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Women’s Day: संविधान बनाने में इन 15 महिलाओं का रहा बड़ा योगदान, जानिए कितनी थीं शिक्षित

Women’s Day: लोकतांत्रिक समाज में जिसका मार्गदर्शक भारत का संविधान है, उसमें रहते हुए हम 8 मार्च 2025 को हम अंतरराष्ट्रीय महिला दिवस 2025 मनाने जा रहे हैं, ऐसे में आइये जानते हैं संविधान के निर्माण में महिलाओं की क्या भूमिका रही और ये महिलाएं कितनी शिक्षित थीं (sanvidhan sabha mahila sadasy education)

भारतMar 08, 2025 / 02:03 pm

Pravin Pandey

Women Architects Indian Republic constituent assembly

Women Architects Indian Republic constituent assembly: संविधान सभा की महिला दिवस

Women’s Day 2025: घर, परिवार हो या समाज, स्त्री के बिना अधूरा है, पहली शिक्षक मां होती है, जो जीवन को दिशा देती है, यही कारण है हमारी संस्कृति यत्र नार्यस्तु पूज्यंते रमंते तत्र देवता गाकर उनके महत्व के आगे सिर नवाती है। भारत के समाज और लोकतांत्रिक ताने बाने के निर्माण में भी उनकी भूमिका महत्वपूर्ण रही है, आज जब हम 8 मार्च को अंतरराष्ट्रीय महिला दिवस मनाने जा रहे हैं तो जानते हैं हमारे संविधान के निर्माण में भूमिका निभाने वाली महिलाएं कौन हैं और उस जमाने में कितनी शिक्षित थीं।

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Women Architects Indian Republic constituent assembly signature

भारत की संविधान सभा में शामिल थीं 15 महिलाएं

भारत का संविधान बनाने के लिए 389 सदस्यीय सभा का गठन किया गया था। इनमें से 15 सदस्य महिला थीं। इसके सदस्यों का चुनाव प्रांतीय विधानसभा द्वारा किया गया था। 1947 में ब्रिटिश सरकार से भारत को आजादी मिलने के बाद इसके सदस्यों ने ही देश की पहली संसद के सदस्य के रूप में काम किया था। इन्होंने लिंग, जाति और आरक्षण पर परिचर्चा में शिद्दत से भाग लिया। यहां जानते हैं सभी 15 महिला सदस्यों और उनकी शिक्षा दीक्षा के बारे में ..
ammu swaminathan Women Architects Indian Republic constituent assembly

अम्मू स्वामीनाथन (1894-1978)

संविधान सभा की सदस्य अम्मू स्वामीनाथन को अम्मुकुट्टी नाम से बुलाया जाता था। ये कभी स्कूल नहीं गईं, उन्हें घर पर ही प्राथमिक शिक्षा मिली थी। इन्होंने मलयालम में थोड़ा बहुत पढ़ना लिखना सीखा था। अम्मू निडर महिला थीं और सामाजिक कार्यकर्ता, राजनीतिज्ञ के रूप में उन्होंने अपनी पहचान बनाई थी।
उन्होंने महिला श्रमिकों के आर्थिक मुद्दों और समस्याओं को प्रमुखता से उठाया था और महिलाओं के लिए वयस्क मताधिकार और संवैधानिक अधिकारों की मांग करने वाले पहले संगठनों में से एक WIA की प्रमुख नेता थीं। उन्होंने 1945 में मद्रास से कांग्रेस के टिकट पर केंद्रीय विधान सभा चुनाव लड़ा और फिर संविधान सभा की सदस्य बनीं। अपनी मां के अनुभव को देखने के बाद उन्होंने विधवाओं पर लगाए गए प्रतिबंधों, जैसे सिर मुंडवाना और गहने त्यागने का विरोध किया।
ani maskrin Women Architects Indian Republic constituent assembly

एनी मैस्कारीन (1902-1963)

एनी मैस्कारीन जन्म त्रिवेन्द्रम (अब तिरुवनंतपुरम) में एक लैटिन ईसाई परिवार में हुआ था, जो जाति व्यवस्था में सबसे निचले पायदान पर माना जाता था। उन्होंने तिरुवनंतपुरम के महाराजा कॉलेज से 1925 में इतिहास और अर्थशास्त्र में डबल एम.ए. की डिग्री हासिल की। ​सीलोन में उन्होंने शिक्षण कार्य भी किया, यहां से लौटने के बाद उन्होंने कानून का अध्ययन और अध्यापन जारी रखा। उन्होंने सार्वभौमिक वयस्क मताधिकार पर आधारित सरकार के लिए सक्रिय रूप से अभियान चलाया।

