भाजपा बनाम संघ: दांव-पेच जारी
पार्टी के कई विधायक और सांसद अपने करीबी नेताओं को जिलाध्यक्ष बनाने के लिए लॉबिंग कर रहे हैं, लेकिन संघ का साफ रुख है कि ऐसे लोगों को संगठन में जगह न मिले, जिनकी वफादारी संदिग्ध हो सकती है। इसी वैचारिक असहमति के चलते जिलाध्यक्षों की सूची अब तक अटकी हुई है।
संघ चाहता है कि पार्टी के जिलाध्यक्ष वे लोग हों, जो भाजपा की विचारधारा से गहराई से जुड़े हुए हों और जिनकी संगठन के प्रति प्रतिबद्धता पर कोई संदेह न हो। यही कारण है कि इस मुद्दे पर सहमति बनाने में कठिनाई आ रही है।
प्रदेश अध्यक्ष की नियुक्ति पर असर
भाजपा का प्रदेश अध्यक्ष कौन होगा, इसका फैसला भी जिलाध्यक्षों की नियुक्ति के बाद ही होगा। संगठन के एक वरिष्ठ पदाधिकारी ने बताया कि जिलाध्यक्षों की नियुक्ति में जितनी देरी हो रही है, प्रदेश अध्यक्ष की नियुक्ति भी उतनी ही लंबी खिंच सकती है। चूंकि संगठन में मतभेद स्पष्ट रूप से नजर आ रहे हैं, ऐसे में भाजपा के शीर्ष नेतृत्व को संतुलन बनाकर चलना होगा। भाजपा के राष्ट्रीय नेतृत्व और संघ के शीर्ष पदाधिकारी इस मसले को जल्द सुलझाने की कोशिश में लगे हुए हैं। पार्टी के लिए यह जरूरी है कि जिलाध्यक्षों की सूची पर अंतिम मुहर जल्द लगे, ताकि प्रदेश अध्यक्ष की नियुक्ति की प्रक्रिया आगे बढ़ सके फिलहाल, भाजपा और संघ के बीच इस वैचारिक समायोजन की चुनौती ने संगठनात्मक नियुक्तियों को जटिल बना दिया है। यह देखना दिलचस्प होगा कि भाजपा किस तरह इस अंतर्द्वंद्व को सुलझाकर अपने संगठन को मजबूत करती है।