बालोतरा जिले के आसोतरा निवासी अणदाराम तरक कहते हैं, राजस्थान के गांवों मेें होली का उल्लास अधिक देखने को मिलता है। ग्रामीण इलाकों में होली पर गेर का आयोजन किया जाता है। बच्चों की ढूंढ की जाती है। गांवों में होली को लेकर गजब का चाव देखने को मिलता है। गांव के बीच चौराहों पर गेर की प्रस्तुति दी जाती है।
थोब निवासी समरथाराम कूकल कहते हैं, मैं करीब तीन दशक से हुब्बल्ली में निवास कर रहा हूं। राजस्थान की तरह यहां भी होली का खूब चाव देखने को मिलता है। रंगपंचमी के दिन रंगों से सराबोर होली खेली जाती है। होली आज भी परम्परागत तरीके से मनाई जा रही है। जिस तरह राजस्थान में होली मनाते हैं, वैसे ही कर्नाटक में भी खूब चाव है।
अराबा उड़ा निवासी भीमाराम करड़ कहते हैं, होली का पर्व भाईचारे का पर्व है। सभी जाति-वर्ग के लोग होली के पर्व को सामूहिक रूप से मनाते हैं। होली एक उल्लास व उमंग का त्यौहार है। होली ऐसा त्योहार है जो सारे गिले-शिकवे दूर कर देता है। होली का पर्व जोडऩे का काम करता है। आपस में एक-दूसरे के करीब लाता है।
बागलोप निवासी शेराराम कहते हैं, राजस्थान में चंग गेर का रिवाज आज भी बना हुआ है। आपस में रंग डालकर होली की खुशी जताई जाती है। हमारे गांव बागलोप में होली का पर्व खुशी व उत्साह के साथ मनाया जाता है। होलिका दहन के साथ ही इस दिन कई विशेष आयोजन होते हैं। चंग की थाप पर नृत्य खास आकर्षण का केन्द्र रहता है।
चारलाई निवासी ओमाराम पटेल कहते हैं, चंग के साथ होली दहन की परम्परा आज भी गांवों मेंं कायम है। फाल्गुन गीत गाए जाते हैं। हमारे गांव में गेर नहीं होती। उमंग एवं उत्साह के साथ रंगों से सरोबार होली खेली जाती है। एक-दूसरे के घर जाकर होली की शुभकामनाएं दी जाती है। बच्चों की ढूंढ करने का रिवाज भी है।