CG Dhan Kharidi: धान की अवैध व फर्जी बिक्री
किसान के पास पर्याप्त फसल नहीं होने के बाद भी उनके नाम पर निर्धारित मात्रा तक
धान की बिक्री कराई जाती है। इसमें किसान को शासन का बोनस राशि और कुछ हजार रुपए मिल जाते हैं लेकिन बाकी राशि इस खेल को चलाने वाले सोसायटी प्रबंधक, धान उपलब्ध कराने वाले व्यापारी और बिचौलिए में बांटा जाता है। यह बड़ा खेल है कि जिससे केंद्र शासन को प्रत्येक क्विंटल पर 2600 और राज्य सरकार 500 रुपए का नुकसान हो रहा है।
यदि एक केंद्र में मात्र एक किसान द्वारा 100 क्विंटल धान फर्जी रुप से बिक्री की जाती है तो शासन से 2 लाख 60 हजार रुपए किसान के खाते में पहुंच जाता है। इस पर 50 हजार रुपए बोनस के रुप में राज्य सरकार किसान को देगी। मतलब एक किसान के नाम पर फर्जी रुप से धान बिक्री पर सीधे-सीधे 3 लाख 10 हजार रुपए चपत लगी। ऐसे में यदि प्रत्येक उपार्जन केंद्र में अधिकतम 5 किसानों के नाम पर भी फर्जी रुप से धान बिक्री की जाती है तो 10 करोड़ रुपए से अधिक राशि होती है।
कमीशन का सभी में बराबर बंटवारा
शासन किसानों से 2600 रुपए प्रति क्विंटल की दर से धान की खरीदी की। लेकिन बोनस राशि 500 रुपए राज्य सरकार दी जाती है। सिंडिकेट के जरिए
उपार्जन केंद्रों में धान बिक्री पर प्रति क्विंटल 200 से 300 रुपए और बोनस राशि किसान को मिलता है। जबकि 2200 से अधिक राशि बिचौलिया, सोसायटी प्रबंधक और व्यापारी में बांटा जाता है।
इस तरह से होता है खेल
एक किसान के पास पांच एकड़ उपजाऊ भूमि है जिसमें वह हर साल
धान की फसल लेता है। इसमें इस वर्ष पांच एकड़ की जगह चार एकड़ में ही ठीक ठाक फसल हुई। एक एकड़ में फसल नहीं हुई, लेकिन पंजीयन तो पांच एकड़ का है। किसान ने अपने चार एकड़ में हुई धान की फसल को उपार्जन केंद्र में बेच दिया। अब बिचालिए ऐसे किसान को ढूंढते हैं या संपर्क में रहते हैं जिनका पूरे रकबा में धान नहीं हुआ था।
बाकी रकबे बिचौलिया, धान परिवहनकर्ता व्यापारी से पूर्ति कराते हैं। प्रति एकड़ 15 क्विंटल के मान से धान की खरीदी फिर उपार्जन केंद्र में बिक्री कराई जाती है। सोसायटी प्रबंधक की मिलीभगत रहती है जिसके कारण बिना किसी झंझट के किसान को आसानी से टोकन उपलब्ध हो जाता है और धान को आसानी से बेच दिया जाता है।
आदिवासी सेवा सहकारी समिति मर्यादित कुकदुर में फर्जी धान खरीदी का मामला सामने आ चुका है।