मैस्करेन स्वतंत्रता आंदोलन के साथ रियासतों को भारतीय राष्ट्र में एकीकृत करने के लिए चलाए गए आंदोलनों में बहुत सक्रिय थीं। जब राजनीतिक दल त्रावणकोर स्टेट कांग्रेस का गठन हुआ, तो वह इसमें शामिल होने वाली पहली पंक्ति की महिलाओं में से एक थीं। उन्होंने संविधान सभा की चयन समिति में भी काम किया, जिसने हिंदू कोड बिल पर विचार किया।
dakshayani velayudhan Women Architects Indian Republic constituent assembly

दक्षायनी वेलायुधन (1912-1978)

दक्षायनी वेलायुधन कोचीन (अब कोच्चि) में विज्ञान में स्नातक करने वाली पहली दलित महिला थीं, उन्हें कोचिन राज्य सरकार से स्कॉलरशिफ पाने में भी सफल रहीं थीं। उन्होंने मद्रास यूनिवर्सिटी से टीचर ट्रेनिंग सर्टिफिकेट कोर्स भी पूरा किया था। कोचीन विधान परिषद में पहली दलित महिला थीं। वह पृथक निर्वाचिका की आवश्यकता पर अंबेडकर से असहमत थीं और कहती थीं कि यह प्रावधान राष्ट्रवाद के खिलाफ है।

केरल की दक्षायनी वेलायुधन संविधान सभा के लिए चुनी जाने वाली एकमात्र दलित महिला भी थीं, उन्होंने विधानसभा की सदस्य के रूप में भी कार्य किया और 1946-52 तक अनंतिम संसद का हिस्सा रहीं। 34 वर्ष की उम्र में वह विधानसभा की सबसे कम उम्र की सदस्य चुनी गईं थी।
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बेगम ऐजाज रसूल (1909-2001)

मुस्लिम लीग का हिस्सा होने के बावजूद, वह धर्म के आधार पर अलग निर्वाचन क्षेत्रों का विरोध करने वाले कुछ सदस्यों में से थीं।

बेगम संविधान सभा में एकमात्र मुस्लिम महिला सदस्य ऐजाज रसूल ने औपचारिक रूप से 1937 में पर्दा त्याग दिया था और गैर-आरक्षित सीट से पहला चुनाव जीतकर उत्तर प्रदेश विधान परिषद की सदस्य बनने में सफल हुईं थी। उन्होंने महिला हॉकी को लोकप्रिय बनाने में भी महत्वपूर्ण योगदान दिया।
Durgabai deshmukh Women Architects Indian Republic constituent assembly

दुर्गाबाई देशमुख (1909–1981)

दुर्गाबाई देशमुख सविनय अवज्ञा आंदोलन के दौरान महात्मा गांधी के नेतृत्व वाली नमक सत्याग्रह गतिविधियों में भाग लेने वाली प्रमुख समाज सुधारक थीं, उन्होंने आंदोलन में महिला सत्याग्रहियों को संगठित करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई। इसके कारण ब्रिटिश राज में 1930 और 1933 के बीच उन्हें तीन बार कैद किया गया।

दुर्गाबाई देशमुख ने आंध्र विश्वविद्यालय से राजनीति विज्ञान में एमए पूरा किया था। वहीं 1942 में मद्रास विश्वविद्यालय से कानून की डिग्री पास की। बाद में मद्रास उच्च न्यायालय में वकील के रूप में प्रैक्टिस की।

दुर्गाबाई पहली महिला थीं जिन्होंने चीन, जापान की अपनी विदेश यात्राओं के दौरान अध्ययन करने के बाद अलग-अलग पारिवारिक न्यायालयों की स्थापना की आवश्यकता पर जोर दिया।

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हंसा जीवराज मेहता (1897– 1995)

हंसा जीवराज मेहता ये 1946 से 1949 तक संविधान सभा की सदस्य रहीं, इनकी शिक्षा दीक्षा बड़ौदा विश्वविद्यालय और लंदन से हुई थी। उन्होंने 1918 में दर्शनशास्त्र में स्नातक किया और इंग्लैंड में पत्रकारिता, समाजशास्त्र में अध्ययन किया।

हंसा मेहता ने संविधान निर्माण में बड़ी भूमिका निभाई थी और मौलिक अधिकार उप-समिति, सलाहकार समिति और प्रांतीय संवैधानिक समिति की सदस्य के रूप में काम किया था। यह पहली महिला वाइस चांसलर का गौरव हासिल करने में सफल हुईं थीं। 15 अगस्त 1947 को आधी रात के कुछ मिनट बाद मेहता ने भारत की महिलाओं की ओर से सभा को राष्ट्रीय ध्वज भेंट किया, जो स्वतंत्र भारत का फहराया जाने वाला पहला ध्वज था।
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कमला चौधरी (1908-1970)

