Damoh Fake Doctor Exposed: दोषी डॉक्टर पर हो कड़ी कार्रवाई
तीन सदस्यों रिंकल कुमार, ब्रजवीर सिंह और राजेंद्र सिंह की टीम को नबी कुरैशी ने मां रहीसा बेगम के इलाज के दस्तावेज प्रस्तुत किए। टीम के आने से पहले ही सीएमएचओ ने देर रात आरोपी
कार्डियोलॉजिस्ट डॉ. नरेंद्र यादव के खिलाफ कोतवाली में एफआइआर दर्ज कराई। टीम ने नबी से पूछा कि तुम क्या चाहते हो। उसने कहा, मुझे मुआवजा नहीं चाहिए। मां तो नहीं बची, पर फर्जी कार्डियोलॉजिस्ट के गलत इलाज से मां की मौत हुई। इसका अफसोस ताउम्र रहेगा।
मां को तो नहीं बचा सका, पर मैं इतनी उम्मीद करता हूं कि मामले की निष्पक्ष जांच हो और दोषी डॉक्टर पर कड़ी कार्रवाई हो। बयान दर्ज कराने दो अन्य परिजन भी सर्किट हाउस पहुंचे। उन्होंने शाम तक इंतजार भी किया पर उनके बयान नहीं हुए।
पीड़ित की मुंह जुबानी दास्तां
पीड़ित ने बताया कि 2 अगस्त 2006 की बात है। मेरे बाबूजी राजेन्द्र प्रसाद शुक्ल की तबीयत खराब होने पर शहर के अपोलो हॉस्पिटल में भर्ती कराया गया। वहां बाबूजी का इलाज डॉ.राजीव राठी करते थे। लेकिन वे अपोलो छोड़कर दूसरी जगह चले गए थे। उनकी जगह डॉ. नरेन्द्र विक्रमादित्य यादव ने उनकी एंजियोप्लास्टी की थी। उस समय डॉ. नरेन्द्र के बारे में बताया गया था कि वे मध्य भारत में लेजर से हार्ट का ऑपरेशन करने वाले सबसे अच्छे डॉक्टर हैं। सर्जरी के कुछ घंटे के बाद बाबूजी की तबीयत बिगड़ गई। उन्हें करीब 18 दिन तक वेंटीलेटर पर आईसीयू में रखा गया। लेकिन प्राइवेट वार्ड में शिफ्ट करते ही 20 अगस्त 2006 को बाबूजी नहीं रहे। तभी मुझे इन पर शक हुआ था। इसके बाद अपोलो में इस डॉक्टर की सर्जरी के बाद कुछ और मौतें हुई थी। अपोलो का स्टाफ भी इस फर्जी डॉक्टर को लाइक नहीं करता था। वह यहां अकेला रहता था।
इस बीच डॉ. नरेन्द्र अपोलो से फरार हो गया। मैंने आरटीआई से उनकी डिग्री की जानकारी मांगी थी, लेकिन मुझे नहीं दी गई। मैं उन्हें गूगल आदि पर ढूंढ रहा था, लेकिन कल जब दमोह मिशन हॉस्पिटल में 7 मौतों के पीछे इस डॉक्टर का नाम व फोटो देखी तो मेरे सामने 2006 का वह दृश्य सामने आ गया। काश, उस समय फर्जी डॉक्टर नरेन्द्र विक्रमादित्य यादव उर्फ नरेन्द्र जॉन केस के खिलाफ कड़ाई से जांच हुई होती तो आज इतनी मौतें नहीं होती। ऐसे फर्जी डॉक्टरों के खिलाफ कड़ी कार्रवाई होनी ही चाहिए।
आईएमए और अपोलो ने की थी जांच
Damoh Fake Doctor Exposed: इस मामले में आईएमए
बिलासपुर शाखा के तत्कालीन प्रतिनिधियों व अपोलो प्रबंधन ने शिकायत के बाद उक्त डॉक्टर के खिलाफ जांच की थी। लेकिन जांच में क्या रिपोर्ट आई, यह जानकारी किसी को नहीं है। आईएमए के पदाधिकारी ने बताया कि वह डॉ. नरेन्द्र एसोसिएशन का सदस्य भी नहीं था। 2006 के बाद नर्सिंग एक्ट आया, जिसमें डॉक्टर को नौकरी लगने से पहले अब सीएमएचओ दफ्तर में मेडिकल की डिग्री और पंजीयन की जानकारी दी जाती है।
पुराने रिकॉर्ड देखने पड़ेंगे
अपोलो के सीईओ डॉ.अर्नब राहा का कहना है कि मामला 19 साल पहले का है। इस कारण पुराने रेकॉर्ड देखने पड़ेंगे। इसके बाद ही पता चलेगा कि डॉ.नरेन्द्र विक्रमादित्य यादव नामक कोई डॉक्टर अपोलो में था और उन्होंने राजेन्द्र प्रसाद शुक्ल का ऑपरेशन किया था। यदि उस वक्त शिकायत की गई होगी तो निश्चित रूप से जांच भी हुई होगी।