जानकारी के अनुसार अवैध ठेकेदार बेरोजगार, नशेड़ी युवा व जरूरतमंद महिलाओं से यह कारोबार करवा रहे है। प्रति अवैध वेंडर ये 400 से 800 रुपए तक वसूलते है। दिनभर अवैध वेंडर ट्रेन में चाय, समोसा, मूंगफली, सिगरेट, पान-मसाला बेचते है और शाम को कुल कमाई में से ठेकेदार को उसका कमीशन देते है।
कार्रवाई से बचाने की जिम्मेदारी
अवैध ठेकेदारों के माध्यम से ट्रेनों में चल रहे अवैध वेंडर भी बेखौफ होकर ये काम करते है। उन्हें ठेकेदार आरपीएफ, जीआरपी व रेलवे की कार्रवाई से बचाने की जिम्मेदारी लेता है। जुर्माना भरने से लेकर जेल से छुड़वाने तक के काम ये ठेकेदार करवाते है।
अवैध वेंडर ने बताया कि वह पिछले एक माह से ट्रेनों में चना की बाल्टी लेकर चलता है। एक बाल्टी में उसे 1200 से 1500 रुपए तक मिलता है। लागत काटने के बाद 1000 रुपए बचता है, इसमें से 700 रुपए ठेकेदार को दे देता है और खुद 300 से 400 रुपए रख लेता है।
आरपीएफ के पास है कार्रवाई का अधिकार
रेलवे विभाग खाद्य सामग्री बेचने वाले वेंडर का मेडिकल कार्ड और पहचान पत्र बनाता है। इसके अलावा वेंडर का पुलिस वेरीफिकेशन भी कराया जाता है, जिसमें यह पता किया जाता है कि वेंडर का आपराधिक रिकार्ड तो नहीं है। जब ये तीनों प्रक्रिया पूरी हो जाती है तो उसे वैध वेंडर की श्रेणी में माना जाता है। जिनके पास आई कार्ड, मेडिकल कार्ड सहित पुलिस वेरिफिकेशन नहीं होता वे अवैध वेंडर की श्रेणी में आते हैं। जिनके खिलाफ प्रमुख रूप से आरपीएफ को कार्रवाई करने का अधिकार है।
ट्रेनों में अवैध वेंडर्स को लेकर समय-समय पर अभियान चलाकर कार्रवाई की जाती है। कटनी से जबलपुर, दमोह व सतना के बीच यदि अवैध वेंडर्स संगठित गिरोह की तरह कार्य कर रहे है तो आरपीएफ अधिकारियों से इस संबंध में चर्चा कर कड़ी कार्रवाई करेंगे। जल्द ही इनके ठिकानों पर दबिश देकर अवैध कारोबार पूरी तरह से बंद करवाएंगे।
मधुर वर्मा, सीनियर डीसीएम, जबलपुर