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बड़वानी

नाली का पानी छानकर प्यास बुझाने को मजबूर आदिवासी, विकासखंड में नहीं एक भी हैंडपंप

water crisis: मध्य प्रदेश में जल संकट इस हद तक पहुंच चुका है जहां अब गरीब आदिवासी ग्रामीणों को नाले के पानी को छानकर प्यास बुझा रहे है। इन गांवों में नल से जल योजना की तो बात ही छोड़ दीजिए, यहां पीने के पानी का कोई भी स्थायी साधन उपलब्ध नहीं है।

बड़वानीApr 10, 2025 / 08:29 am

Akash Dewani

Pati block of Barwani MP are facing severe water crisis where Tribals forced to quench thirst by filtering drain water
water crisis: मध्य प्रदेश के बड़वानी जिले के पाटी विकासखंड के कई गांव इन दिनों भीषण जल संकट से जूझ रहे हैं। गर्मी ने अपने तेवर दिखाने शुरू कर दिए हैं और इसके साथ ही पानी के संकट ने इन ग्रामीणों की ज़िंदगी को बुरी तरह प्रभावित किया है। हालात ऐसे हैं कि ग्रामीण सूखे नालों के किनारे गड्ढे खोदकर उसमें रिसकर आने वाला गंदा पानी पीने को मजबूर हैं। जिस पानी से हाथ भी नहीं धोया जा सकता, वही पानी यहां के लोग छान-छानकर पी रहे हैं।

गड्ढों का गंदा पानी पी रहे लोग

ग्राम पंचायत चौकी के अंतर्गत आने वाले मतरकुंड इलाके में अधिकतर आबादी आदिवासी समुदाय की है। यहां के हालात बेहद चिंताजनक हैं। पूरे गांव में एक भी हैंडपंप नहीं है, और ना ही कोई वैकल्पिक जल स्रोत उपलब्ध है। सरकार की नल जल योजना का कोई असर यहां नहीं दिखाई देता। ऐसे में लोग नालों के किनारे खुद गड्ढे खोदते हैं और उसमें जो गंदा पानी रिसता है, उसी को छानकर पीते हैं। यह न केवल स्वास्थ्य के लिए खतरनाक है बल्कि इंसानी गरिमा के खिलाफ भी है।

झिरियों और गड्ढों से पानी लाने में कट जाता है पूरा दिन

पानी की इस भयावह स्थिति ने इन ग्रामीणों की दिनचर्या ही बदल दी है। गांवों के बाहर, सूखे नालों और तालाबों के किनारे कई झिरियां खुदी हुई नजर आती हैं। इन झिरियों से पानी भरने के लिए ग्रामीणों, खासकर महिलाओं और बच्चों, को घंटों इंतज़ार करना पड़ता है। माल कुड गांव में तो स्थिति और भी गंभीर है। कई घरों की बस्ती होने के बावजूद आज तक यहां पीने के पानी के लिए कोई पुख्ता व्यवस्था नहीं की गई है। यहां के लोग मीलों दूर जाकर पानी लाते हैं, जिससे उनका पूरा दिन पानी लाने और ढोने में ही गुजर जाता है।
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रोजगार छूट रहा, घर चलाना मुश्किल

गांव के पुरुषों और महिलाओं ने बताया कि उन्हें रोजगार के लिए बाहर जाना पड़ता है, लेकिन गर्मी के मौसम में जब पानी की किल्लत चरम पर होती है, तब उन्हें पानी के इंतजाम में ही दिनभर की मेहनत झोंकनी पड़ती है। पानी के लिए रोजी-रोटी तक छोड़नी पड़ रही है। ग्रामीण बताते हैं कि कई बार पंचायत को आवेदन दिया गया, लेकिन आज तक कोई भी ठोस कार्रवाई नहीं हुई है।

नेताओं के वादे चुनाव तक सीमित

सुरमई नामक एक ग्रामीण महिला ने बताया कि हर चुनाव के समय नेता आदिवासियों के उत्थान और विकास के बड़े-बड़े वादे करते हैं। लेकिन जैसे ही चुनाव खत्म होता है, वैसे ही वे इन गांवों की तरफ देखना भी बंद कर देते हैं। सुरमई का कहना है कि पाटी विकासखंड के मतरकुंड जैसे गांव इन नेताओं के खोखले वादों की सच्चाई उजागर करने के लिए काफी हैं।

पूरा इलाका जल संकट से बेहाल

बड़वानी जिले के पाटी विकासखंड में मतरकुंड अकेला गांव नहीं है जो इस जल संकट से जूझ रहा है। ऐसे अनेक गांव हैं जहां आदिवासी समाज के लोग गंदा पानी पीने को मजबूर हैं। इन गांवों में सरकार की किसी भी योजना का असर देखने को नहीं मिलता। ना तो पीने का साफ पानी है, और ना ही कोई टैंकर या वैकल्पिक इंतजाम।
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कम से कम पीने के पानी की व्यवस्था तो करें

ग्रामीणों की मांग है कि सरकार बड़े-बड़े विकास कार्यों की बात बाद में करे, पहले उन्हें पीने के पानी जैसी बुनियादी सुविधा तो मुहैया कराए। जब तक इन गांवों में पानी की व्यवस्था नहीं की जाती, तब तक किसी भी योजना का लाभ इन लोगों तक नहीं पहुंचेगा। सरकार को चाहिए कि इन इलाकों की हकीकत को समझते हुए तत्काल प्रभाव से पानी की आपूर्ति सुनिश्चित करे, ताकि इन गांवों के लोगों को रोज-रोज की इस पीड़ा से राहत मिल सके।

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