राम मंदिर के बाद पहली मुलाकात: एक नया अध्याय
22 जनवरी 2024 को अयोध्या में राम मंदिर के प्राण प्रतिष्ठा समारोह के बाद यह पहला मौका था जब नरेंद्र मोदी और मोहन भागवत एक साथ किसी सार्वजनिक मंच पर दिखे। यह आयोजन नागपुर में आरएसएस मुख्यालय में हुआ, जहां दोनों नेताओं के साथ महाराष्ट्र के मुख्यमंत्री देवेंद्र फडणवीस, केंद्रीय मंत्री नितिन गडकरी, आचार्य गोविंद गिरी महाराज, अवधेशानंद महाराज और नागपुर के संरक्षक मंत्री चंद्रशेखर बावनकुले भी मौजूद थे। इस मुलाकात को बीजेपी और आरएसएस के बीच एकजुटता का प्रतीक माना जा रहा है, खासकर तब जब हाल के दिनों में दोनों के बीच तनाव की खबरें सामने आ रही थीं। 2014 से 2025: एक दशक से ज्यादा की दूरी
मोदी और भागवत की आखिरी एकांत मुलाकात 10 मई 2014 को दिल्ली में हुई थी, जब लोकसभा चुनावों की तैयारियां जोरों पर थीं। उस समय नरेंद्र मोदी बीजेपी के प्रधानमंत्री पद के उम्मीदवार थे और मोहन भागवत आरएसएस के सरसंघचालक। इसके बाद दोनों के बीच कई मौकों पर मुलाकात की संभावनाएं बनीं, लेकिन यह कभी संभव नहीं हो पाया। इस दूरी की वजहें कई थीं। कुछ जानकारों का मानना है कि यह दोनों संगठनों के बीच वैचारिक और रणनीतिक मतभेदों का नतीजा था। 2024 के लोकसभा चुनावों के बाद आरएसएस की ओर से बीजेपी की चुनावी रणनीति और नेतृत्व शैली पर सवाल उठाए गए थे, जिसमें मोहन भागवत ने ‘अहंकार’ जैसे शब्दों का इस्तेमाल किया था। यह बयान सीधे तौर पर नरेंद्र मोदी के नेतृत्व पर एक टिप्पणी माना गया था।
बीजेपी-आरएसएस के रिश्तों में तनाव: क्या थी वजह?
हाल के वर्षों में बीजेपी और आरएसएस के बीच रिश्तों में उतार-चढ़ाव देखने को मिले हैं। 2024 के चुनावों में बीजेपी को पूर्ण बहुमत न मिलने के बाद आरएसएस ने पार्टी की रणनीति पर सवाल उठाए। आरएसएस के मुखपत्र ‘ऑर्गनाइजर’ में रतन शारदा ने एक लेख में लिखा था कि 543 सीटों पर सिर्फ मोदी के नाम पर चुनाव लड़ना ‘आत्मघाती’ साबित हुआ। उन्होंने यह भी कहा कि बीजेपी नेता ‘मोदी की चमक’ में खोए रहे और जमीनी आवाजों को अनसुना कर दिया। इसके अलावा, आरएसएस ने बीजेपी के संसदीय दल की बैठक न बुलाने पर भी नाराजगी जताई थी, जिसमें नवनिर्वाचित सांसदों को अपने नेता का चुनाव करना था। इन सबके बीच मोहन भागवत और नरेंद्र मोदी के बीच दूरी साफ नजर आ रही थी।
भविष्य की राह: एकजुटता या नई चुनौतियां?
यह मुलाकात भले ही बीजेपी और आरएसएस के बीच एकजुटता का संदेश दे रही हो, लेकिन यह सवाल अभी भी बरकरार है कि क्या यह दोनों संगठनों के बीच लंबे समय से चले आ रहे मतभेदों को खत्म कर पाएगी? कई राज्यों जैसे बंगाल, बिहार, कर्नाटक, तेलंगाना, उत्तर प्रदेश और महाराष्ट्र में बीजेपी के भीतर मतभेद साफ दिखाई दे रहे हैं। ऐसे में यह मुलाकात एक नई शुरुआत हो सकती है। इस मुलाकात ने न केवल बीजेपी-आरएसएस के रिश्तों को एक नई दिशा दी है, बल्कि यह भी साबित किया है कि दोनों संगठन एक-दूसरे के बिना अधूरे हैं। अब देखना यह होगा कि यह मुलाकात भविष्य में दोनों के रिश्तों को कितना मजबूत बनाती है।