दिलहरण के पुत्र मुकेश ने बताया कि जटराज में उसका एक मकान है। इसका अधिग्रहण एसईसीएल की ओर से किया गया है। मकान का नाप- जोख हुए कई माह गुजर गए हैं, लेकिन मुआवजा नहीं मिला है। दिलहरण काम की तलाश में अक्सर अपने गांव के करीब कुसमुंडा खदान में काम करने वाली ठेका कंपनी के दफ्तर जाता था। एसईसीएल प्रबंधन के समक्ष उपस्थित होता था। मगर कंपनी की ओर से दिलहरण को काम नहीं दिया गया। कुछ माह पहले दिलहरण ने अपनी बेटी की शादी की थी। शादी के लिए घर में रुपए नहीं थे। उसने कर्ज लेकर बेटी का विवाह किया। उसे उम्मीद थी कि खदान में काम मिल जाएगा। ऐसा नहीं हुआ। इससे दिलहरण मानसिक तनाव से गुजर रहा था। उसे कर्ज देने वाले रुपए लौटाने के लिए दबाव डालते थे। इससे उसने जहर पीकर खुदकुशी कर ली
पूर्व में भी हुआ पैतृक जमीन का अधिग्रहण
बताया जाता है कि पूर्व में कुसमुंडा खदान के लिए कोयला कंपनी ने दिलहरण की पैतृक जमीन का अधिग्रहण किया है। जमीन के बदले दिलहरण के दो भाइयों को खदान में नौकरी मिली है। कुछ मुआवजा भी मिला था। इसे दिलहरण और उसके भाइयों ने आपस में बांट लिया था। दिलहरण बेरोजगार था।
मृतक के पुत्र को ठेका कंपनी में काम
मृतक का पुत्र मुकेश कुसमुंडा खदान में काम करने वाली ठेका कंपनी नीलकंठ के अधीन हेल्पर का काम करता है। लगभग छह माह से मुकेश कंपनी में काम कर रहा है।
इधर, कुसमुंडा थानेदार कृष्ण कुमार वर्मा ने कहा कि जहर पीने से दिलहरण की मौत हुई है। खदान में भू- विस्थापित का पुत्र ठेका कंपनी काम करता है। मृतक के पुत्र से बातचीत में पता चला है कि बेटी की शादी के लिए उसने कुछ कर्ज लिया था। इसे लौटा नहीं सक रहा था। मृतक भी अपने लिए रोजगार मांग रहा था। कुछ कारण भी सामने आ रहे हैं। सभी पहलुओं पर जांच की जाएगी। इसके बाद स्थिति स्पष्ट होगी।
उधर, एसईसीएल बिलासपुर के जनसम्पर्क अधिकारी डॉ. सनीश चन्द्र ने बताया कि दिलहरण भूमिहीन है। उसके मकान का मूल्यांकन किया गया है। लगभग ढाई लाख रुपए मुआवजा बना है, भुगतान की प्रक्रिया अंतिम चरण में है। उनके पुत्र को ठेका कंपनी में रोजगार दिया गया है।