मरीजों की संख्या चिंताजनक
जिला अस्पताल में वर्ष 2024 में कुल 26 किडनी मरीज डायलिसिस के लिए पंजीकृत हुए थे। इस साल अब तक 6 नए मरीज सामने आ चुके हैं। इनमें अधिकतर की उम्र 35 से 50 वर्ष के बीच है, जिससे यह स्पष्ट है कि यह बीमारी कम उम्र के लोगों को भी तेजी से प्रभावित कर रही है। विशेषज्ञों के अनुसार, क्रॉनिक किडनी डिजीज (सीकेडी) के अलावा एक्यूट किडनी फेल्योर के मामले भी बढ़ रहे हैं। किडनी फेल होने के प्रमुख कारण
- मधुमेह और उच्च रक्तचाप – किडनी फेल्योर के सबसे बड़े कारण।
- अत्यधिक दर्द निवारक दवाओं का सेवन – लंबे समय तक पेनकिलर लेने से किडनी पर बुरा असर।
- अनियमित जीवनशैली – अत्यधिक नमक, सॉफ्ट ड्रिंक्स और प्रोसेस्ड फूड का सेवन हानिकारक।
- पानी की कमी – कम पानी पीने से किडनी पर असर पड़ता है और पथरी की समस्या हो सकती है।
- शराब व तंबाकू का सेवन – बार-बार यूरिन संक्रमण से किडनी की कार्यक्षमता प्रभावित होती है।
- आनुवंशिक कारण – कुछ मामलों में यह बीमारी पीढ़ी दर पीढ़ी चलती है।
बीमारी ने छीनी खुशियां
शांति नगर निवासी रवि (परिवर्तित नाम) उम्र 47, पिछले 5 साल से डायलिसिस पर हैं। उन्हें डायबिटीज और हाई बीपी के कारण इलाज में कई मुश्किलें आईं। उनकी पत्नी बबीता ने बताया कि इलाज में उनकी सारी जमा पूंजी खर्च हो गई, नौकरी भी छूट गई। दो बेटों (10 और 13 वर्ष) की परवरिश और घर की जिम्मेदारी निभाने के लिए उन्होंने ट्यूशन पढ़ाना शुरू किया। रिश्तेदारों ने भी साथ छोड़ दिया। खुद का घर होने से थोड़ी राहत जरूर रही, लेकिन जिंदगी पहले जैसी नहीं रही।
आयुष्मान योजना से मरीजों को राहत
जिला अस्पताल में डायलिसिस यूनिट का संचालन निजी कंपनी के अनुबंध पर हो रहा है, जहां आयुष्मान योजना के तहत मरीजों का निशुल्क इलाज किया जाता है। कंपनी द्वारा टेक्नीशियन और स्टाफ की भी व्यवस्था की जाती है। इलाज की मौजूदा स्थिति
- जिला अस्पताल में केवल डायलिसिस की सुविधा उपलब्ध है, लेकिन नेफ्रोलॉजिस्ट और आईसीयू नहीं हैं।
- गंभीर मरीजों को भोपाल या अन्य बड़े शहरों में रेफर किया जाता है।
- 32 मरीजों की नियमित डायलिसिस हो रही है– कुछ को हफ्ते में दो बार, तो कुछ को तीन बार जरूरत पड़ती है।
विशेषज्ञ की राय
जिला अस्पताल की डायलिसिस प्रभारी डॉ. सुनील जैन ने बताया कि जिले में किडनी मरीजों की संख्या लगातार बढ़ रही है। डायलिसिस सुविधा तो है, लेकिन विशेषज्ञों की कमी और उन्नत इलाज के अभाव में मरीजों को कठिनाइयों का सामना करना पड़ता है।