कई विशेषज्ञों ने इस आधार पर भी आयोग में आपत्ति दर्ज कराई है। आपत्तिकर्ताओं ने मौजूदा समझौते से भविष्य में मिलने वाली बिजली को आधार मानते हुए टेंडर की जरूरत का फिर से मूल्यांकन कराने की जरूरत जताई है। इन आपत्तियों के बाद ऊर्जा विकास निगम ने आयोग से जवाब के लिए चार सप्ताह का समय मांगा है। चर्चा है कि ऊर्जा क्षेत्र में काम कर रही देश की एक नामी कंपनी से एग्रीमेंट करने के आधार पर प्लानिंग की जा रही है।
प्रदेश में 36000 मेगावाट बिजली के लिए ये चल रहे काम -45 हजार मेगावाट बिजली उत्पादन के लिए 2.30 लाख करोड़ रुपए के एमओयू किए गए पिछले वर्ष केन्द्रीय सार्वजनिक उपक्रमों के साथ। अनुबंध के तहत 50 प्रतिशत हिस्सा मिलता है तो भी 22 हजार मेगावाट से ज्यादा बिजली मिलेगी।
-1000 मेगावाट सौर ऊर्जा सरकारी कार्यालयों की छत पर लगाए जाने वाले सोलर प्लांट से -1500 मेगावाट बिजली पीएम सूर्यघररूफटॉप सोलर से -12000 मेगावाट बिजली कुसुम ए व सी के जरिए सोलर प्लांट से, इसमें से 6288 मेगावाट के कार्यादेश जारी हो चुके हैं
(इसके अलावा राइजिंग राजस्थान इन्वेस्टमेंट समिट में 28 लाख करोड़ के एमओयू हुए, जिसमें से अकेले 26 लाख करोड़ के अक्षय ऊर्जा के हैं।सरकार इनमें भी प्रदेश का शेयर तय करने की तैयारी कर रही है)
प्लांट राज्य से बाहर लगाने का भी दिया विकल्प टेंडर डॉक्यूमेंट के अनुसार 800-800 मेगावाट के चार थर्मल पावर प्लांट लगाने होंगे। कंपनी राजस्थान के अलावा दूसरे राज्य में भी प्लांट लगाकर बिजली सप्लाई कर सकेगी। पहले सौर और थर्मल दोनों तरह की बिजली के लिए एक संयुक्त निविदा जारी की थी, लेकिन इसे रद्द करना पड़ा। अब थर्मल पावर प्लांट से 3200 मेगावाट बिजली खरीद की प्रक्रिया शुरू की है।
सरकार कह चुकी 2028 तक बन जाएंगे आत्मनिर्भर अफसरों ने बिजली खरीद का होमवर्क 2021-22 और 2022-23 के आंकड़ों पर आधारित है, जबकि याचिका अभी लगाई गई है। भाजपा ने सत्ता में आने के बाद दावा किया है कि राजस्थान वर्ष 2028 तक खुद ही बिजली उत्पादन में आत्मनिर्भर बन जाएगा।