सील में ‘डील’ के इस खेल को रोकने के लिए सरकार अब सख्त हो गई है। जिन शर्तों पर भवनों की सील खोली गई है, उनमें निर्माणकर्ता ने अवैध हिस्सा हटाया या नहीं, इसकी रिपोर्ट ज्यादातर निकायों से नहीं मिली तो सरकार ने सभी निकायों से स्पष्टीकरण मांगते हुए अनुशासनात्मक कार्रवाई करने की हिदायत दी है। बताया जा रहा है कि ऐसे गंभीर श्रेणी के मामलों में सरकार कुछ अधिकारियों को सस्पेंड करने की तैयारी कर रही है। प्रदेश में 305 नगरीय निकाय हैं।
एक्शन के प्रावधान, पर पूरी इमारत खड़ी हो रही सील खोलने से पहले निर्माणकर्ता से निकाय शुल्क (बतौर सिक्योरिटी राशि) लेता है। साथ में निर्माण हटाने का शपथ पत्र भी लिया जाता है। भूखंडधारी को निर्धारित समय में अवैध निर्माण हटाना होता है, अन्यथा उसे फिर सील करना होता है। फिर भी तय अवधि में निर्माण नहीं हटाने पर संबंधित निकाय अपने स्तर पर अवैध निर्माण ध्वस्त करेगा और खर्च की वसूली निर्माणकर्ता से होगी, लेकिन हकीकत यह भी है कि राजधानी जयपुर समेत कई शहरों में ‘सील में डील’ चल रही है। सील खोलने के बाद अवैध निर्माण तो हटा नहीं, उल्टे पूरी इमारत खड़ी हो गई।
अभी निकाय कतरा रहे… शहरों में अवैध निर्मित भवन सील हो रहे हैं। जितनी संख्या में सीलिंग हो रही है, उसके अनुपात में न तो अपील हो रही है और न ही फैसले। जिन अपील से जुड़े मामलों में निर्णय हुए, उसमें भी निर्धारित प्रक्रिया नहीं अपनाई जा रही।
अफसरों को सील करने अधिकार, खोलने का नहीं… निकायों को अवैध निर्माण सील करने का अधिकार तो दिया गया, लेकिन उसे खोलने का अधिकार नहीं दिया ताकि पारदर्शिता बनी रहे। सरकार के प्राधिकृत अधिकारी की पूर्व अनुमति से ही सील खोलने की प्रक्रिया अपनानी जरूरी है, लेकिन कई मामलों में ऐसा नहीं हो रहा। यदि कोई अफसर अपने स्तर पर सील खोलने का निर्णय करता है तो उसके खिलाफ सख्त कार्रवाई करने का प्रावधान है।