200 से अधिक आपत्तियां एक पन्ने में संकलित
ग्रामवासियों ने बताया कि अमरसागर को नगर परिषद क्षेत्र में शामिल करने को लेकर सरकार की ओर से गजट नोटिफिकेशन जारी किया गया है और आपत्तियां प्रस्तुत करने की अंतिम तिथि 17 अप्रेल रखी गई है। इस संबंध में 200 से अधिक आपत्तियों को एकत्र कर ज्ञापन में समाहित किया गया है।
इतिहास, जल संरक्षण और आजीविका का केंद्र
ज्ञापन में उल्लेख किया गया कि अमरसागर गांव की स्थापना सन् 1692 में तत्कालीन महारावल अमरसिंह ने की थी। यहां 26 से अधिक बावडिय़ां और कुएं आज भी ग्रामीणों को शुद्ध जल उपलब्ध कराते हैं।
तालाब के किनारे स्थित बगीचे, मंदिर और महल इस स्थान को पर्यटन स्थल के रूप में पहचान देते हैं, जिससे स्थानीय लोगों को आर्थिक संबल मिलता है।
वंचित वर्गों के लिए योजनाएं होंगी बंद
ग्रामीणों ने बताया कि गांव की अधिकांश आबादी अन्य पिछड़ा वर्ग और अनुसूचित जनजाति की है। ग्राम पंचायत में होने के कारण उन्हें केंद्र और राज्य सरकार की कई कल्याणकारी योजनाओं का लाभ मिल रहा है, जो शहरी निकाय में शामिल होने के बाद बंद हो सकता है।
पशुपालन और गोचर भूमि पर संकट
ज्ञापन में बताया गया कि गांव में 3000 से अधिक गाय, 500 भेड़ें, 2000 बकरियां और 50 ऊंट हैं। ग्रामीणों की आजीविका पशुपालन पर निर्भर है। अमरसागर से बीएसएफ क्षेत्र तक फैले 150 हेक्टेयर गोचर क्षेत्र में पशु स्वतंत्र रूप से चरते हैं। नगरपरिषद में शामिल होने से यह व्यवस्था बाधित हो सकती है। स्थानीय गौशाला में भी लगभग 3000 गोवंश हैं, जिनके भरण-पोषण पर संकट आएगा।
गांव एकजुट, विरोध के स्वर प्रखर
प्रदर्शन के दौरान पूर्व सरपंच देवकाराम सोलंकी, मेघराज परिहार, अनिल भाटी, हुक्मसिंह परिहार, रेवतराम भील, भगवानराम पवार, बाबूलाल गवारिया, प्रेम परीहार, हसन मिरासी, सवाई परिहार सहित दर्जनों ग्रामीण उपस्थित थे।