बजट सत्र: गहलोत प्रदर्शन करने बाहर तो आए पर सदन में नहीं गए, सत्ता से दूर… तो सदन में एक भी दिन नहीं आए गहलोत – वसुंधरा
Rajasthan Politics: अजीब यह है कि विपक्ष के गतिरोध के दौरान गहलोत विधानसभा के बाहर धरने में तो शामिल हुए लेकिन विधानसभा के भीतर नहीं गए। इसी तरह वसुंधरा भी पिछले दिनों विधानसभा अध्यक्ष से मिलकर लौंट गईं लेकिन सदन में नहीं गईं।
सुनील सिंह सिसोदिया राजस्थान में विधानसभा का बजट सत्र चल रहा है और पूर्व मुख्यमंत्री अशोक गहलोत तथा वसुंधरा राजे ने इससे लगातार दूरी बना रखी है। दोनों एक बार भी बजट सत्र के दौरान सदन में नहीं आए। गहलोत-वसुंधरा की अनुपस्थिति को लेकर अब कांग्रेस एवं भाजपा में भी फुसफुसाहट शुरू हो गई है।
अजीब यह है कि विपक्ष के गतिरोध के दौरान गहलोत विधानसभा के बाहर धरने में तो शामिल हुए लेकिन विधानसभा के भीतर नहीं गए। इसी तरह वसुंधरा भी पिछले दिनों विधानसभा अध्यक्ष से मिलकर लौंट गईं लेकिन सदन में नहीं गईं।
दरअसल दोनों अनुभवी नेता जब भी सत्ता से दूर हुए तो आमतौर पर सदन में नहीं आते। दोनों की गैर मौजूदगी को लेकर इस बार सदन में चर्चा तब शुरू हुई जब सदन में गतिरोध हुआ। दोनों दलों के विधायकों का कहना है कि अक्सर बड़े नेताओं के दखल से गतिरोध दूर हो जाता है। नए विधायकों का भी कहना है कि यदि बड़े नेता शुरूआत में ही गतिरोध दूर करने की प्रक्रिया में शामिल होते तो संभवत: यह मामला जल्दी निपट जाता। उनकी गैर मौजूदगी से फ्लोर मैनेजमेंट में भी कमी आती है।
विधानसभा अध्यक्ष वासुदेव देवनानी को बार-बार नए विधायकों और मंत्रियों को सदन की कार्यवाही सही ढंग से संचालित करने के लिए सख्त निर्देश देने पड़ रहे हैं। कई बार ऐसा देखा गया है कि सदन की कार्यवाही के दौरान ही मंत्री और विधायक अपनी सीट छोड़कर बाहर चले गए। हाल ही अध्यक्ष देवनानी सदन में व्यवस्था दे रहे थे तो एक बार केबिनेट मंत्री मदन दिलावर सीट से उठकर तेजी से बाहर चले गए, नेता प्रतिपक्ष टीकाराम जूली ने भी इस पर आसन का ध्यान दिलाया। सदस्यों को लेकर ऐसे कई मौके सदन में अब तक आ चुके हैं।
अनुभव की कमी, प्रभावित हो रही कार्यवाही
विधानसभा में पहली बार निर्वाचित विधायकों की संख्या सबसे अधिक है। आंकड़ों के अनुसार, पहली बार चुनकर आए विधायकों की संख्या 83 है, जो कुल सदन का 41.5 फीसदी है। इसके बाद सबसे ज्यादा संख्या दो बार के विधायक हैं। सबसे वरिष्ठ विधायक आठ बार के कालीचरण सराफ हैं। सराफ नियमित आ रहे हैं और सदन में प्रश्नकाल में सवाल पूछने के साथ ही शून्यकाल में भी अपने क्षेत्र के मुद्दों पर बोलते नजर आ रहे हैं।
मुख्यमंत्री रहे भैंरोसिंह शेखावत, शिवचरण माथुर और हरिदेव जोशी विपक्ष में रहते हुए भी सदन की बैठकों में लगातार भाग लेते थे। चर्चा में भी शामिल होते थे। इससे सदन में अच्छा माहौल रहने के साथ नए सदस्यों में भी बोलने को लेकर जोश रहता था। घनश्याम तिवाड़ी, सांसद
बडे़ नेताओं के सदन में नहीं आने पर चर्चा शुरू
वरिष्ठ नेताओं के सदन में मौजूद रहने से दल के सभी सदस्यों में पूरी तैयारी के साथ बोलने की होड़ रहती है। मोहनलाल सुखाड़िया, हरिदेव जोशी, शिवचरण माथुर से लेकर भैंरोसिंह शेखावत तक विपक्ष में रहे तो भी सदन की बैठकों में हिस्सा लेते थे। चर्चाओं में शामिल होते थे। रामनारायण मीणा, पूर्व विस. उपाध्यक्ष
नए विधायकों को भी नहीं मिल रही प्रेरणा
विधानसभा में वरिष्ठ विधायकों की उपस्थिति न होने से सदन की बहस में भी धार कम हुई है। माना जाता है कि अनुभवी विधायकों की उपस्थिति नए सदस्यों को प्रभावी बहस करने के लिए प्रेरित करती है। ऐसे में जब वे ही सदन से अनुपस्थित रहते हैं तो नए विधायक भी गंभीर नजर नहीं आते।
…कुछ बड़े नेताभी कम आ रहे
कांग्रेस के विधायक और पूर्व मंत्री अशोक चांदना व अन्य कई सदस्य सदन की कार्यवाही में नियमित रूप से उपस्थित नहीं हो रहे। सत्तापक्ष से विधायक सिद्धी कुमारी की भी उपस्थिति कम है। कृषि मंत्री किरोड़ी लाल मीणा केवल राज्यपाल के अभिभाषण वाले दिन सदन में आए, उसके बाद से छुट्टी पर हैं।
पहली बार सदन में पहुंचे विधायक प्रशिक्षणकी रख रहे मांग
सदन में 200 सदस्यों में से करीब 83 विधायक पहली बार सदन में पहुंचे हैं। ऐसे में नियमों की जानकारी को लेकर नए विधायकों को अभी प्रशिक्षण की जरूरत है। बताया जा रहा कि कुछ नए विधायकों ने प्रशिक्षण के लिए अध्यक्ष से मांग भी की है।
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