वर्ष की आयु के ही रहेंगे। इस बीच, यम के निष्क्रिय हो जाने के कारण पृथ्वी पर मृत्यु और जन्म का संतुलन बिगड़ने लगा। लोगों के भार से दबी भूमि देवी ने शिव से सहायता की प्रार्थना की। शिव ने पृथ्वी देवी के प्रति दया भावना रखते हुए यम को मुक्त कर दिया, और जन्म व मरण का चक्र फिर से शुरू हुआ। इस मंदिर में शिव की मूर्ति को यमराज को चेतावनी देते हुए दर्शित है।
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