इतिहासवेत्ता व वर्षा जल शोधार्थी डॉ. ऋषि दत्त पालीवाल बताते हैं कि कुलधरा का उधनसर, खाभा, जाजीया की जसेरी, बगतावरी तलाई, काठोड़ी, धनवा, खींया का मोतासर, लवां की जानकी नाडी, भणियाणा का भीम तालाब जैसे जलस्रोत आज भी जल संरक्षण के आदर्श उदाहरण हैं।
तालाबों के किनारे बसे आस्था और संस्कृति के प्रतीक
-पालीवालों के तालाब केवल जल संरक्षण तक सीमित नहीं थे, बल्कि सामाजिक और धार्मिक जीवन का भी अभिन्न हिस्सा थे।
- इन जलस्रोतों के किनारे हनुमान मंदिर या शिव-शक्ति मंदिर बनाए जाते थे, जहां श्रद्धालु पूजा-अर्चना करते थे।
-इसके अलावा, तालाबों के पास यात्रियों के ठहरने के लिए पठियाल बनाए जाते थे, जिससे यात्रियों को सुविधा मिलती थी।
-जलधारा की विपरीत दिशा में कुछ दूरी पर श्मशान घाट बनाए जाते थे, जिससे जल शुद्धता बनी रहती थी और लोग स्नान व तर्पण के लिए तालाब का उपयोग कर सकते थे।
…..ताकि बनी रहे यह धरोहर
विशेषज्ञों के अनुसार पालीवाल समाज के ये ऐतिहासिक जल स्रोत आज भी जल संकट के समाधान का महत्वपूर्ण हिस्सा बने हुए हैं। उनका मानना है कि इन प्राचीन तालाबों का संरक्षण और पुनर्निर्माण आवश्यक है।