जिले के कुछ विश्वविद्यालयों में विशाखा कमेटी तो बनी है, लेकिन बैठकें नहीं होती हैं। न ही जागरूकता अभियान चलाए जाते हैं। कई संस्थानों में महिला कर्मचारियों को कमेटी की मौजूदगी तक की जानकारी नहीं है। कॉलेजों में भी यही हाल है।
विश्वविद्यालयों में विशाखा कमेटी की स्थिति
गुरु घासीदास केंद्रीय विश्वविद्यालय में अब तक विशाखा कमेटी का गठन नहीं हुआ है। हालांकि, पीआरओ सत्येश भट्ट के अनुसार, इसके समतुल्य इंटरनल कंप्लेंट कमेटी कार्यरत है, जिसकी अध्यक्ष प्रो. अनुपमा सक्सेना हैं। यह कमेटी महिला संबंधित शिकायतों का निवारण करती है। डॉ. सीवी रमन यूनिवर्सिटी, कोटा में महिला कर्मचारियों को यह जानकारी ही नहीं है कि यहां विशाखा कमेटी बनी है या नहीं। पीआरओ किशोर सिंह ने कमेटी गठन को लेकर अनभिज्ञता जताई। उन्होंने कहा कि इस संबंध में फाइल देखने के बाद ही सटीक जानकारी दी जा सकती है।
पं. सुंदरलाल शर्मा मुक्त विश्वविद्यालय की महिला कर्मचारी विशाखा कमेटी के बारे में अनजान हैं। हालांकि, पीआरओ डॉ. पंकज गुप्ता ने बताया कि कमेटी की अध्यक्ष डॉ. बीना सिंह हैं। उनके अनुसार, किसी भी शिकायत के आने पर कमेटी और उसके सदस्य मिलकर निवारण करते हैं।
अटल बिहारी वाजपेयी विश्वविद्यालय में विशाखा कमेटी को लेकर किसी को स्पष्ट जानकारी ही नहीं है। परीक्षा नियंत्रक व पीआरओ डॉ. तरूणधर दीवान ने बताया कि कमेटी के बारे में जानकारी लेने में एक-दो दिन का समय लगेगा।
महर्षि यूनिवर्सिटी में विशाखा कमेटी को लेकर कोई स्पष्ट जानकारी उपलब्ध नहीं है। कर्मचारियों को भी इसकी जानकारी नहीं है। कुलसचिव डॉ. विजय गरूडकी ने बताया कि कमेटी ते हाके में पूरी जानकारी फाइल देखने के बाद ही दी जा सकती है।
विशाखा कमेटी कैसे करती है काम?
कार्यस्थल पर महिलाओं के साथ होने वाले यौन उत्पीड़न को रोकने और ऐसी घटनाओं की शिकायतों का निवारण करने के लिए इसे गठित किया जाता है। इसकी स्थापना 1997 में
सुप्रीम कोर्ट द्वारा दिए गए विशाखा गाइडलाइंस के तहत की गई थी। बाद में, 2013 के यौन उत्पीड़न (रोकथाम, निषेध और निवारण) अधिनियम के तहत इसे कानूनी रूप से अनिवार्य बना दिया गया। इसका मुय कार्य शिकायत प्राप्त करना, शिकायत की जांच, समाधान और कार्रवाई करना, समझौता करवाने का प्रयास करना और समय-समय पर अपनी रिपोर्ट संबंधित विभागों या उच्च अधिकारियों को सौंपना होता है।
क्यों है जरूरत ?
यदि किसी संस्था में यह कमेटी सक्रिय नहीं है, तो वहां की महिला कर्मचारियों और छात्राओं के अधिकार खतरे में पड़ सकते हैं। विशाखा कमेटी में एक वरिष्ठ महिला अधिकारी (अध्यक्ष), दो या अधिक कर्मचारी (महिला व पुरुष दोनों) और एक बाहरी सदस्य (किसी एनजीओ या कानूनी विशेषज्ञ से) होना अनिवार्य है। ये सदस्य शिकायत की जांच करते हैं और प्रतिवेदन तैयार करते हैं।