दिल्ली पुलिस को मुकदमा दर्ज करने का आदेश दिया जाए
सुप्रीम कोर्ट में जनहित याचिका दायर कर कहा गया है कि इस मामले में दिल्ली पुलिस को मुकदमा दर्ज करने और प्रभावी तथा सार्थक जांच करने का निर्देश दिया जाए। इसके साथ ही याचिका में कहा गया है कि भारत के मुख्य न्यायाधीश (CJI) की ओर से 22 मार्च को गठित तीन सदस्यीय न्यायाधीशों की समिति को जस्टिस वर्मा के आवास पर आग लगने की घटना की जांच करने का कोई अधिकार नहीं है। वो घटना भारतीय न्याय संहिता (बीएनएस ) के तहत विभिन्न संज्ञेय अपराधों के दायरे में आती है। यह भी पढ़ें
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दरअसल, सुप्रीम कोर्ट के अधिवक्ता मैथ्यूज नेदुम्परा ने दायर याचिका में के. वीरस्वामी बनाम भारत संघ मामले में सर्वोच्च न्यायालय के निर्देश को चुनौती दी है। इसमें माना गया था कि किसी मौजूदा हाईकोर्ट या सुप्रीम कोर्ट के जज पर धारा 154 सीआरपीसी के तहत आपराधिक मामला केवल भारत के मुख्य न्यायाधीश (CJI) से परामर्श के बाद ही दायर किया जा सकता है। याचिकाकर्ताओं का कहना है कि जबकि अधिकांश जज ईमानदारी से काम करते हैं। ऐसे में वर्तमान मामले जैसे मामलों को निर्धारित आपराधिक प्रक्रिया से नहीं छोड़ा जा सकता है।मामले को दबाने के प्रयास का किया उल्लेख
याचिका में आगे कहा गया है “जनता की धारणा यह है कि इस मामले को दबाने की बहुत कोशिश की जाएगी। यहां तक कि पैसे की वसूली के बारे में शुरुआती बयानों का भी अब खंडन किया जा रहा है। हालांकि सर्वोच्च न्यायालय ने न्यायमूर्ति वर्मा के स्पष्टीकरण के साथ दिल्ली उच्च न्यायालय के माननीय मुख्य न्यायाधीश की रिपोर्ट और भारी मात्रा में करेंसी नोटों को बुझाने वाले अग्निशमन दल के वीडियो को अपनी वेबसाइट पर अपलोड करके जनता का विश्वास बहाल करने में कुछ हद तक मदद की है।”जस्टिस यशवंत वर्मा के खिलाफ गठित जांच समिति अवैध
जनहित याचिका में बताया गया है कि इस तरह की जांच करने का अधिकार समिति को देने का निर्णय शुरू से ही निरर्थक है, क्योंकि कॉलेजियम (सुप्रीम कोर्ट) खुद को ऐसा आदेश देने का अधिकार नहीं दे सकता। जबकि संसद या संविधान ने ऐसा करने का अधिकार नहीं दिया है। याचिका में कहा गया है “जब अग्निशमन/पुलिस बल ने आग बुझाने के लिए अपनी सेवाएं दीं तो यह बीएनएस के विभिन्न प्रावधानों के तहत दंडनीय संज्ञेय अपराध बन गया और पुलिस का कर्तव्य है कि वह मुकदमा दर्ज करे।” यह भी पढ़ें