#PoojaParampara क्षेत्रपाल से की जाती है क्षेत्र-मोहल्लों की रक्षा की प्रार्थना
बांधा जाता है क्षेत्र
आषाढ़ी पूजा किसी मंदिर, देवालय से निकाली जाती है। शंख घंटा की ध्वनि के साथ अपने-अपने क्षेत्र को बांधा जाता है। अंत में यह अघोरी बाबा मंदिर समेत अन्य क्षेत्रों में चयनित आषाढ़ी पूजन स्थलों पर जाकर समन्न होती है।

ग्राम देवता को समर्पित है पूजन
ज्योतिषाचार्य सचिनदेव महाराज ने बताया आषाढ़ी पूजा ग्राम व स्थान देवता को समर्पित होती हैं। इसमें अपने परिक्षेत्र में पूजे जाने वाले देवी-देवताओं को विशेष आभार दिया जाता है। ये पूजन दो विधि से होता है। पहली वैदिक विधि मंत्रोच्चारण के साथ हवन पूजन व भंडारा प्रसाद वितरण के साथ सम्पन्न होती है। इसमें सभी लोग शामिल हो सकते हैं। वहीं दूसरी तामसिक विधि है जो मध्यरात्रि में सम्पन्न कराई जाती है। इसमें एक मान्यता है कि पूजा शामिल होने वाले ही इसे देख सकते हैं, जिन्हें पूजन स्थल तक नहीं जाना है, वे इसे नहीं देख सकते।
रविवार, बुधवार विशेष दिन
आषाढ़ी पूजा खरे दिनों यानि रविवार या बुधवार को ही होती हैं। अन्य दिनों में इसे करने की मनाही होती है। कई समाजों द्वारा सार्वजनिक पूजन का भी आयोजन होता है। ऐसा कहा जाता है कि आषाढ़ की काली रातों में आने वाली नकारात्मक ऊर्जा से ग्राम व स्थान देवता रक्षा करते हैं, इसलिए उनके प्रति कृतज्ञता प्रकट करने और रक्षा की प्रार्थना करने का यह अच्छा माध्यम है।