International Day of the Unborn Child 2025: गर्भपात के प्रयास में कई बार गर्भाशय को नुकसान
गर्भपात का बढ़ता चलन समाज पर भी गहरा प्रभाव डाल रहा है। बस्तर में लिंगानुपात पहले ही संतुलित है। लेकिन कई मामलों में लड़कियों के भ्रुण को जानबूझकर खत्म करने की प्रवृत्ति बढ़ रही है। सामाजिक कार्यकर्ता महफूजा का कहना है कि यह न केवल महिलाओं के स्वास्थ्य के लिए खतरा है। बल्कि समाज में
लैंगिक भेदभाव को भी बढ़ावा देता है। लोग अजन्मे बच्चे को बोझ मानते हैं, जो आने वाली पीढिय़ों के लिए चिंता का विषय है। असुरक्षित गर्भपात का सबसे बड़ा खतरा महिलाओं की जान को होता है। अनट्रेंड दाइयों या पारंपरिक तरीकों से गर्भपात के प्रयास में कई बार गर्भाशय को नुकसान होता है।
असुरक्षित तरीके होते हैं जानलेवा
असुरक्षित गर्भपात महिलाओं के लिए जानलेवा साबित हो सकता है। स्वास्थ्य विशेषज्ञों का कहना है कि बस्तर में प्रशिक्षित चिकित्सकों और उचित स्वास्थ्य सुविधाओं की कमी के कारण महिलाओं को गंभीर रक्तस्राव, और यहां तक कि मृत्यु का खतरा रहता है। एक स्थानीय डॉक्टर ने बताया कि असुरक्षित तरीकों से गर्भपात के कारण हर साल बस्तर में 10-15 महिलाएं अपनी जान गंवा देती हैं। इसके अलावा, कई महिलाएं बांझपन का शिकार हो जाती हैं।
यह आंकड़ा और भी चिंताजनक
International Day of the Unborn Child 2025: हाल के एक सर्वेक्षण के अनुसार, छत्तीसगढ़ के ग्रामीण क्षेत्रों में हर साल लगभग 15-20 प्रतिशत गर्भवती महिलाएं किसी न किसी कारण से गर्भपात का निर्णय लेती हैं। बस्तर में यह आंकड़ा और भी चिंताजनक है, जहां स्वास्थ्य सुविधाओं की कमी और जागरूकता के अभाव में करीब 25 प्रतिशत मामले असुरक्षित गर्भपात से जुड़े हैं। राष्ट्रीय परिवार स्वास्थ्य सर्वेक्षण (एनएचएफएस-5) के डेटा के मुताबिक,
छत्तीसगढ़ में प्रति 1,000 गर्भधारण में 50 से अधिक असुरक्षित गर्भपात के मामले सामने आते हैं, जिनमें से कई बस्तर जैसे दूरदराज के इलाकों से हैं।