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जबलपुर

आखिरकार हमेशा के लिए शांत हो गई हथिनी चंचल

-छतरपुर से लाई गई थी, जबलपुर के वेटरनरी चिकित्सकों पर लापरवाही का आरोप
 
 

जबलपुरJun 19, 2023 / 06:39 pm

shyam bihari

chanchal elephant

elephant chanchal

जबलपुर। एक माह से बीमार 45 वर्षीय हथिनी चंचल की आखिरकार बीती रात मौत हो गई। महावत ने वेटरनरी अस्पताल के चिकित्सकों पर इलाज में लापरवाही का आरोप लगाया है। वहीं, वेटरनरी विवि के जिम्मेदार हरसम्भव इलाज की बात कह रहे हैं। छतरपुर की हथिनी को लम्बे समय से यूरिन इंफेक्शन था। वेटरनरी विवि के चिकित्सक उसका इलाज कर रहे थे। वन विभाग के अधिकारियों मौके पर पहुंचे और उसका पोस्टमार्टम कराया। सतपुला के पास ही मशीन से गड्ढा कराकर रविवार दोपहर उसे दफनाया गया।

दूसरी जगह ले जाने के लिए कह दिया था
महावत गोविंद ने बताया कि हथिनी के इलाज के लिए उसे पशु चिकित्सालय ले गए थे। वहां तीन दिन रुका रहा। चिकित्सकों ने अस्पताल परिसर से कहीं और ले जाने के लिए कह दिया। तब वह हथिनी को लेकर गर्मी में परेशान हुआ। सतपुला पुल के पास जगह मिलने पर उसे रखा गया। इलाज के लिए चिकित्सकों को घंटों फोन करके बुलाना पड़ता था।

धीरेंद्र शास्त्री की कथा में आई थी
पनागर में कथा वाचक धीरेंद्र शास्त्री की भागवत कथा की शोभायात्रा में हथिनी चंचल शामिल हुई थी। उसके बाद वह दमोह गई थी। वहां तबीयत खराब होने पर शहर के वेटरनरी अस्पताल लाया गया था। वन विभाग के रेस्क्यू प्रभारी गुलाब सिंह परिहार ने बताया कि हथिनी के अंतिम संस्कार के दौरान वनमंडल अधिकारी, एसडीओपी के श्रीवास्तव, परिक्षेत्र अधिकारी अपूर्व शर्मा, रेस्क्यू प्रभारी गुलाब सिंह राजपूत, परिक्षेत्र सहायक अब्दुल फरीद खान मौजदू थे।


यूरिन इंफेक्शन के कारण हथिनी क्राॅनिक डिजीज से ग्रस्त थी। चिकित्सकों की टीम देखरेख कर रही थी। उसे बचाने के लिए हरसम्भव प्रयास किया गया।
– डॉ. शोभा जावरे, डॉयरेक्टर, एसडब्ल्यूएफएच, वीयू


45 साल मरने की उम्र तो नहीं थी…?
यह सही है कि मौत पर किसी का वश नहीं होता। लेकिन, हथिनी चंचल के इलाज में लापरवाही का आरोप महावत ने लगाया है, तो गम्भीरता से लेना होगा। इतने बड़े वेटरनरी विवि और उसके अस्पताल में काम चलाऊ इलाज किया जाएगा, तो सवाल जरूर खड़े होंगे। आमतौर पर हाथी की उम्र सौ साल मानी जाती है। जानकार यह भी मानते हैं कि हाथियों को बीमारियां कम होती हैं। अल्पआयु में इनकी मौत तभी होती है, जब हादसे का शिकार होती हैं या शिकारियों का शिकार बनती हैं। वेटरनरी विवि प्रशासन यह कहकर पल्ला नहीं झाड़ सकता कि उसने पूरा प्रयास किया। लोग तो पूछेंगे ही कि आखिर बीमार हथिनी को 70 किलो तरबूज क्यों खिला दिया गया? हथिनी लगातार दर्द से तड़पती रही। सवाल यह भी है कि उसकी तबीयत में सुधार नहीं हो रहा था, तो बाहर से विशेषज्ञ डॉक्टर क्यों नहीं बुलाए गए? वेटरनरी और जिला प्रशासन इसे महज बीमारी हथिनी की मौत ना माने। अपनी व्यवस्थाओं पर भी नजर दौड़ाए। भावुक मन से विचार करें। अपनी गलती जरूर दिखेगी।

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