10 साल तक याचिका का नहीं आएगा नंबर
इस पर जस्टिस एजी मसीह के साथ बेंच की अगुवाई कर रहे जस्टिस बीआर गवई ने टिप्पणी की कि यदि आप याचिका को यहां लंबित रखते हैं, तो 10 साल तक यहां कुछ नहीं होगा, आपको सिर्फ यही उम्मीद रहेगी कि मामला यहां लंबित है। 10 साल तक इस याचिका का नंबर नहीं आएगा। यदि आप मुकदमा दायर करते हैं, तो कम से कम आपको कुछ त्वरित राहत मिलेगी, एक साल, दो साल, तीन साल में, आपको कुछ राहत मिलेगी।
‘मुकदमा दायर करने से होगा फायदा’
सुनवाई के दौरान बेंच ने कहा कि याचिका कैसे स्वीकार की जा सकती है? इस पर याचिकाकर्ता के अधिवक्ता पुरुषोत्तम शर्मा त्रिपाठी कोर्ट में कहा कि वैक्सीन के कारण नुकसान के बारे में दो समान याचिकाएं पहले से ही अदालत के समक्ष लंबित हैं और समन्वय पीठों की ओर से नोटिस जारी किए जा चुके हैं। याचिकाकर्ता विकलांगता से पीड़ित है और उसकी याचिका को अन्य याचिकाओं के साथ जोड़ा जा सकता है। इस पर बेंच ने कहा कि याचिका से ज्यादा फायदा क्षतिपूर्ति वाद दायर करने से होगा। बाद में याचिकाकर्ता के वकील के समय मांगने पर बेंच ने सुनवाई स्थगित कर दी।
मुआवजा और वैक्सीन दिशा निर्देश की मांग
याचिका केंद्र सरकार और कोविड वैक्सीन कोविशील्ड बनाने वाली कंपनी सीरम इंस्टीट्यूट ऑफ इंडिया के खिलाफ दायर की गई है। याचिकाकर्ता का कहना है कि वैक्सीन के कारण उसके दोनों पैरों में शत प्रतिशत विकलांगता आ गई है। याचिका में इलाज खर्च व क्षतिपूर्ति की मांग के अलावा देश में टीकाकरण, खासकर कोविड वैक्सीन, के बाद प्रतिकूल प्रभावों के प्रभावी समाधान के लिए उचित दिशा-निर्देश देने की मांग की गई है। ‘पहले ही हम पर लग रहे हैं कार्यपालिका में दखल के आरोप’
सुप्रीम कोर्ट ने सोमवार को दो मामलों की सुनवाई के दौरान टिप्पणी की कि हम पर कार्यपालिका के क्षेत्राधिकार में अतिक्रमण के आरोप लग रहे हैं। दोनों बार ही टिप्पणियां सुनवाई कर रही बेंच के अगुवा जस्टिस बीआर गवई ने की। पहले मामले में जस्टिस गवई की बेंच ने बंगाल में अर्धसैनिक बल तैनात करने और अनुच्छेद 355 लागू करने के बारे में पेश अर्जी पर तत्काल सुनवाई के लिए सूचीबद्ध करने से इनकार कर दिया। उन्होंने कहा कि आप चाहते हैं कि हम इसे लागू करने के लिए राष्ट्रपति को रिट जारी करें? ओटीटी प्लेटफॉर्म पर अश्लील सामग्री रोकने संबंधी पीआइएल की सुनवाई में भी जस्टिस गवई ने इसे नीतिगत मामला बताया और टिप्पणी की कि हम पर विधायी कार्यों में दखल के आरोप लगते हैं।