बापू नगर राजकीय आयुर्वेद चिकित्सालय की डॉ.रीटा अग्रवाल ने बताया कि लीच थेरेपी स्किन डिजीज, सोरायसिस, कील मुंहासे, हेयर फॉल, वैरिकाज-वेंस, डायबिटिक फुट इंजरी, आर्थराइटिस, हाई ब्लड प्रेशर, कार्डियोवास्कुलर डिजीज (हृदय रोग), ब्लड सर्कुलेशन को बढ़ाने, मेटाबॉलिज्म आदि के काम आती है।
राजकीय ब्लॉक आयूष चिकित्सालय के डॉ. अनिल मीणा ने बताया कि लीच थेरेपी का उपयोग हृदय रोगों के उपचार में किया जाता है। लीच द्वारा उत्पन्न लार (सलाइवा) में हीरुदिन पेपटाइड (एक प्रकार का प्रोटीन ) मौजूद होता है जो रक्त को प्राकृतिक रुप से पतला करता है। यह नेचुरल ब्लड थिनर का काम करता है, जो रक्त के थक्के (क्लोटिंग को रोकता है) को जमने नहीं देता है। लीच थेरेपी पैरों में सूजन, दर्द और त्वचा के रंग में सुधार में काफी कारगर साबित हो रही है। लीच थेरेपी से पैर की नस में रक्त का थक्का नहीं बनता है जिससे पैदल चलने की क्षमता में सुधार होता है। इसके लिए संक्रमित हिस्से में चार से छह लीच थेरेपी की प्रक्रिया की आवश्यकता होती है।