मानव संस्कृति के निर्माण में मां की भूमिका सबसे अहम : गुलाब कोठारी
अन्तरराष्ट्रीय महिला दिवस के उपलक्ष में महारानी कॉलेज में बुधवार को ‘स्त्री देह से आगे’ पुस्तक पर चर्चा में पुस्तक के लेखक और राजस्थान पत्रिका समूह के प्रधान संपादक गुलाब कोठारी ने विद्यार्थियों और शिक्षकों को संबोधित किया।
जयपुर। अन्तरराष्ट्रीय महिला दिवस के उपलक्ष में महारानी कॉलेज में बुधवार को ‘स्त्री देह से आगे’ पुस्तक पर चर्चा में पुस्तक के लेखक और राजस्थान पत्रिका समूह के प्रधान संपादक गुलाब कोठारी ने विद्यार्थियों और शिक्षकों को संबोधित किया। उन्होंने कहा कि हमें मानव संस्कृति का निर्माण करना है और इसके लिए मां की भूमिका सबसे अहम है। कोठारी ने स्त्री की दिव्यता को पहचानने की जरूरत पर बल दिया। उन्होंने कहा कि ममता, करुणा और वात्सल्य जैसी शक्तियां स्त्री में स्वाभाविक रूप से मौजूद हैं, जो उसे पति और संतान के लिए नहीं, बल्कि वंश और समाज की परंपरा को मजबूत करने के लिए दी गई हैं।
गुलाब कोठारी ने अपने संबोधन में कहा कि विवाह केवल शरीर का मिलन नहीं, बल्कि प्राणों का आदान-प्रदान है। उन्होंने आत्मा की यात्रा पर प्रकाश डालते हुए कहा कि एक स्त्री जब नए घर में प्रवेश करती है, तो वह अपने शरीर के धर्म को माता-पिता के घर छोड़कर आत्मा के धर्म को अपनाती है। मंत्रोच्चार का अर्थ समझें तो विवाह शरीर के लिए नहीं, बल्कि आत्मा की उन्नति के लिए है। उन्होंने कहा कि मां के पास वह शक्ति है, जो नौ महीनों में संतान की आत्मा को गढ़ देती है, जिसे कोई देवता भी बदल नहीं सकता।
कुलपति ने दिलाया प्रण-करें महिला का सम्मान
‘स्त्री देह से आगे’ पुस्तक की प्रस्तावना पढ़ते हुए कुलपति अल्पना कटेजा ने कहा कि कोठारी की लेखन शैली अनूठी है, जो समाज में मानवता के दो पंखों-स्त्री और पुरुष-को समान मजबूती देने का संदेश देती है। उन्होंने समारोह में विद्यार्थियों और शिक्षकों से आह्वान किया कि वे प्रण लें, स्त्री का सम्मान किसी एक दिन विशेष नहीं बल्कि रोज करेंगे। कार्यक्रम में महारानी कॉलेज प्रिंसिपल प्रो. पायल लोढा ने गुलाब कोठारी और कुलपति का स्वागत किया।
सवालों के भी दिए जवाब
असिस्टेंट प्रोफेसर मोनिका राव का सवाल : न कोई संस्था है, न कोई ऐसा गुरु है और न ही शिक्षा नीति में ऐसा ज्ञान है। ऐसे में इस ज्ञान को महिलाएं कहां से प्राप्त करेंगी। क्या किसी संस्था को जागृत करना होगा या फिर महज उद्बोधन सुनने मात्र काफी होगा। महिलाएं मां बनने की प्रक्रिया में शक्ति की पहचान कैसे करेंगी।
गुलाब कोठारी : जीवात्मा अपने आप में अकेली होती है। हम भले ही हजार के बीच में जी रहे हैं लेकिन जीना अकेला है और मरना भी। हम संस्कृति से दूर निकलकर आ गए हैं। आज की मां संस्कृति से बाहर आ गई है। उसको भी नए सिरे से मां की भूमिका समझानी होगी। मां को वापस सूक्ष्म और दिव्यता को समझाना होगा।
हमें समझना होगा कि मुझे अच्छी और मजबूत स्त्री बनना है, ताकि मेरा परिवार देश और समाज को कुछ देकर जाए। हम सभी महिला संस्थाओं में जाकर जागरूक करेंगे। अपनी भूमिका राष्ट्र निर्माण की तो है, साथ ही इससे एक कदम आगे जाकर आत्मा का निर्माण करना है। इसके लिए आत्मा को प्रशिक्षित करना है। मेरी यह बड़ी पीड़ा है कि किसी भी लड़की से बात करते समय लड़के के चेहरे पर मन का भाव नहीं होता। लड़की के चेहरे पर स्पंदन नहीं दिखता। आत्मा की चर्चा खत्म हो गई। स्पदंन नहीं रहा। दिल नहीं धड़क रहा है। इसीलिए आत्मा को जीना है। चिंतन करना जरूरी है और इसकी शुरुआत मां के जरिए ही हो सकती है।
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