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रविन्द्र भाटी के ओरण गोचर मुद्दे पर क्या बोले जोधपुर के पूर्व सांसद

पूर्व सांसद जोधपुर गजसिंह तिलवाड़ा मेले में गुरुवार को पहुंचे। उन्होंने यहां मेले में विभिन्न प्रतियोगिताओं के लिए पुरस्कार वितरित कर पशुपालकों को प्रोत्साहित किया। साथ ही मेले का अवलोकन भी किया। राजस्थान पत्रिका से विशेष बातचीत में उन्होंने कहा कि तिलवाड़ा मेला महत्वपूर्ण है। इसलिए इसमें हर साल आने का प्रयास करता हूं। बातचीत के विशेष अंश-
पत्रिका- तिलवाड़ा मेले को लेकर आप क्या कहेंगे?

बाड़मेरMar 28, 2025 / 12:18 pm

Ratan Singh Dave


बाड़मेर
पूर्व सांसद जोधपुर गजसिंह तिलवाड़ा मेले में गुरुवार को पहुंचे। उन्होंने यहां मेले में विभिन्न प्रतियोगिताओं के लिए पुरस्कार वितरित कर पशुपालकों को प्रोत्साहित किया। साथ ही मेले का अवलोकन भी किया। राजस्थान पत्रिका से विशेष बातचीत में उन्होंने कहा कि तिलवाड़ा मेला महत्वपूर्ण है। इसलिए इसमें हर साल आने का प्रयास करता हूं। बातचीत के विशेष अंश-
पत्रिका– तिलवाड़ा मेले को लेकर आप क्या कहेंगे?
गजसिंह-– मेला बहुत ही तरीके से व्यवस्थित लगा हुआ है। यहां घोड़ों की संख्या काफी अच्छी है। मेले की व्यवस्थाएं ठीक है। सात सौ साल पुराने मेले से हमारी संस्कृति जुड़ी हुई है। रावल मल्लीनाथ मेले को अब तक संजोकर रखना बहुत बड़ी बात है।
पत्रिका– मेले को लेकर किस तरह सरकार केा प्रयास करने चाहिए?
गजसिंह-– मेले का आम आदमी से जुड़ाव है। यहां गंदा और रासायनिक पानी जो आ रहा है उसको रोकना चाहिए। इसके लिए सरकार प्रयास करें। मेले से पहले इन समस्याओं का निस्तारण होना चाहिए। मेलार्थियों को सुविधाएं मिले और मेले का प्रचार-प्रसार भी होना चाहिए।
पत्रिका– ओरण गोचर के मद्दे पर आप क्या कहेंगे?
गजसिंह– ओरण गोचर एक महत्वपूर्ण मुद्दा है। सुप्रीम कोर्ट का भी एक फैसला अभी आया है। ओरण गोचर को राजस्व रिकार्ड में दर्ज करना चाहिए। साथ ही सोलर,विण्ड व अन्य कंपनियों को जमीन दी जा रही है। इनको जमीन दी जानी चाहिए लेकिन इससे पहले यह प्रबंध हों कि खेती और जरूरत के लिए जमीन भी रहे। पर्यावरण व अन्य मुद्दों को लेकर सोचना चाहिए।
पत्रिका– बालोतरा में मालाणी महोत्सव का आयोजन होना चाहिए?
गजसिंह-– बिल्कुल होना चाहिए। यह मालाणी की धरती है और इसकी शुरूआत तिलवाड़ा से ही होनी चाहिए।
पत्रिका– तिलवाड़ा में संतों का मेला होता था, इस परंपरा को फिर से शुरू होना कैसा है?
गजसिंह– इस बारे में ज्यादा रावल किशनसिंह बताएंगे। (रावल किशनसिंह- 14 वीं शताब्दी में मल्लीनाथजी हुए। उस समय यहां संतों का मेला लगता था। संत यहां एकत्रित होकर भजन-भाव करते थे। अब फिर से यहां संतों को बुलाकर मेले के आयोजन का प्रयास कर रहे है। )

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