कमला चौधरी एक हिंदी कहानीकार थीं। इन्होंने पंजाब विश्वविधालय से हिंदी साहित्य में रत्न और प्रभाकर की उपाधि हासिल की। उन्होंने 1930 के सविनय अवज्ञा आंदोलन में सक्रिय रूप से भाग लिया।
वे संविधान सभा की सदस्य थीं और संविधान अपनाए जाने के बाद उन्होंने 1952 तक भारत की प्रांतीय सरकार के सदस्य के रूप में कार्य किया। ये महिलाओं के अधिकारों की समर्थक थीं, विशेषकर शिक्षा, सामाजिक सुधार और महिला सशक्तिकरण के क्षेत्रों में इन्होंने अभूतपूर्व भूमिका निभाई।
leela roy Women Architects Indian Republic constituent assembly

लीला रॉय (1900-1970)

स्वतंत्रता सेनानी लीला रॉय ने ढाका के ईडन हाई स्कूल से शुरुआती पढ़ाई की। बाद में कोलकाता के बेथ्यून कॉलेज में अंग्रेजी में बीए पूरा किया, इसके लिए छात्रवृत्ति पाई। यहां उन्हें स्वर्ण पदक भी मिला। बाद में ढाका विश्वविद्यालय से मास्टर डिग्री प्राप्त की और विश्वविद्यालय की पहली महिला स्नातक बनीं।

भारत में महिलाओं की शिक्षा के लिए काम करने वाली स्वतंत्रता सेनानी और सामाजिक कार्यकर्ता लीला रॉय बंगाल से विधानसभा में चुनी गईं एकमात्र महिला सदस्य थीं। उन्होंने भारत के विभाजन के खिलाफ विरोध प्रदर्शन करने के लिए अपने पद से इस्तीफा दे दिया था। वह नेताजी सुभाष चंद्र बोस की करीबी सहयोगी थीं।
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malti chaudhari Women Architects Indian Republic constituent assembly

मालती चौधरी (1904-1998)

स्वतंत्रता सेनानी मालती चौधरी ने शांति निकेतन से शिक्षा हासिल की, ये स्नातक थीं। मालती चौधरी स्वतंत्रता के बाद भारत की संविधान सभा की सदस्य और उत्कल प्रदेश कांग्रेस कमेटी की अध्यक्ष के रूप में ग्रामीण पुनर्निर्माण में शिक्षा, विशेष रूप से वयस्क शिक्षा की भूमिका पर काम किया। वह आचार्य विनोबा भावे के भूदान आंदोलन में भी सक्रिय रहीं, उन पर टैगोर, गांधीजी दोनों का प्रभाव था।
purnima panarji freedom fighter

पूर्णिमा बनर्जी (1911-1951)

पूर्णिमा बनर्जी 1930-40 के दशक के अंत में स्वतंत्रता आंदोलन में सबसे आगे खड़ी उत्तर प्रदेश की महिलाओं में शामिल थीं। वह इलाहाबाद में भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस समिति की सचिव थीं, बनर्जी प्रसिद्ध स्वतंत्रता सेनानी, शिक्षिका और कार्यकर्ता अरुणा आसफ अली की छोटी बहन थीं। उन्होंने 1942 में जेल से ही बीए की पढ़ाई पूरी की।
rajkumari amrit kaur freedom fighter

राजकुमारी अमृत कौर (1889-1964)

राजकुमारी अमृत कौर ने इंग्लैंड के ऑक्सफोर्ड विश्वविद्यालय से स्नातक पास किया। राजकुमारी अमृत ​कौर संयुक्त प्रांत से संविधान सभा के लिए चुनी गई थीं, उनका सबसे महत्वपूर्ण योगदान महिलाओं की व्यापक राजनीतिक भागीदारी सुनिश्चित करना था।
वह महिलाओं के स्वास्थ्य और सामाजिक मुद्दों के साथ सामाजिक कल्याण, स्वास्थ्य देखभाल और शिक्षा पर चर्चा में शामिल हुईं। वह स्वास्थ्य मंत्री के रूप में भारत में कैबिनेट पद संभालने वाली पहली महिला बनीं। अखिल भारतीय महिला सम्मेलन केंद्र दिल्ली में लेडी इरविन कॉलेज और अखिल भारतीय आयुर्विज्ञान संस्थान (एम्स) कुछ प्रतिष्ठित संस्थानों की स्थापना में इनकी महत्वपूर्ण भूमिका रही है।
renuka ray freedom fighter

रेणुका रे (1903-1997)

स्वतंत्रता सेनानी ने लोरेटो हाउस स्कूल और डायोसेसन कॉलेज कलकत्ता से शिक्षा प्राप्त की। उन्होंने लंदन स्कूल ऑफ इकोनॉमिक्स से डिग्री भी हासिल की। 1920 में गांधी जी के साथ एक मुलाकात के बाद रे कॉलेज छोड़कर स्वतंत्रता संग्राम में शामिल हो गईं, जहां वह जागरूकता बढ़ाने के लिए घर-घर गईं। उन्होंने 1943 में केंद्रीय विधान सभा में महिला संगठनों का प्रतिनिधित्व किया और फिर संविधान सभा की सदस्य बनीं।

पश्चिम बंगाल से संविधान सभा के सदस्य के रूप में रेणुका रे ने महिला अधिकार मुद्दों, अल्पसंख्यकों के अधिकारों और द्विसदनीय विधायिका प्रावधान सहित कई मुद्दों को संविधान में जगह दिलाने में भूमिका निभाई। वह अखिल भारतीय महिला सम्मेलन में भी शामिल हुईं और महिलाओं के अधिकारों, पैतृक संपत्ति में उत्तराधिकार के अधिकारों के लिए जोरदार अभियान चलाया।
sarojini freedom fighter

सरोजिनी नायडू (1879-1949)

भारत की कोकिला के नाम से मशहूर सरोजिनी नायडू एक भारतीय स्वतंत्रता कार्यकर्ता और कवियत्री थीं। नायडू की कविताओं में बच्चों की कविताएं और देशभक्ति, रोमांस और त्रासदी जैसे गंभीर विषयों पर लिखी गई अन्य कविताएं शामिल हैं।

इन्होंने 12 वर्ष की आयु में ही मद्रास विश्वविद्यालय की मैट्रिक परीक्षा उत्तीर्ण की और बाद में किंग्स कॉलेज लंदन और गिर्टन कॉलेज कैम्ब्रिज से पढ़ाई की और इसके लिए हैदराबाद निजाम की छात्रवृत्ति प्राप्त की। वह भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस की अध्यक्ष बनीं और बाद में उन्हें संयुक्त प्रांत का राज्यपाल नियुक्त किया गया।

सरोजिनी नायडू का जन्म 13 फरवरी, 1879 को हैदराबाद में सरोजिनी चट्टोपाध्याय के रूप में हुआ था। उनके पिता अघोरनाथ चट्टोपाध्याय निज़ाम कॉलेज के प्रिंसिपल थे और महिलाओं के लिए सामाजिक सुधार और शिक्षा की वकालत करते थे। नायडू की माँ, वरदा सुंदरी , एक बंगाली लेखिका और नर्तकी थीं। नायडू की शिक्षा घर पर ही हुई; उनके पिता ने उन्हें गणित और विज्ञान की शिक्षा दी और उन्हें आगे बढ़ने के लिए प्रोत्साहित किया।
sucheta kriplani

सुचेता कृपलानी (1908-1974)

सुचेता कृपलानी ने दिल्ली विश्वविद्यालय के इंद्रप्रस्थ कॉलेज से शिक्षा पूरी की थी। उन्होंने 1939 तक बनारस हिंदू विश्वविद्यालय में संवैधानिक इतिहास की शिक्षिका के रूप में भी पढ़ाया है।


सुचेता कृपलानी को 1942 के भारत छोड़ो आंदोलन में उनकी भूमिका के लिए याद किया जाता है। उन्होंने 1940 में कांग्रेस पार्टी की महिला शाखा की स्थापना की। उन्होंने संविधान सभा के स्वतंत्रता सत्र में वंदे मातरम गाया, वह भारत की पहली महिला मुख्यमंत्री भी थीं। ये भी संविधान सभा की सदस्य थीं।
vijay lakshami pandit

विजयलक्ष्मी पंडित (1900-1990)

पं. जवाहर लाल नेहरू की बहन विजय लक्ष्मी पंडित ने कोई औपचारिक स्कूली शिक्षा प्राप्त नहीं की, लेकिन उन्हें निजी तौर पर पढ़ाया गया। विजय लक्ष्मी पंडित संविधान सभा की सदस्य चुनी गईं थीं, उन्होंने मंत्री, राजदूत और राजनयिक के रूप में राष्ट्र निर्माण में महिलाओं की भूमिका में योगदान दिया।

ये ब्रिटिश काल में पहली महिला कैबिनेट मंत्री बनीं, पंडित संविधान बनाने के लिए भारतीय संविधान सभा की मांग करने वाले नेताओं की प्रथम पंक्ति में से एक थीं।

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